Home उत्तराखंड 64 वर्ष का चमोली एक रिपोर्ट

64 वर्ष का चमोली एक रिपोर्ट

54
0

मैं चमोली हूं!– 63 बरसों में न तस्वीर बदली न तकदीर, आपदाओं नें भूगोल ही नहीं इतिहास भी बदल डाला, विकास की दौड़ में आज भी कोसों दूर..

ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
आज उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली का जन्मदिन है। आज चमोली 63 बरस का हो गया है। 24 फरवरी 1960 को पौड़ी जनपद से अलग होकर पृथक जनपद बना था। चन्द्र्मोली से लेकर चमोली, ज्योत्रीमठ से लेकर कत्युरी राजवंश, चिपको वूमेन गौरा देवी से लेकर गोल्डन गर्ल मानसी नेगी , हिमालयी महाकुंभ नंदाराजजात से लेकर रम्माण तक का सफ़र बहुत ही गौरवाविन्त कर देने वाला रहा है।

वहीं दूसरी ओर चमोली का आपदाओं से चोली दामन का साथ रहा है। अलग जनपद बनने के इन 6 दशकों में चमोली को सबसे ज्यादा नुकसान प्राकृतिक आपदाओं नें किया है। आपदाओं नें जनपद का भूगोल ही नहीं इतिहास भी बदल कर रख दिया है। ताजा उदाहरण जोशीमठ है। जहां भू-धसाव की वजह से इस ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत के शहर पर संकट के बादल मंडरा गये है। इतिहास पर नजर दौडायें तो 20 जुलाई 1970 को बेलाकूची कस्बे के बहनें और गौणा ताल टूटने की विभिषिका के निशान आज भी मौजूद हैं। 1999 के भूकंप से लेकर 2006 की भारी बारिश नें चमोली को बहुत नुकसान पहुंचाया। साल 2013, 2018, 2019 और 2020 की डरावनी बरसात की आपदाओं नें और फरवरी 2021 में रैणी गांव के पास बहनें वाली ऋषि गंगा में ग्लेशियर टूटने के बाद आई विनाशलीला और अब जोशीमठ भू-धसाव नें चमोली को गहरे जख्म दिये। जिस कारण चमोली विकास की दौड़ में पीछे छूट गया परिणामस्वरूप आज भी चमोली के दर्जनो गांवो को मूलभूत सुविधाओं का इंतजार है। 6 दशक बाद भी विकास की बाट जोह रहा है चमोली। एक अदद मेडिकल कॉलेज, अस्पतालों में मैन पावर की कमी, पर्यटन स्थलों का आशानुरूप विकसित न होना, सडक नेटवर्क, दूरसंचार, विद्युत की समस्याओं का अंबार आज भी बदस्तूर जारी है। आज भी बडा दुःख होता है जब जनपद में स्वास्थ्य सेवाओं के आभाव में कोई गर्भवती महिला अस्पताल पहुंचने से पहले ही रास्ते में ही दम तोड देती है। सड़क न होने से बीमार व्यक्ति को कुर्सी में पैदल ले जाना पडता है। पुल न होने पर लोगो को बल्लियों के सहारे जान हथेली पर रखकर अपने गंतव्य तक पहुंचना पडता है। सबसे दुखदाई स्थिति ये है कि डिजिटल युग के इस दौर में जनपद के कई क्षेत्रों में आज भी फोन के सिग्नल नहीं पहुंच पाई है। कई विद्यालय ऐसे हैं जहां छात्र छात्राओ को सांइस स्ट्रीम पढने को ही नहीं मिल रहा है। पृथक राज्य निर्माण के दो दशक बीत जाने के बाद भी यदि हम अपने वाशिंदो को मूलभूत सुविधायें भी मुहैया नहीं करवा सके तो ये माना जा सकता है कि जनपद चमोली विकास की दौड़ में आज भी कोसों दूर है।

इन सबके इतर हमारे जनपद के नौजवानों नें तमाम समस्याओं और अभावों के बीच अपने सुनहरे भविष्य की उम्मीदों को पंख लगायें हैं। जनपद के युवाओं नें नीट, इंजीनियरिंग सहित अन्य परीक्षाओं में सफलता हासिल करके जनपद का नाम रोशन किया है। गोल्डन गर्ल मानसी नेगी, जर्मनी में पीएचडी के लिए चयनित ज्योति बिष्ट जैसे कुछ उदाहरण है जिन्होंने जनपद वाशियों को गौरवान्वित होने के अवसर प्रदान किया है। युवाओं की सफलता ये चरितार्थ करती है कि विपरित परिस्थितियों और सीमित संसाधनों के बाद भी उन्होंने अपनी प्रतिभाओं का लोहा मनवाया है।

चमोली के साथ आज ही के दिन अस्तित्व में आये पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जनपद की भी कहानी हूबहु इसी तरह है। भले ही प्रकृति नें तीनों जनपद पर अपना बेशुमार प्यार और दौलत न्यौछावर किया हो लेकिन इन तीनों जनपद की हकीकत अभी भी दुःखदाई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में चमोली के वाशिंदो को मूलभूत सुविधायें मय्यसर हो पायेंगी और चमोली में भी विकास का पहिया तेजी से घूमेगा।