Home उत्तराखंड भगवान वंशी नारायण मंदिर के खुले कपाट

भगवान वंशी नारायण मंदिर के खुले कपाट

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जोशीमठ: भगवान बद्री विशाल के साथ उर्गम क्षेत्र में स्थित भगवान वंशी नारायण मंदिर के कपाट भी आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए हैं पारंपरिक पूजा अर्चना और विधि विधान के साथ हकदारी और ग्रामीण मंदिर पहुंचे और पूजा अर्चना की

चमोली पंच केदार के कल्पेश्वर धाम एवं उरगम घाटी के शीर्ष पर स्थित वंशी नारायण का मंदिर 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है वैसे ही बंसी नारायण के बारे में मान्यता है कि रक्षाबंधन के दिन विशेष पूजा का विधान है आज तक रहा है वर्तमान समय में कलगोठ गांव के लोगों के द्वारा तय किया गया है कि बंसी नारायण जी के कपाट बद्रीनारायण के कपाट के दिन खोले जाएंगे और जिस दिन बद्रीनाथ जी के कपाट बंद होंगे उसी दिन कपाट बंद कर दिए जाएंगे वैसे यह नित्य पुजारी तो नहीं रहते हैं कलगोठ गांव के लोग आते आते जाते रहे वह लोग नारायण के अभिषेक के लिए दूध लाते रहते हैं वैसे इस मंदिर में पूजा का विधान कलगोट गांव के जाख देवता की पुजारी यहां पूजा करते हैं वर्तमान समय में गांव के ही लोग बारी इस मंदिर में पूजा करते हैं आज वहां के लोगों के द्वारा वंशी नारायण के कपाट विधि विधान से खोल दिए गए हैं हिमालय में बड़ा सुंदर बंसी नारायण का मंदिर ग्रेनाइट पत्थरों से बना हुआ कस्तूरी शासन काल की समय छठवीं से 9 ईसवी के मध्य ऊंचा ताप वाला मंदिर है तेरी शासनकाल में ही ऊंची ताप वाली मंदिरों का निर्माण कराया था वंशी नारायण सब सुनकर लगता है कि मंदिर कृष्ण भगवान का होगा यहां चतुर्भुज नारायण विराजमान है यहां बद्रिकाश्रम की तरह उद्धव महालक्ष्मी नारायण कुबेर घंटाकरण की मूर्तियां भगवान विष्णु के चतुर्भुज मूर्ति के चारों तरफ है भगवान नारायण का जलेरी रूप मैं विद्यमान यहां मिलते हैं कुछ लोग भगवान शंकर के रूप में भी यहां पूजा करते हैं यह मंदिर केदारनाथ वन प्रभाग क्षेत्र में पड़ता है और वन विभाग के द्वारा मंदिर के सुंदरीकरण के लिए कोई सकारात्मक कार्रवाई नहीं की गई है मंदिर के बारे में इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर पुरातत्व महत्व का है डॉक्टर शिव प्रसाद नैथानी गढ़वाल इतिहासकार ने भी अपने पुस्तक उत्तराखंड तीर्थ मंदिर के बारे में बताया है कि यह मंदिर अति प्राचीन है मंदिर के बारे में कई प्रकार की कीवी दंतिया बताई जाती है मंदिर का निर्माण पांडवों के द्वारा कराया जाना था पांडवों का उद्देश्य था की बंसी नारायण से ही बद्री केदार के दर्शन हो सके इतना ऊंचा बनाया जाए किंतु देवी योग से कुछ विघ्न बाधाएं होती रही जिसे मंदिर का निर्माण पूर्ण नहीं हो सका बंसी नारायण मंदिर के आसपास आज भी शिलाये बिखरी पड़ी हैं यहां से कई प्रकार के तीर्थ पर्यटन के स्थान निकलते हैं यहां से पंछी नारायण नंदीकुड मध्यमहेश्वर तक यात्रा रूट जाता है। प्रकृति पर्यटन का स्वर्ग कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी यहां मेनखाल छोटा नंदी राज खर्क स्वनुल कुंड सहित दर्जनों बुग्याल एवं खरक हैं जहां हर वर्ष सैकड़ों यात्री यात्रा हेतु आते हैं। पूर्व प्रधान कलगोठ दलीप सिंह चौहान ने बताया कि आज बंसी ना उनकी कपाट ठीक 10:00 बजे के लगभग सुबह खोल दिये है। बंसी नारायण पहुंचने के लिए ऋषिकेश से 230 किलोमीटर हेलन तक बस कार जीप से पहुंचा जा सकता है यहां से कल्पेश्वर तक 16 किलोमीटर और यहां से बंसी नारायण पहुंचने के लिए ट्रैक करके पहुंचना पड़ता है यहां पहुंचने के लिए गाइड एवं पोटर की आवश्यकता पड़ती है उरगम में होमस्टे की पूर्ण रूप से व्यवस्था है।
( लक्ष्मण सिंह नेगी की रिपोर्ट)