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लोकसंस्कृति के पुरोधा लखपत सिंह राणा को धरोहर संरक्षण सम्मान, लोकसंस्कृति को दे रहें हैं नई ऊँचाई….

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बधाईया!– लोकसंस्कृति के पुरोधा लखपत सिंह राणा को धरोहर संरक्षण सम्मान, लोकसंस्कृति को दे रहें हैं नई ऊँचाई….
संजय चौहान!
उत्तराखंड के जनपद रूद्रप्रयाग की केदार घाटी के प्रख्यात रंगकर्मी, शिक्षाविद्ध, समाजसेवी और लोकसंस्कृतिकर्मी के ध्वजावाहक लखपत सिंह राणा को सोसाइटीज फाॅर हैरिटेज ऐजुकेशन, कुरूक्षेत्र हरियाणा द्वारा धरोहर संरक्षण सम्मान मिला। कुछ दिन पहले लखपत सिंह राणा को प्रतिष्ठित चंद्रदीप्ति सम्मान भी मिल चुका है। इससे पहले भी उन्हें संस्कृति, सामाजिक कार्य, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा, जनजागरूकता के लिए दर्जनो पुरस्कार मिल चुके हैं जिनमें प्रतिष्ठित मंदाकिनी सम्मान सहित अन्य सम्मान शामिल हैं।

कौन हैं लखपत राणा!

विपरीत परिस्थितियों में भी कभी हार नहीं मानी। एक बार नहीं बल्कि तीन तीन बार आपदा से सामना कर अपना मुकाम खुद हासिल किया। आज वे हजारों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं कि पहाड़ में रहकर भी पलायन के खिलाफ लड़ा जा सकता है। शिक्षा से लेकर लोकसंस्कृति और रंगमंच को नई ऊँचाई दी है। वो शख्सियत है रूद्रप्रयाग जनपद के गुप्तकाशी में डॉ0 जैक्स वीन नेशनल स्कूल के चैयरमैन लखपत सिंह राणा –।

संघर्षों भरी दास्तान! गुरबत में जीवन यापन।

रूद्रप्रयाग जनपद के कालीमठ गाँव में स्व. मुकन्दी सिंह राणा एवं श्रीमती यशोदा देवी के घर सन 1976 में इनका जन्म हुआ था। लखपत सिंह राणा दो भाई व एक बहिन में सबसे बड़े थे। बस जैसे तैसे खेती और मजदूरी से परिवार का भरण पोषण होता था। आर्थिक स्थिति सही न होने पर इनके पिताजी नें कालीमठ मन्दिर के पास एक चाय की दुकान खोली। अपने पिताजी के साथ इन्होंने भी दुकान के कार्यों में भी हाथ बाँटना शुरु किया। साथ ही पढ़ाई भी जारी रखी। कई बार अपने आप पिताजी की इच्छा के विरुद्ध मजदूरी की एवं रेत-बजरी, ईटें ढोने का भी काम किया साथ ही चाय व खाने की दुकान में भी हमेशा हाथ बंटाते रहेे। उनके परिवार ने खेती कम होने के कारण 4 किमी0 दूर अपने पंडितों के गाँव ह्यूण में कई वर्षों तक खेती भी की। श्रीनगर में कॉलेज जीवन से ही लखपत ट्यूशन पढ़ाकर अपना व अपने भाई-बहिन का खर्चा निकालते थे। इनके पिताजी अपनी छोटी सी दुकान में हमेशा भूखे, जरुरतमन्द आदि को भोजन एवं सहारा देते थे। इनके पिताजी नें अपनी भूमि विद्यालय, एएनएम सेन्टर एवं साधन सहकारी समिति के लिए दान दी जबकि इनके पास बहुत कम जमीन थी। लेकिन एक बार इनकी दुकान को किसी की नजर लग गई और दुकान में आग लग गई। पूरी दुकान जलकर राख हो गई थी। इस घटना से उबरे ही थे की 1998 में मद्महेश्वर घाटी में हुये भारी भूस्खलन में इनका सम्पूर्ण घर, पशु एवं जमीन सब तबाह हो गया जिस कारण पूरे परिवार ने कालीमठ छोड़ गुप्तकाशी में सिंलोजा माता के मंदिर की धर्मशाला में शरण ली।

माता पिता नें दिया हौंसला।

आपदा में सब कुछ तबाह होने के बाद भी माता पिता नें इनका हौसला बढ़ाया जिस कारण इनका संघर्ष जारी रहा। इसके बाद इन्होंने हरियाणा के कुरुक्षेत्र और कैथल में अनेक विद्यालयों व कोचिंग सेन्टरों में 2004 तक अध्यापन कार्य किया। इस दौरान जीवन के कई उतार-चढ़ावों को पार करते हुए एक बार कुरुक्षेत्र में अध्यापन कार्य छोड़कर मजदूरी करने भी गये परन्तु कोई भी काम नहीं मिला। फिर एक दुकानदार के साथ स्टेशनेरी के सामान की साइकिल पर फेरी लगाई। लेकिन पढाऩे की इच्छा से इन कामों में मन नहीं लगा। फिर से ट्यूशन पढ़ाया और एक विद्यालय में अध्यापन कार्य शुरु किया।

पिताजी नें दी घर लौटने की सलाह। आज लोगों के लिए है प्रेरणास्रोत! पलायन को रोकने मे भी अहम भूमिका निभाई।

जुलाई 2004 में अपनें पिताजी की सलाह पर वापस घर लौटकर उत्कृष्ट शिक्षा के लिए कार्य करने का मन बनाया और कुरुक्षेत्र हरियाणा को छोड़ गुप्तकाशी में विद्यालय की स्थापना की। इस फैसले नें इनके जीवन की दिशा और दशा बदल कर रख दी क्योंकि गुप्तकाशी में संचालित इनका डॉ0 जैक्स वीन नेशनल स्कूल आज केदारघाटी ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड से लेकर देश के कोने कोने तक लोगों के मध्य अपनी अलग पहचान बनाने में सफल सिद्ध हुआ है। चाहे वो गुणवत्तापरक शिक्षा को लेकर हो या लोकसंस्कृति को संजोने के अभिनव प्रयास या फिर सृजनात्मक गतिविधियों का केंद्र। विगत 18 सालों में शिक्षा के इस मंदिर नें नये आयाम स्थापित किये हैं। इस विद्यालय के छात्र आकाश सजवाण नें एनडीए की प्रतिष्ठित परीक्षा उत्तीर्ण कर विद्यालय, केदारघाटी ही नहीं रूद्रप्रयाग जनपद का नाम भी रोशन किया है। विद्यालय के 50 से अधिक छात्रों का चयन नवोदय और सैनिक स्कूल घोडाखाल हेतु हो चुका है। जबकि खेलकूद प्रतियोगिता से लेकर सांस्कृतिक गतिविधियों में दर्जनों छात्रों नें राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहराया है। ठेट पहाड़ में विषम परिस्थितियों में संचालित इस स्कूल नें न केवल गुणवत्तापरक शिक्षा मुहैया करवाई है अपितु शिक्षा के लिए पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोकने मे भी अहम भूमिका निभाई।

रंगमंच और लोकसंस्कृति के है मजबूत स्तम्भ!

विद्यार्थी जीवन से ही लखपत सिंह राणा का संस्कृति से और रंगमंच से इनका गहरा लगाव रहा है। रामलीला से लेकर दशहरा, पाण्डव नृत्य, बगड्वाल नृत्य, नंदा की कथा, सुमाड़ी कू पंथ्या दादा, चक्रव्यूह, कमलव्यूह, गरुड़ व्यूह, नंदा राज जात आदि मंचीय अनुष्ठानों में स्वयं प्रतिभाग तो कर ही रहे हैं साथ ही विद्यालय के छात्र-छात्राओं को भी इन सभी कार्यक्रमों में प्रतिभाग करवा रहे हैं। 13 हजार फीट की ऊँचाई पर हिमालय की गोद में बसे मनणा बुग्याल में स्थित महिष मर्दिनी के मंदिर के लिए विशाल यात्रा के लिए प्रयास किये। इन्होने अपने विद्यालय में पहाड के वाद्य यंत्रो व पहाडी हस्तशिल्प का म्यूजिम भी तैयार किया है जहां आपको पहाड से संबंधित हर चीज दिखाई देगी।

आपदा नें दिये जख्म! केदारनाथ आपदा मे लोगों के लिए बने मसीहा।

लखपत राणा का आपदा से अपने घर को तबाह होते देखा है। इसलिए जब भी कोई परेशानी में होता है तो उसकी मदद करने को आगे आते हैं। केदारनाथ आपदा मे लोगों के लिए बने मसीहा बनें। इस दौरान कई दिनों तक सैकड़ो यात्रियों की सेवा डॉ0 जैक्स वीन नेशनल स्कूल में तो की ही है साथ ही कई सरकारी संगठनों को भी विद्यालय में ठहराकर राहत एवं बचाव कार्यों में सहयोग किया। साथ ही एनडीआरएफ, बीएसएफ, धाद आदि संगठनों के कार्यकर्ताओं को यहाँ उत्कृष्ट सेवा के दौरान ही सम्मानित कर उनका हौंसला बढ़ाया। आपदा से प्रभावित कई बच्चों को निशुल्क शिक्षा व छात्रावास की व्यवस्था की जिनमें बंगाल की दो बालिकायें भी शामिल हैं जिनके पिता की एक हादसे में मृत्यु हो गई थी एवं परिवार के नकारात्मक रवैये के कारण उनकी माँ के सामने उन्हें पालने की विकट समस्या आ गई थी उन बालिकाओं को सहारा देकर न केवल पढ़ाया लिखाया बल्कि उनके लिए बेहतर छात्रावास व्यवस्थायें प्रदान की। इन जरूरतमंद बालिकाओं के ठेठ बंगाली परिवेश से आकर यहाँ के हिसाब से अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा तो दी ही खेलों में भी उनकी प्रतिभा को निखारा और दोनों बहिनों ने प्रदेश स्तर तक विद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा लखपत राणा नें समाज की सेवा का बीड़ा उठाया है जिसमें गरीब कन्याओं की शादी में सहयोग करना, स्वच्छ भारत अभियान, पोलियो उन्मूलन, वृक्षारोपण, बालिका शिक्षा आदि पर निरंतर कार्य कर रहे हैं।

बकौल लखपत राणा मेरी प्रेरणा मेरे पिताजी, माताजी, पत्नी और फ्राँस के डॉ0 जैक्सवीन हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में हमेशा मुझे हौंसला दिया। मनुष्य को जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। जबकि अपनी माटी और संस्कृति को कभी भी नहीं भुलाना चाहिए। यही हमारी असली पहचान है। बेहतर शिक्षा के आभाव मे पहाड़ से पलायन हो रहा है। मेरी कोशिश है कि छात्रों को गुणवत्तापरक शिक्षा दे सकूँ।

वास्तव मे देखा जाय तो लखपत राणा आज उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं जिन्हें पहाड़ आज भी पहाड़ लगता है। लखपत राणा नें पहाड़ मे रहकर न केवल पलायन के खिलाफ चट्टान बनें अपितु रंगमंच और लोकसंस्कृति को भी नई पहचान भी दिलाई। केदार घाटी के आइकॉन लखपत सिंह राणा को धरोहर संरक्षण सम्मान मिलने पर बहुत बहुत बधाई। आशा करते है कि हर साल आपको ऐसे अनगिनत सम्मान मिलते रहे।