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रिंगाल से रोजगार की राह!– रिंगाल मेन ने भावी शिक्षकों को सीखाए रिंगाल के उत्पाद बनाना

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टिहरी डाइट में आयोजित 5 दिवसीय कौशलम कार्यक्रम में भावी शिक्षकों ने रिंगाल के उत्पाद बनाने के गुर सीखे। 1 अक्तूबर से 5 अक्तूबर तक आयोजित हुई कार्यशाला में प्रसिद्ध हस्तशिल्पि और रिंगाल मेन राजेंद्र बडवाल और नवीन बडवाल ने भावी शिक्षकों को सिखाए रिंगाल से विभिन्न उत्पाद बनाना। 5 दिवसीय प्रशिक्षण में 40 से अधिक प्रशिक्षु भावी शिक्षकों ने प्रशिक्षण लिया। सबने रिंगाल मेन राजेंद्र बड़वाल की बेजोड़ हस्तशिल्प कला की तारीफ की। कार्यशाला में रिंगाल के टोकरी, फूलदान, घौंसला, पेन होल्डर, फुलारी टोकरी, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोपी, स्ट्रैं, वाटर बोतल, साइकिल सहित विभिन्न उत्पादों को बनाना सिखाया।

रिंगाल से रोजगार..

हिमालयी महाकुंभ नंदा देवी राजजात यात्रा और नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा में रिंगाल की छंतोली बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। रिंगाल की छंतोली के बिना आप नंदा देवी राजजात यात्रा की परिकल्पना नहीं कर सकते हैं। रिंगाल के विभिन्न उत्पाद आज भी लोगों को बेहद भाते हैं। रिंगाल से पहले जहां केवल पांच या छह प्रकार का सामान बनाया जाता था वहीं अब 200 से अधिक प्रकार का सामान बनाया जा रहा है। पारम्परिक हस्तशिल्प से इतर अब रिंगाल को मार्डन लुक देकर रिंगाल के बेजोड हस्तशिल्पियों नें रिंगाल की छंतोली, ढोल दमाऊ, हुडका, लैंप शेड, लालटेन, गैस, टोकरी, फूलदान, घौंसला, पेन होल्डर, फुलारी टोकरी, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोपी, स्ट्रै, पूजा टोकरी, फाइल फोल्डर, लैंप, गैस, मंदिरों के डिजाइन, सर्विस टोकरी, झूमर, झाड़ू, कूड़ेदान, पैन स्टेंड, खूबसूरत ज्वैलरी, कलाई में बांधे जाने वाले आकर्षक बैंड, रिंगाल की राखी सहित विभिन्न प्रकार के उत्पादों को तैयार कर पहचान दिलाई है। पहाड़ में खेती और पशुपालन के सिमटने से संकट में आए परंपरागत रिंगाल उद्योग को सजावटी सामान की संजीवनी मिल गई है। जहां मॉर्डन फर्नीचर्स केवल दिखावे तक सीमित है जबकि रिंगाल के उत्पादों से घरों की शोभा वास्तविक रूप से बढती है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में रिंगाल को उच्च दर्जा प्राप्त है। फूलों की टोकरी से लेकर रिंगाल की छंतोली इसका उदाहरण है। वहीं रिंगाल का सबसे बड़ा फायदा ये है वो पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद अच्छा होता है। रिंगाल के उत्पाद बेहद हल्के होते हैं। और अन्य की तुलना में आकर्षक और सस्ते भी होते हैं। इन्हें आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है।

ये है रिंगाल!

रिंगाल उत्तराखंड के जंगलों में पाया जाने वाला एक वृक्ष है। ये वृक्ष बाँस प्रजाति का है। बाँस और रिंगाल के बीच अंतर बस इतना है कि बाँस आकार में बहुत बड़ा होता है और रिंगाल थोड़ा छोटा। रिंगाल और बाँस की लकड़ियों की बनावट और पत्तियाँ लगभग एक समान ही होती हैं। इसीलिए रिंगाल को बोना बाँस (Dwarf Bamboo) भी कहा जाता है। जहाँ बाँस की लम्बाई 25-30 मीटर होती है वहीं रिंगाल 5-8 मीटर लंबा होता है। जहाँ रिंगाल 1000-7000 फ़ीट की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है क्योंकि रिंगाल को पानी और नमी की आवश्यकता ज्यादा रहती है वही बाँस सामान्य ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आसानी से पाया जाता है। रिंगाल पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के अलावा भूस्खलन को रोकने में भी सहायक होता है। रिंगाल मेन राजेन्द्र बडवाल कहते हैं कि रिंगाल की 12 प्रजाति होती है लेकिन हमारे क्षेत्र में आठ प्रकार का रिंगाल पाया जाता है। देव रिंगाल, थाम रिंगाल, मालिंगा रिंगाल, गोलू(गड़ेलू) रिंगाल, ग्यंवासू रिंगाल, सरुड़ू रिंगाल, भट्टपुत्रु रिंगाल, नलतरू रिंगाल। लेकिन सबसे उत्तम प्रजाति का रिंगाल देव रिंगाल होता है। रिंगाल उत्तराखण्ड के लोकजीवन का अभिन्न अंग है। इसके बिना पहाड़ के लोक की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। रिंगाल से दैनिक जीवन में काम आने वाले जरुरी उपकरण तो बनते ही हैं, इनसे कई तरह के आधुनिक साजो-सामान भी बनाये जा सकते हैं।

ये हैं रिंगाल मेन राजेंद्र बड़वाल

हाथ में जमीन न हो तो कोई गम नहीं। जिसके पास कला का हुनर है उसके हाथों से कुछ भी दूर नहीं रह सकता। जी हां इन पंक्तियों को सार्थक कर दिखाया है रिंगाल मेन राजेन्द्र बडवाल ने। सीमांत जनपद चमोली के दशोली ब्लाॅक के किरूली गांव निवासी राजेंद्र बडवाल विगत 16 सालों से अपनें पिताजी दरमानी बडवाल जी के साथ मिलकर हस्तशिल्प का कार्य कर रहें हैं। उनके पिताजी पिछले 47 सालों से हस्तशिल्प का कार्य करते आ रहें हैं। राजेन्द्र पिछले छ: सालों से रिंगाल के परम्परागत उत्पादों के साथ साथ नयें नयें प्रयोग कर इन्हें मार्डन लुक देकर नयें डिजाइन तैयार कर रहे हैं। उनके द्वारा बनाई गयी रिंगाल की छंतोली, मोनाल, मोर, ढोल दमाऊ, हुडका, लैंप शेड, लालटेन, गैस, टोकरी, फूलदान, घौंसला, पेन होल्डर, फुलारी टोकरी, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोपी, स्ट्रैं, वाटर बोतल, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, पशुपतिनाथ मंदिर सहित अन्य मंदिरों के डिज़ायनों को लोगों नें बेहद पसंद किया। राजेन्द्र बडवाल की हस्तशिल्प के मुरीद उत्तराखंड में हीं नहीं बल्कि देश के विभिन्न प्रदेशों से लेकर विदेशों में बसे लोग भी है। रिंगाल मेन राजेंद्र बड़वाल की बेजोड़ हस्तशिल्प कला ने हर किसी को हतप्रभ कर दिया है।