जोशीमठ (लक्ष्मण सिंह नेगी) चमोलीश्री बंसी नारायण का मंदिर हिमालय के उत्तराखंड क्षेत्र के बद्रिकाश्रम के अति निकट श्री क्षेत्र कल्प क्षेत्र उरगम घाटी के शीर्ष पर में स्थित 12000 हजार फीट की ऊंचाई पर पंच केदार के मध्य कल्पेश्वर के अति निकट रुद्रनाथ के समीप यह स्थान अत्यधिक सुंदर और रमणीक है इस स्थान को जहां विष्णु भगवान ने अपनी लीलास्थली बनाया पांडवों ने अपनी तपस्या स्थली बनायी शिव भगवान ने अपने ईष्ट के सम्मुख अपने स्थान की स्थापना की कल्पेश्वर जटामोली शंकर के सम्मुख बंसी नारायण जी का प्राचीन मंदिर है यह मंदिर कतयूरी शैली में बना हुआ ऊंचा तप वाला मंदिर है जो उच्च हिमालय क्षेत्र में स्थित है यहां पर कोई बस्ती नहीं है हिमालय के वीरान तपस्या स्थल बंसी नारायण की मूर्ति एक जलेरी में स्थित है जिसे शिव और विष्णु के भक्त पूजा करते रहे हैं हिमालय की कंधराओं में कई रहस्य भरे मंदिर है इस मंदिर में वर्ष भर में मात्र रक्षाबंधन का दिन ही मेले का आयोजन होता है ऐसी मान्यता है कि राजा बलि की घोर तपस्या के कारण जव विष्णु भगवान ने उनकी परीक्षा ली और तीन वलस्त जमीन दान देने की मांग राजा बालि से की दानवीर राजा बलि पूरा राज पाट देने के बाद भी शर्त पूरी नहीं हो पाई तो उन्होंने कहा कि हे स्वामी आप मेरे सर के ऊपर पैर रख दीजिए जैसे भगवान विष्णु ने राजा बलि की सर के ऊपर भगवान विष्णु ने पैर रखा तो राजा बलि पताल लोक चले गए राजा बलि को भगवान विष्णु ने पाताल लोक का राजा घोषित किया जब विष्णु वहां से निकलने लगे तो राजा बलि ने विष्णु भगवान से कहा ईश्वर आप मेरे द्वारपाल बन जाइए मेरी रक्षा कौन करेगाऔर वह कई समय तक वही द्वारपाल बने रहे। त्रिलोकी में लक्ष्मी जी के पास नारद स्वामी जब जाते हैं वह कहते हैं कि तुम्हारे पति पाताल लोक में राजा बलि के यहां द्वारपाल बने हुए हैं लक्ष्मी ने नारद से पूछा देव ऋषि नारद जी उपाय बताइए मेरे पति को कैसे छुड़ाया जा सकता है उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन के दिन तुम पाताल लोक में जाकर के राजा बलि के हाथों राखी बांधना जब दक्षिण देने की बात आएगी तुम उनसे अपने पति को वहां से छुड़ा लेना ऐसी कथा का वर्णन वंशी नारायण के बारे में बताया जाता है वंशी नारायण शब्द से लगता है कि कृष्ण का मंदिर होगा किंतु भगवान विष्णु का चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है यहां पर गणेश भैरव कुबेर घंटाकरण वन देवियों की मूर्तियां विराजमान है सैकड़ो वर्षों से यहां इस मंदिर में रक्षाबंधन का मेले का आयोजन होता रहा है प्राचीन काल से यहां रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव की जाख देवता के पुजारी यहां की पूजा करते रहे हैं समय-समय पर व्यवस्थाओं में बदलाव आता रहा है यहां हर वर्ष कलगोठ ग्राम के लोग रक्षाबंधन से एक दिन पूर्व यहां पहुंच करके भगवान नारायण को घी,मक्खन,सत्तू आदि का भोग चढ़ते हैं यहां मखमली गलीचे बुग्याल दूर तक दिखाई देते हैं। यहां पहुंचने के लिए दो रास्ते मुख्य हो सकते हैं श्री कल्पेश्वर के दर्शन के बाद उरगम घाटी के गीरा, वांसा, उर्वशी आश्रम होती हुई मूला बुग्याल, कुडमूला,वरजिक, होते हुए देवदर्शनी को पार करके बंसी नारायण पहुंच जाता है जो लगभग देव ग्राम से 10 से 12 किलोमीटर का रास्ता पार करके यहां पहुंचा जा सकता है। दूसरा रास्ता उर्गम श्री बंसी नारायण के लिए पल्ला जखोला किमाणा कलगोठ होती हुई बंसी नारायण पहुंचा जा सकता है जो लगभग 16 किलोमीटर की लगभग है जिसमें 10 किलोमीटर गाड़ी से जा सकते हैं 6 किलोमीटर पैदल दूरी तय करना पड़ेगा और बंसी नारायण पहुंचा जा सकता है वर्तमान समय में सड़क की स्थिति ठीक नहीं है यात्रियों के लिए उर्गम से बंसी नारायण की यात्रा सुगम रहेगी। देवग्राम उर्गम मैं रुकने के लिए होम स्टे की व्यवस्था पूर्ण रूप से उपलब्ध है।(बंसी नारायण की फोटो स्टेप ग्रुप तथा सहदेव रावत से साभार)
Sign in
Welcome! Log into your account
Forgot your password? Get help
Password recovery
Recover your password
A password will be e-mailed to you.