*एक आह भरी होगी आवाज तो दी होगी*।
*हर वक्त यही है गम उस वक्त कहा थे हम* 😭
चमोली: टनल में फंसी जिंदगियों को बचाने में नाकाम हुई टेक्नोलॉजी, आपदा के 5 से 6 दिन तक टनल के अंदर जिंदगी और मौत से जूझते रहे लोग, इन सब जिंदगियों को बचाने में नाकाम होने के लिए कौन जिमेदार सिस्टम या तकनीक।
7फरवरी 2021 की सुबह 10 बजे ग्लेशियर टूटने के बाद ऋषि गंगा , धौली गंगा में आये उफान ने 204 जिंदगियां लील ली, लापता लोगो मे कम्पनी प्रबंधन के अनुसार टनल में 35 लोग फंसे हुए है जो उस दिन जीवित्त होने की सम्भवना जताई गई और ये सम्भवनाये तब सच साबित हुई जब टनल में फंसे लोगों के शवों का पोस्ट मार्टम हुवा तो पता चला कि वे लोग 12 फरवरी तक यानी 5 से 6 दिन तक जिंदा थे । एसीएमओ डा खाती ने जानकारी दी कि पोस्टमार्टम से पता चला कि दम घुटने ओर पानी भरने से सभी की मौत हुई है और 5 दिन पहले यानी कि 12 फरवरी को अर्थात 7फरवरी की घटना में टनल में फंसे लोग 12 तक जिंदा थे।
सवाल?
1- 7फरवरी को सुबह 10 बजे तपोवन छेत्र में हुई घटना के लिये सम्बंधित एजेंशियो की तरफ से कोई अलर्ट क्यो नही था अगर था तो सरकार या जिला प्रशासन को दिया या फिर दिया ही नही था।
2- सूबे के मुखिया स्वम् इस आपदा की घड़ी में मौके पर पहुचे, स्थानीय प्रशासन dm sp के नेतृत्व में लगातार मौके पर थे, आई टी बीपी, आर्मी नेवी एयर फोर्स एसडीआरएफ एनडीआरएफ सब मौके पर थे लेकिन टनल को लेकर रेस्क्यू की तकनीक क्यो इतने उच्च स्तर की नही थी की 7 फरवरी से 12 फरवरी तक तड़पती जानों को बचाया नही जा सका, ।
3- टनल के अंदर कोई फंसा है इसकी पुष्टि के बावजूद हमारी सभी एजंसियां कुछ नही कर पा रही थी क्योकि कोई ऐसी तकनीक और संसाधन ही नही थे जिससे मौके ओर मौजूद टीम कुछ कर पाए।
4- टनल के अंदर केवल वही जेसीबी मशीन काम कर रही थी जो हम लोग आये दिन सड़को पर आये मलबो को हटाते देखते हैं, क्या इस तरह के आपातकाल की स्थिति में यही सबसे उच्च ओर मुफीद तकनीक थी 35 जिंदगियों को बचाने के लिए।
5- उतराखण्ड सरकार ने इस आपदा के पहले दिन जो ततपरता दिखाई उसकी सभी ने सराहना की मुख्य मंत्री द्वारा लगातार मौके पर पहुचना ओर हर सम्भव प्रयास करने की कोशिश की। लेकिन सवाल उनसे है जो देश को विश्वास दिलाते है कि किसी भी संकट से निपटने के लिये हम तयार हैं, क्या तपोवन की आपदा संकट की घड़ी नही थी जहां 35 से 40 लोग जिन्दगि ओर मौत की जंग लड़ रहे थे,
6- अब पोस्ट मार्टम में पता चला है कि 12 फरवरी लगभग टनल में फंसे लोगों की मौत हुई , तो 7 फरवरी से 12 फरवरी तक मौत से समाना करते रहे होंगे ये सब लोग, तो ऐसे में इनकी मौत का जिमेदार वो जल प्रलय या फिर हमारी खोखली तकनीक के दावे।
*सोचनीय विषय*
टनल में फंसी 35 जिंदगियों को नही बचा पाना बहुत बड़ा सवाल है हमारे देश की हर उस तकनीक को चुनौती है जो इस तरह के संकट से पार नही पा पाए। तपोवन की जिंदगिया तो खो दी उन्होंने लेकिन भविष्य की गर्त में अभी क्या छुपा है ये प्रकृति ही जाने लेकिन
उतराखण्ड को पर्यटन प्रदेश के साथ बांध प्रदेश भी कहा जाय तो इसमे कोई अतिशयोक्ति नही होगी,
*उतराखण्ड में विभिन्न नदियो पर बने बांध*
(अलकनंदा पर 5
भागीरथी 6,
गंगा नदी पर 3,
रामगंगा पर 5 ,
काली नदी पर 1,
कोशी पर 1
पिंडर पर 2
धौली गंगा 3
यमुना नदी 3
टौंस 3
शारदा 2
नंदाकिनी पर 1)
क्योकि उतराखण्ड की लगभग हर नदी पर बांधो का निर्माण किया गया है और हर बांध में टंनलो का निर्माण हुवा है यहॉ तक उतराखन के।सपनो की परियोजना ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन को भी कई किलोमीटर टनल से ही ट्रेन ने गुजरना है , प्राकृतिक आपदाओं के इतिहास को खंगाला जाय तो प्रकृति कब अपना विध्वंसकारी रूप दिखाए इसका अंदाजा लगा पाना नामुमकिन है लेकिन विकास की योजनाओं के साथ इस तरह की परिस्थियों से निपटने के लिए हमारी टेक्नोलॉजी कितनी तयार है ये सोचनीय है, या फिर तपोवन जैसे विषम परिस्थितयो में केवल शवों को निकालने का इंतजार करना होगा।