आली बुग्याल!– बेपनाह हुस्न और अभिभूत कर देने वाला सौन्दर्य, तो फिर कब आ रहे हो..
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान।
चौमासा के इस मौसम में पहाड के बुग्याल अपने बेपनाह सौन्दर्य से हर किसी को अभिभूत कर रहें हैं। बुग्याल में खिलने वाले सैकड़ो प्रजाति के फूल बुग्यालों की सुंदरता में चार चाँद लगा रहें हैं। बादलो की अठखेलियों के बीच बुग्याल चारों ओर अप्रतिम सौन्दर्य को समेटे हुये है।
उत्तराखंड के हिमालय में कई छोटे-बड़े बुग्याल मौजूद हैं। औली, गोरसों बुग्याल, दयारा बुग्याल, पंवालीकाण्ठा, चोपता, दुगलबिट्टा सहित कई बुग्याल हैं जो बरबस ही सैलानियों को अपनी और आकर्षित करते हैं। लेकिन इन सबसे अलग बेपनाह हुस्न और अभिभूत कर देने वाला सौन्दर्य को समेटे है सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाक में स्थित आली बेदनी बुग्याल। बुरांस, कैल के घने जंगलों, नदी, पशु, पक्षियों के कलरव ध्वनियों के बीच 13 किमी पैदल चलने के उपरान्त 12 हजार फुट की ऊंचाई पर आली और बेदनी के मखमली बुग्याल के दीदार होते हैं। जो एशिया का सबसे बडा मखमली घास का बुग्याल है। यह बुग्याल 5-10 किमी से भी अधिक क्षेत्रफल में विस्तारित और फैला हुआ है। यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त देखना किसी रोमांच से कम नहीं है। ये दोनों दृश्य बेहद ही अद्भभुत और अलोकिक होतें हैं। साथ ही यहाँ से दिखाई देने वाले त्रिशूल और नंदा देवी सहित अन्य पर्वत श्रीखलाओं का दृश्य लाजबाब होता है। वहीं हरी मखमली घास, ओंस की बुँदे, चारों और से हिमालय की हिमाच्छादित नयनाविराम चोटियाँ, धूप के साथ बादलों की लुकाछिपी आपको यहाँ किसी जन्नत का अहसास कराती है।
स्थानीय युवा और ट्रैकिंग व्यवसायी प्रदीप कुनियाल कहते हैं कि आली वेदनी बुग्याल को स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि पहाड़ों से प्यार करने वाले, देश से लेकर विदेशी भी आली की सुन्दरता के कायल है। आली की नैसर्गिक सुन्दरता आपको हिमालय के बहुत करीब ले जाती है। वेदनी आली बुग्याल का अभिभूत कर देने वाला सौन्दर्य हर किसी को बरबस ही आकर्षित और मंत्रमुग्ध करता है। हरे घास का ये मैदान घोड़े की पीठ का आभास दिलाता है। बिष्ट होम स्टे के संचालक और गढभूमि एडवेंचर के सीईओ हीरा सिंह गढवाली कहतें है की आली वेदनी बुग्याल की सुदंरता के सामने हर किसी का हुस्न फीका है। बरसात के समय हरी भरी घास की हरियाली मन को मोहित करती है तो बर्फ के समय पूरा बुग्याल सफ़ेद चादर से चमक उठता है। जबकि यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखना वाकई अद्भभुत है। सरकार को चाहिए की इस बुग्याल को रोपवे से जोडे और पर्यटन के रूप में विकसित करें ताकि पर्यटन को बढावा मिले और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया हो सकें।
ये होते हैं बुग्याल!
पहाड़ों में जहाँ पेड़ समाप्त होने लगतें हैं यानी की टिम्बर रेखा वहां से हरे भरे मखमली घास के मैदान शुरू हो जाते हैं। आपको यहीं पर स्नो और ट्रीलाईन का मिलन भी दिखाई देगा। उत्तराखंड में घास के इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है। ये बुग्याल बरसों से स्थानीय लोगों के लिए चारागाह के रूप में उपयोग में आतें हैं। जिनकी घास बेहद पौष्टिक होती हैं। इन मखमली घासों में जब बर्फ की सफ़ेद चादर बिछती है तो ये किसी जन्नत से कम नजर नहीं आती है। इन बुग्यालों में आपको नाना प्रकार के फूल और वनस्पति लकदक दिखाई देंगी। हर मौसम में बुग्यालों का रंग बदलता रहता है। बुग्यालों से हिमालय का नजारा ऐसे दिखाई देता है जैसे किसी कलाकार ने बुग्याल, घने जंगलों और हिमालय के नयाभिराम शिखरों को किसी कैनवास पर उतारा है। बुग्यालों में कई बहुमूल्य औषधि युक्त जडी-बू्टियाँ भी पाई जाती हैं। इसके साथ-साथ हिमालयी भेड़, हिरण, मोनाल, कस्तूरी मृग जैसे जानवर भी देखे जा सकते हैं।
ऐसे पहुंचा जा सकता है वेदनी-आली बुग्याल!
चमोली के देवाल ब्लाक में स्थित वेदनी-आली बुग्याल तक पहुँचने के लिए कर्णप्रयाग से लगभग 100 किमी गाडी मे जाना पड़ता है। कर्णप्रयाग से नारायणबगड़, थराली, देवाल, मुन्दोली होते हुए अंतिम गांव वाण गाडी से पहुंचा जाता है। वहीं दूसरी ओर काठगोदाम रेलवे स्टेशन से देवाल – वाण तक गाडी से पहुंचा जा सकता है। जबकि वाण गाँव से आली तक का 13 किमी का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। वाण गाँव से थोडा ऊपर जाने पर लाटू देवता का पौराणिक मंदिर है। जिसके कपाट पूरे साल में केवल एक ही दिन के लिए खुलते हैं। हिमालयी महाकुम्भ नंदा देवी राजजात यात्रा में लाटू देवता से अनुमति मिलने के बाद ही राजजात आगे बढती है। लाटू देवता को माँ नंदा का धर्म भाई माना जाता है और राजजात में यहाँ से आगे नंदा का पथ प्रदर्शक लाटू ही होता है।