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बैजनाथ धाम एक नजर

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#उत्तराखण्ड

#बागेश्वर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक व धार्मिक नगर है। यह #गोमती नदी के तट पर बसा हुआ है। यह अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विख्यात है, जिन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के रूप में मान्यता प्राप्त है। बैजनाथ उन चार स्थानों में से एक है, जिन्हें भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत ‘मन्दिरमाल शिव हेरिटेज सर्किट’ से जोड़ा जाना

बैजनाथ को प्राचीनकाल में “#कार्तिकेयपुर” के नाम से जाना जाता था, और तब यह कत्यूरी राजवंश के शासकों की राजधानी थी। #कत्यूरी राजा तब #गढ़वाल, #कुमाऊँ तथा डोटी क्षेत्रों तक राज करते थे। इस क्षेत्र के सबसे पुराने अवशेषों में #करवीरपुर या कबीरपुर नामक एक शहर शामिल है।इस शहर के खंडहरों का प्रयोग करके ही कत्यूरी राजा #नरसिंह देव ने अपनी राजधानी यहाँ बसाई थी। ७वीं से १३वीं शताब्दी तक बैजनाथ कत्यूरी राजवंश की राजधानी थी, और तब इसे कार्तिकेयपुर कहा जाता था।

नेपाली आक्रमणकारी क्रंचलदेव ने ११९१ में बैजनाथ पर आक्रमण कर कत्यूरी राजाओं को पराजित कर दिया। इस आक्रमण से कमजोर हुआ कत्यूरी राज्य १३वीं शताब्दी तक ८ अलग अलग रियासतों में विघटित हो गया विघटन के बाद भी १५६५ तक बैजनाथ में कत्यूरी राजवंश के मूल वंशजों का ही शाशन रहा, और उन्हें बैजनाथ कत्यूर कहा जाने लगा। १५६५ में अल्मोड़ा के राजा #बालोकल्याण चन्द ने बैजनाथ पर कब्ज़ा कर लिया और उसे अपने राज्य में ही मिला लिया।

१७९१ में #कालीनदी के पूर्व की ओर अपने राज्य का विस्तार करते हुए गोरखा राजाओं ने अल्मोड़ा पर आक्रमण किया, और सम्पूर्ण कुमाऊं राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने १८१४ के आंग्ल-नेपाल युद्ध में गोरखाओं को हरा दिया, जिसके बाद १८१६ में सुगौली संधि के अनुसार यह अंग्रेजों को प्राप्त हुआ१९०१ में बैजनाथ १४८ की आबादी वाला एक छोटा सा गाँव था।[