कांग्रेस का मौजूदा राजनीतिक संकट उसकी संभावनाओं पर भारी पड़ सकता है । नेता प्रतिपक्ष का चयन और कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी में चूक सत्ता में वापसी की उसकी उम्मीदों पर पानी फेर सकती है । यही कारण है कि आलाकमान निर्णय लेने में जल्दबाजी नहीं दिखा रहा है। सभी पहलुओं के व्यवहारिक व तकनीकी अध्ययन के बाद ताजा राजनीतिक हालात पर कांग्रेस अध्यक्ष बीच का रास्ता निकाल सकती हैं। इसके तहत कांग्रेस के तीन छत्रपों को जिम्मेदारी देकर एडजस्ट किया जा सकता है । इस फार्मूले से क्षेत्रीय और जातीय संतुलन साधा जा सकता है। कांग्रेस आलाकमान पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत , वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को जिम्मेदारी देकर इस सियासी अध्याय का पटाक्षेप कर सकती है ।
गौरतलब है कि नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की मृत्यु के बाद प्रदेश कांग्रेश में नेता प्रतिपक्ष को लेकर जो खींचतान शुरू हुई , वह अब प्रदेश अध्यक्ष के बदले जाने तक पहुंच गई है । पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में बैठे कांग्रेस के रणनीतिकार कोई हल नहीं निकाल पाए । थक हार कर यह काम कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को सौंप दिया गया है । हालांकि उनके द्वारा अभी तक इस पर निर्णय नहीं लिया गया है , लेकिन राजनीतिक प्रेक्षकों की माने तो कांग्रेस आलाकमान बीच का रास्ता निकाल सकता है। इसके तहत पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है । इसके साथ प्रीतम सिंह को नेता प्रतिपक्ष व किशोर उपाध्याय को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी जा सकती है । यह फार्मूला क्षेत्रीय संतुलन के साथ जातीय समीकरण लिहाज से सटीक बैठता है ।
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस आलाकमान इस सियासी तपिश को किस तरह ठंडा करती है, यह देखना दिलचस्प होगा। यदि कांग्रेस के सभी छत्रपों को एडजस्ट करने में कांग्रेस थिंक टैंक नाकाम रहा तो इसका प्रतिकूल प्रभाव विधानसभा चुनाव में पडना तय है ।
(डा बृजेश सती/ स्वतंत्र टिप्पणीकार)
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