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आस्था और विश्वास !– दहकते अंगारो के बीच जाख देवता का हैरतंगैज नृत्य

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आस्था और विश्वास !– दहकते अंगारो के बीच जाख देवता का हैरतंगैज नृत्य, 15 अप्रैल को जाखधार में होगा भव्य आयोजन!
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
देवभूमि के कण कण में भगवान का वास होता है। यहां विराजमान देवताओं की दैवीय शक्ति के आगे हर कोई नतमस्तक हो जाता है। 2 गते बैशाख यानी 15 अप्रैल को जाखधार में दहकते अंगारो के बीच जाख देवता के हैरतंगैज नृत्य को देखने हजारों की संख्या में श्रदालू पहुंचेगे। प्रतिवर्ष जाख देवता के मंदिर में दो दिवसीय जाख मेला आयोजित होता है। ये मेला 14 अप्रैल से शुरू होगा और 15 अप्रैल को हजारो लोग जाखधार में दहकते अंगारो के बीच जाख देवता के हैरतंगैज नृत्य के साक्षी बनेंगे।

गौरतलब है कि रूद्रप्रयाग जनपद के गुप्तकाशी क्षेत्र के अन्तर्गत देवशाल गांव में चौदह गांवों के मध्य स्थापित जाखराजा मंदिर में प्रतिवर्ष बैशाख महीने के आरंभ में जाख मेले का भव्य आयोजन किया जाता है। मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व से भक्तजन बड़ी संख्या में नंगे पांव, सिर में टोपी और कमर में कपड़ा बांधकर लकडि़यां, पूजा व खाद्य सामग्री एकत्रित करने में जुट जाते हैं। इसके साथ ही भव्य अग्निकुंड तैयार किया जाता है। इस अग्निकुंड के लिए ग्रामीणों के सहयोग से लगभग 50 से 100 कुंतल लकड़ियों से कोयला बनाया जाता है। मेले के पहले दिन बैसाखी पर्व पर रात्रि को अग्नि कुंड व मंदिर के दोनों दिशाओं में स्थित देवी देवताओं की पूजा-अर्चना के बाद अग्नि कुंड में रखी लकड़ियों पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है जो पूरी रात भर जलती रहती है। जिसकी रक्षा में नारायणकोटी व कोठेडा के ग्रामीण रात्रिभर जागरण करके जाख देवता के नृत्य के लिए अंगारे तैयार करते रहते हैं। अगले दिन जाख भगवान के पश्वा इन दहकते हुए अंगारों के बीच में नृत्य करतें हैं। जब जाख भगवान के पश्वा नंगे पांव इन दहकते अंगारो में नृत्य करते है तो सभी श्रद्धालुओं के सर श्रद्धा से झुक जाते हैं। और जाख महाराज के जयकारे से पूरा मंदिर परिसर गूँज उठता है साथ ही भगवान की दैवीय शक्ति से भक्तों का साक्षात्कार होता है।

14 गांवों का आस्था का केंद्र

वैसे तो जखराजा का मेला पूरी केदार घाटी के लिए आस्था का केंद्र रहता है लेकिन गुप्तकाशी के आस पास मुख्यत 14 गांवों के लोगो की आस्था का केंद बिंदु है। जखराज इस क्षेत्र के क्षेत्रपाल और सूख समृद्धि के देवता हैं। देवशाल, कोठिडा, नारायणकोटि, नाला, सेमी, भैंसारी, सांकरी, देवर, रुद्रपुर, क्यूडी, खुमेरा, बणसु सहित 14 गांवों के सहयोग से प्रत्येक वर्ष ये मेला आयोजित होता है।

केदार घाटी के लोकसंस्कृति कर्मी लखपत सिंह राणा Lakhapat Singh Rana Kalimath कहतें हैं कि मान्यता है कि जाख देवता यक्ष व कुबेर के रूप में भी पूजे जाते हैं। उनके दिव्य स्वरूप की अलौकिक लीला प्रतिवर्ष अग्निकुंड में दहकते अंगारों पर नृत्य करते हुए दिखती है। अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि से बचने के लिए भी जाख देवता की पूजा-अर्चना की जाती है। जिस भक्त को जाखराजा का आशीर्वाद मिलता है। उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण हो जाती है।

अगर आप के पास भी समय है तो चले आइये केदारघाटी के अराध्य रक्षक यक्षराज जाख देवता के मंदिर में दहकते अंगारो के बीच जाख देवता के हैरतंगैज नृत्य को देखने।