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25 दिनों की देवरा यात्रा के बाद माँ नन्दा गर्भ गृह में होगी विराजमान

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जोशीमठ: उच्च हिमालय छेत्र की आराध्य लाता की मां नन्दा देवी की उत्सव डोली अपने 25 दिन की नीती घाटी भ्रमण के बाद आज शांम को अपने स्थान सिद्ध पीठ लाता गांव मे वापस पहुंच जाएगी।आपको बता दू कि बीते 6 सितम्बर को लाता मंदिर से रवाना हुई मां नंदा की डोली सीमांत क्षेत्र के प्रत्येक गावो में प्रवास/भ्रमण कर अंतिम गांव नीती तक होकर आज शांम को अपने स्थान लाता में शुकुशल वापस पहुंच जाएगी। मां नंदा देवी की लोक जात दयोरा यात्रा/भ्रमण प्रत्येक 12 वर्ष में निकलती हैं।पिछले दो वर्ष कोरोना महामारी के चलते यह यात्रा इस बार चौदह वर्ष बाद निकली।सीमांत घाटी के ग्रामीणों ने लोक जात दयोरा यात्रा में देव डोली को हाथो हाथ लिया।इस दौरान मां नंदा के जय जयकारों से सम्पूर्ण घाटी गूंज उठी।तिब्बत सीमा पर लगभग 12 हजार फीट से भी ऊपर की ऊंचाई पर बसे अंतिम गांव नीती में कड़ाके के ठंड के बीच भी ग्रामीणों ने मां नंदा देवी की डोली की जोरदार स्वागत किया 6 सितम्बर को लाता सिद्धपीठ मंदिर से मां की डोली निकल कर तोलमा, फागती,जुम्मा, कागा,द्रोणागिरी, गरपक, सेंगला, जेलम, कोशा,मलारी, कैलाशपुर, मैहरगांव,फरकिया गांव, बाम्पा,गमशाली, नीती, लोंग, सूकी व भल्लागांव भ्रमण कर आज शांम तक अपने स्थान लाता गांव के सिद्धपीठ मंदिर में पहुंच जाएगी।बताया जाता है कि लाता से आगे व नीती तक जितने भी गॉव बसे हैं वो सब मां नन्दा देवी के मैत यानी मायका है और नीती गॉव मे मां नन्दा की बहिन निवास करती है इसलिए प्रत्येक 12 वर्ष में घाटी के लोगो के बुलावा पर मां अपने मैत/मायका व बहिन को मिलने के लिए निकल पड़ती है। लाता नन्दा दयोरा लोकजात यात्रा/भ्रमण (लाता सिद्धपीठ मंदिर से निकलकर वापस लाता सिद्धपीठ मंदिर तक) 25 दिनों मे पूरा होता है।इसमें लगभग 250 किमी की पैदल यात्रा होती है और इस यात्रा/भ्रमण के दौरान चौदह ग्राम पंचायत के लगभग 20 गॉवों मे मां नन्दा देवी का प्रवास होता है।प्रवास के दौरान मां प्रत्येक गॉवो मे क्षेत्रपाल देवता,भूमियाल देवता व विभिन्न देवी देवताओं से भेट कर प्रत्येक गॉव के हर परिवार के आंगन मे पहुँच कर ग्रामीणों को कुशलक्षेम की आशीर्वाद देती हैं।औऱ विभिन्न गांवों मे अलग अलग तरह का पतर लगाया जाता है जिसमे गणेश पतर,बाघ पतर, सूरज पतर,मुखोटा नृत्य,मोर-मोरणी नृत्य,लाटा-लाटी नृत्य,गोपीचंद नृत्य ,रण-राधिका नृत्य व राम-लक्ष्मण नृत्य का आयोजन दिन व रात भर किया जाता है।गॉव वालो के तरफ से मां नन्दा देवी का स्वागत ढोल-दमाऊ,भोकरा, मांगलिक गीत,झुमैलो,भजन-कीर्तन, पौराणिक भोटिया पौणा नृत्य व चाचरी आदि से किया जाता है इस तरह के पौराणिक व आलौकिक संस्कृति को देखकर ग्रामीण मन्त्र मुग्ध हो जाते और मां नन्दा की जय जयकार करने के लिए विवश हो जाते। जब माता की डोली किसी भी गॉव मे प्रवेश करती हैं तो उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि मानो साक्षात उच्च हिमालय की आराध्य देवी गॉव मे पहुँच चुकी है,इसीलिए तो इस घाटी व प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है।इस दयोरा यात्रा में पंडित,पश्वा (जिन पर देवता अवतारित होता है) सहित लगभग चार-पांच सौ आदमी डोली के साथ चलते हैं।जब माता की डोली यात्रा पर चलती है तो गाजा-बाजा,ढोल- दमाऊ,भोकरा, शंखनाद व माता की जय जयकारों से पूरा नीती घाटी नन्दा मय हो जाता है।इस वर्ष सीमान्त घाटी मे लगभग 15 से 20 हजार लोग मां के दर्शन व आशीर्वाद लेने अपने अपने गॉव पहुँचे।आपको बता दू कि सीमान्त घाटी के अधिकांश लोग नौकरी पेशा लोग है जो कि बाहर देश विदेश मे प्रवास करते हैं मगर इस वर्ष दयोरा/यात्रा में सभी गॉवो के अधिकांश लोग इस लोकजात पर्व का हिस्सा बने औऱ मां के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त किया।प्रत्येक बारह वर्ष में होने वाली लोकजात दयोरा यात्रा अपने आप मे घाटी के लिए एक ऐतिहासिक यात्रा है।चौदह वर्ष पहले की लाता नन्दा देवी लोकजात दयोरा यात्रा और वर्तमान में सम्पन्न हुई लाता नन्दा देवी लोकजात दयोरा यात्रा की यदि तुलना की जाय तो ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले समय में यह दयोरा यात्रा औऱ निखर कर भव्य व विशाल होगा।