*दल-बदल के दौर में क्यों प्रासांगिक है कमल का कांग्रेस पार्टी को अलविदा कहने का सवाल*
*कार्यकर्ताओं की अनदेखी और संगठन का बिखराव कांग्रेस के लिये बन रहा संकट*
राजनैतिक दलों में दल-बदल जहाँ सामान्य सी प्रक्रिया हो गई है। वहीं चमोली जिले के सीमांत जोशीमठ के कमल रतूड़ी का कांग्रेस को अलविदा कहना जिले के राजनैतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। जहां कांग्रस के कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर उनकी अलविदा कांग्रेस की पोस्ट से हतप्रभ हैं। वहीं इस पोस्ट के सार्वजनिक होते ही उनके राजनैतिक संघर्ष और स्पष्टवादी छवि के चलते राज्य में पदार्पण कर रही आम आदमी पार्टी में उनके शामिल होने के कायास तेज हो गये हैं। हालांकि कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा उनके पार्टी छोड़कर जाने को सामान्य सी प्रक्रिया मानकर चुप है।
सीमांत चमोली जिले के एक कांग्रेस का पुराना सिपाही जिसे जब से देखा कांग्रेस के साथ या संघर्षों में देखा, लेकिन वो नेतृत्व की अनदेखी और संगठन के बिखराव के चलते पार्टी छोड़ने की घोषणा कर चुका है। सीमांत चमोली के जोशीमठ का रहने वाला यह कार्यकर्ता है कमल रतूड़ी। सवाल उठेगा कि वर्तमान में दल-बदल तो सामान्य सी बात है ऐसे में कमल रतूड़ी के पार्टी को अलविदा कहने पर संगठन और कार्यकर्ता की अनदेखी का सवाल बड़ा क्यों हो चला है। तो आपको कमल रतूड़ी की राजनैतिक जीवन पर नजर डालनी चाहिए। कमल के राजनैतिक जीवन की शुरुआत 1992 में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्या लेने से हुई जिसके बाद 1996 तक भाराछासं में सक्रियता से कार्य किया। जिके बाद महाविद्यालय गोपेश्वर में 1997 में शिक्षा संकाय अध्यक्ष का अध्यक्ष बनने से राजनैतिक जिम्मेदारियों के निर्वहन का काम शुरु किया, 2004 में भेषज संघ के संचालक का कार्यभार निभाने के बाद राज्य सरकार की ओर से उनकी क्षमताओं को देखते अक्षय ऊर्जा सलाहाकार समिति के सदस्य की जिम्मेदारी दी गई। इसके अलावा छात्र संगठन के जिलाध्यक्ष, कांग्रेस के जिला महामंत्री, सेवादल के जिलाध्यक्ष, बेरोजगार मोर्चे के प्रदेश महामंत्री, राज्य कांग्रेस के सह प्रवक्ता, सांसद प्रतिनिधि, बेरोजगार संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष, युवा संघर्ष समिति के जिला महामंत्री जैसे पदों पर कार्य कर कांग्रेस को पोषित करने का काम किया। इतना ही नहीं कमल ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन के संघर्ष में जेल यात्रा की, 1998 में बेरोजगारी के विरोध में आमरण अनशन, पौड़ी मंडल मुख्यालय पर 2 वर्ष तक क्रमिक धरना प्रदर्शन किया। इस दौरान चक्का जाम, भूख हड़ताल, तालाबंदी और जेल यात्रा की। वर्ष 2 हजार में देहरादून में सरकार की हठधर्मिता के खिलाफ आत्मदाह के प्रयास के बूते संघर्ष, थैंग-मारवाड़ी सड़क के लिये संघर्ष जैसे कार्यों से बेरोजगार और आम लोगों की आवाज भी बने। ऐसा नहीं यह संघर्ष महज उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद किये गये। अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौरान भी जन संघर्षों के लिये इलाहबाद और लखनऊ में संघर्षरत रहे। 2001 में भारत उत्थान सभा के नेतृत्व सदभावना यात्रा में भी शिरकत की। वर्तमान में कमल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश सदस्य के रुप में कार्य कर रहे थे। ऐसे में सोशल मीडिया पर उनकी अलविदा कांग्रेस की पोस्ट पार्टी के भीतर हो रहे धडेबाजी और अलगाव के संकेत दे रहा है। जो लोग कमल रतूड़ी और राज्य की राजनीति को समझते हैं। वे कमल जैसे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के पार्टी छोड़ने को पार्टी के लिये नुकसान का सौदा बता रहे हैं। पार्टी की जिला कार्यकारणी को अपनी नाराजगी की वजह बताने की बात कहते हुए कमल कहते हैं कि जब पार्टी में संगठन और कार्यकर्ता को लेकर कोई गम्भीर चिंतन और विचार नहीं तो एक कार्यकर्ता के रुप में ऐसे संगठन को लेकर नाराजगी हर कार्यकर्ता में है। जिस पर संगठन को विचार करना चाहिए कि पार्टी के संघर्ष के दौर में संघर्षशील कार्यकर्ताओं का सही उपयोग न किया जाने के चलते पार्टी का भविष्य क्या होगा।
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