Home उत्तराखंड प्रतिरूप समारोह में छाया चमोली का मुखौटा लोकनृत्य

प्रतिरूप समारोह में छाया चमोली का मुखौटा लोकनृत्य

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27 से 29 सितंबर तक भोपाल में हुआ आयोजित
7 राज्यों और 8 देशों द्वारा किया गया मुखौटा प्रदर्शन
उत्तराखंड से नंदानगर के नारंगी गांव निवासी प्रख्यात पांडवानी गायक, मुखौटा लोकनृत्य गीतशैली गायक, ढोल वादक और जागर गायक हरीश लाल भारती के नेतृत्व में 14 सदस्यीय दल ने किया प्रतिभाग..

गोपेश्वर।

मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में 27 से 29 सितंबर तक तीन दिवसीय लोककलाओं में मुखौटे के उपयोग आधारित प्रतिरूप समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें 11 राज्यों के ऐसे नृत्यों की प्रस्तुति दी गई जिनमें मुखौटा का उपयोग किया जाता है। समारोह में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मुखौटा आधारित प्रदर्शनी प्रतिरूप हिमालय विश्व संग्रहालय, सिक्किम के सहयोग से प्रदर्शित की गई, जिसमें भारत के 7 राज्यों सहित 8 देशों के कलाओं में मुखौटे प्रदर्शित किये गये।

इस कार्यक्रम में उत्तराखंड की ओर से उत्तराखंड जागरी संस्कृति कलामंच समिति के अध्यक्ष और सीमांत जनपद चमोली के नंदानगर के नारंगी गांव निवासी प्रख्यात पांडवानी गायक, मुखौटा लोकनृत्य गीतशैली गायक, ढोल वादक और जागर गायक हरीश लाल भारती के नेतृत्व में 14 सदस्यीय दल ने मुखौटा नृत्य गीतशैली कार्यक्रम प्रस्तुत करके हर किसी का मन मोहा। उत्तराखंड के कलाकारों ने पारंपरिक ढोल दमाऊं की ताल पर मुखौटा लोकनृत्य गीतशैली और भैरव लोकनृत्य की शानदार प्रस्तुति ने देश ही नहीं बल्कि विदेश से आए लोगों को भी अभिभूत कर दिया।

उत्तराखंड जागरी संस्कृति कलामंच समिति के अध्यक्ष पांडवानी गायक, मुखौटा लोकनृत्य गीतशैली गायक और ढोल वाद हरीश भारती ने बताया की भोपाल में आयोजित लोककलाओं में मुखौटे के उपयोग आधारित प्रतिरूप समारोह में उत्तराखंड के चमोली पारंपरिक ढोल दमाऊं की ताल पर मुखौटा लोकनृत्य गीतशैली और भैरव लोकनृत्य की प्रस्तुति को देखकर हर कोई अचंभित हो गया। सबने हमारी पौराणिक सांस्कृतिक विरासत को सराहा और इसकी भूरी भूरी प्रशंसा की।

गौरतलब है कि हरीश भारती विगत 37 सालों से नंदा देवी के जागर, द्वारी देवी यात्रा में लगने वाले पंडवाणी,अट्ठारह (18)पतरों के मुखौटा, पौराणिक गीतशैली, मांगल गीत, बेड़ा गीत, गौरा सांगुली, चेती गीत,बसंत पंचमी गीत, सदेई गीत, चाचड़ी छुमेलो गीत, ग्वेरील राजा गीत,बगड़वाल गीत, राजा हरी चंद्र के जी,मां भगवती नवरात्रा गीत, फ्योली गीत,अनुष्ठानिक जागर शैली, नार्शिग जागर शैली, बैदा-बैदी मुखोटा गीत, गणपति गणेश पौराणिक जन्मगाथा के गीत, बुढ़देवा गीत, गोपीचंद की कथा गीत, लाटा लाटी के गीत,मृग के गीत, देवर्षि नारद मुनि के गीत लाल और बोरा के गीत, कानौड़(कृष्ण)गीत, नरसिंह भगवान के दसोवतार के गीत के जानकार हैं। इसके अलावा ये वाद्ययंत्र-ढोल दमाऊ, भकौंर, नागफनी, शेनाई, हुडका थाली, डौंर थाली, मशकबीन को बजाने में पारंगत रूप से जानते हैं। हरीश भारती उत्तराखंड ही नहीं बल्कि बाहर राज्यों में भी अपनी प्रस्तुतियां दे चुके हैं।