विधानसभा में बजट सत्र के तीसरे तीन एक दिलचस्प घटनाक्रम हुआ। प्रश्नकाल के बाद कांग्रेस के विधायक प्रीतम सिंह ने व्यवस्था का सवाल उठाते हुए बीते दिन सदन से कांग्रेस के 15 विधायकों के निलंबन को नियम के विपरीत बताया। उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष को बगैर चेतावनी और सरकार की ओर से प्रस्ताव आए बिना सदस्यों को सीधे निलंबित केरने का अधिकार नहीं है। इसके लिए प्रीतम ने विधानसभा की कार्य नियमावली के नियम 297 (1) और 293 (3)(a) का हवाला दिया। संविधान की गहन जानकारी रखने वाले भाजपा के विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने प्रीतम सिंह की बातों से सहमति जताते हुए विधानसभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खंडूरी से आग्रह किया कि वह उदारता दिखाते हुए विधायकों निलंबन के अपने कल के फैसले को कार्यवाही से हटा दें। इस पर संसदीय कार्य मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल ने कहा कि ऐसा करने से पीठ और सदन दोनों का मान बढ़ेगा। इसके बाद प्रेम चंद अग्रवाल ने बकायदा सदन में इसका प्रस्ताव रखा। बावजूद इसके विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने सरकार के इस प्रस्ताव को यह कहते हुए कि उन्हें विधानसभा कार्य नियमावली के नियम 298 के तहत विधायकों को सीधे निलंबित करने का अधिकार है, खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि निलंबन से पहले वह संबंधित विधायकों को सदन से बाहर जाने को कह चुकी थीं। सदन के भीतर हुआ यह घटनाक्रम आज गैरसैंण में चर्चा का विषय बना रहा। हालांकि अनौपचारिक बातचीत में विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष के भी अधिकांश विधायक स्पीकर खंडूरी के फैसले से सहमत नहीं थे। यह भी सच है कि विधायक निलंबन के दाग से बचना चाहते थे।
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