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मांगल गर्ल नंदा सती के मांगल गीत होंगे शंकराचार्य के महासम्मेलन के आकर्षण

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दावा किया जा रहा है कि 200 साल बाद एक साथ मिलेंगे तीन पीठों के शंकराचार्य।

जोशीमठ। 17 सितंबर को मांगल गर्ल नंदा सती जोशीमठ में आयोजित महासम्मेलन में अपनी मांगल गीतों की प्रस्तुति देंगी। उक्त महासम्मेलन में गढरत्न और गढ़वाल के प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी की ओर से गणेश वंदना, जागर व गीतों और रम्माण की प्रस्तुति दी जाएगी।

ये है नंदा सती!

सीमांत जनपद चमोली के पिंडर घाटी के नारायणबगड ब्लाॅक के नारायणबगड गांव की नंदा सती नें मांगल गीतों के संरक्षण और संवर्धन के जरिये एक नयी लकीर खींची हैं। महज 21 बरस की छोटी सी उम्र में नंदा सती द्वारा गाये जानें वाले मांगल गीतों और लोकगीतों को सुनकर हर कोई अचंभित हो जाता है। यही नहीं हारमोनियम पर उनकी पकड़ वाकई अदभुत है। नंदा की 12 वीं तक की पढाई लिखाई नारायणबगड गांव में ही हुई। वर्तमान में नंदा हेमवंती नंदन केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर में अध्यनरत है और संगीत विषय में स्नातक की अंतिम वर्ष की छात्रा है।

ये हैं पौराणिक मांगल गीत!

पहाड़ का का लोकजीवन उत्सवों एवं तीज त्यौहारों से अटा पडा हुआ है। जन्म से लेकर मृत्यु तक यहां उत्सव मनाए जाते हैं। लगभग प्रत्येक महीने में यहाँ कोई न कोई तीज त्योहार होता है। इसलिए यह उत्सवप्रिये समाज हर पल प्रसन्नता के क्षणों में जीता है। अपनी उत्सवप्रियता को वह गीत- संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। इन्हीं में से एक है पौराणिक मांगल गीत, जिनका जुड़ाव सीधा लोगों से होता है। मांगल गीतों में पहाड़ के लोकजीवन का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। इनकी मिठास लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है। पहाड के घर गांवो में सभी शुभ कार्यों शादी, चूडाकर्म इत्यादि के अवसरों पर जब मधुर कंठों में मांगल गीत गाये जाते हैं तो पूरा वातावरण महकने लगता है। या यों कहिए की मांगल गीत खुशियों के गीत हैं, देवताओं के आह्वान के गीत और पूरे लोक, समाज, परिवार को राजी खुशी रखने की कामना के गीत हैं। बदलते परिवेश और आधुनिकता की चकाचौंध में हमारे ये पौराणिक मांगल गीत भी विलुप्ति की कगार पर हैं। विगत सालों में डाॅ माधुरी बडथ्वाल, गायिका रेखा धस्माना उनियाल, लक्ष्मी शाह, पतंजलि मांगल टीम, लदोला महिला मंगल दल से लेकर केदारघाटी की महिला मंगल दलों की मांगल टीम, गायक सौरभ मैठाणी की मांगल टीमों नें जरूर पारम्परिक मांगल गीतों को सहेजने के भगीरथ प्रयासों को अमलीजामा पहनाया है। इन सबसे इतर नंदा सती युवा पीढ़ी की प्रतिनिधि मांगल गायिका है। लोग इन्हें मांगल गर्ल के नाम से जानते हैं।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं मांगल गर्ल!

मांगल गर्ल नंदा सती बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। वो न केवल एक बेहतरीन मांगल गायिका है अपितु प्रतिभाशाली छात्रा और खिलाडी भी है जबकि एनसीसी की होनहार छात्राओं में शुमार है। मांगल गीतों की शानदार प्रस्तुति पर उनकी लोक को चरितार्थ करती जादुई आवाज और हारमोनियम पर थिरकती अंगुलियां लोगों को झूमने पर मजबूर कर देती है। बकौल नंदा सती, हमारी सांस्कृतिक विरासत ही हमारी असली पहचान हैं। पुराने समय में गढ़वाल क्षेत्र में हर विवाह समारोह या फिर किसी भी शुभ कार्य के दौरान महिलाओं द्वारा मांगल गीतों को गाने की परम्परा थी। बदलते समय और आधुनिकिरण के साथ धीरे-धीरे ये परंपरा खत्म होने लगी है। समय बीतने के साथ आज इन मांगल गीतों की जगह हिंदी और पंजाबी गानों ने ले ली है। आवश्यकता है हमें अपनी पौराणिक मांगल गीतों के संरक्षण और संवर्धन की। कई लोग इस ओर प्रयासरत भी है। इस साल हरिद्धार महाकुंभ में भी मांगल गीत के कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे जो की हमारी लोकसंस्कृति के लिए सुखद है। यदि सभी अपने अपने स्तर से मांगल गीतों को प्रोत्साहित करने की कयावद करेंगे तो जरूर हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध कर पायेंगे। मेरा सपना है की उत्तराखंड के मांगल गीतों को संरक्षित करके उनको नयी पहचान दिला सकूं, बस अभी तो शुरूआत भर की है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिये मांगल गीतों को हजारों लोगों तक पहुंचाया ..

नंदा सती नें डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मांगल गीतों के जरिये लोकसंस्कृति की सौंधी खुशबू को देश विदेश तक हजारों लोगों तक पहुंचाया। नंदा सती, विभिन्न ग्रुपों, संगठनों, फेसबुक लाइव, इंस्टाग्राम और यूट्यूब के जरिये मांगल गीतों की शानदार प्रस्तुति से हर किसी को मंत्रमुग्ध करती है। जिस कारण लोगों को झुकाव अपने पौराणिक मांगल गीतों की ओर हुआ। खासतौर पर युवा पीढ़ी के युवाओं को नंदा की ये अनूठी मुहिम बेहद पसंद आई है।

गांव के बुजुर्गों से विरासत में मिले मांगल गीतों को गुनगुना!

मांगल गर्ल नंदा सती कहती हैं मांगल गीत हमारी सांस्कृतिक विरासत की पहचान है। इसके बिना हमारे लोकजीवन का कोई भी शुभ कार्य, उत्सव, तीज- त्यौहार पूर्ण नहीं हो सकता है। मांगल शुभ, उल्लास और ख़ुशी का प्रतीक है। यह उत्तराखंडी की पौराणिक लोकसंस्कृति की पहचान है। इनके बिना पहाड़ के लोक की कल्पना करना असंभव है। मैं बहुत ख़ुशनसीब हूँ की मुझे मांगल गीतों की समझ और महत्ता अपने गांव के बुजुर्गों से विरासत में मिली। जो बरसों से मांगल और लोकगीतों को एक पीढी से दूसरी पीढी को हस्तांतरित करते आ रहें हैं।