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चुनौतियों के साथ पुष्कर धामी की उत्तराखंड में ताजपोशी

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गोपेश्वर। 21 वर्षों में 11वें मुख्यमंत्री के रुप में युवा चेहरे के रुप में पुष्कर धामी की चुनौतियों के साथ ताजपोशी हो गई है। धामी की ताजपोशी के साथ ही भले ही सरकार संवैधानिक संकट से निकलने में कामयाब हो गई है। लेकिन भाजपा के सम्मुख वर्तमान में खड़ा राजनैतिक संकट खत्म हुआ सा नहीं दिखाई दे रहा है। उनके सम्मुख जहां 2022 के चुनावों के लिये जमीन तैयार करने के साथ ही कई बड़ी चुनौतियां मुंह बाहे खड़ी हैं।
नये मुख्यमंत्री के रुप में सत्ता के शीर्ष पर जा बैठे पुष्कर धामी के सामाने जहां पार्टी के आंतरिक सर्वे के परिणामों को बेहतर करने का संकट खड़ा है। वहीं चार धामों के लिये बनाये गये देवस्थानम बोर्ड का विरोध कर रहे हक-हकूकधारियों को मनाना अथवा बोर्ड को रद्द करने की चुनौती है। इसके साथ इन दिनों युवाओं में तेजी से बढ रही भू-कानून और मूल निवास 1950 जैसी मांगे भी सरकार की दिक्कतें बढाने वाली है। जबकि भाजपा की राज्य सरकार के 2017 के बाद वाले कार्यकाल से साफ है कि मुख्यमंत्री के फैसले अधिकतर दिल्ली से संचालित किये जा रहे हैं। ऐसे में इन बड़ी चुनौतियों के साथ राज्य में अफसरशाही और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ ही आम लोगों के बीच सामंजस्य बैठाना सबसे बड़ी चुनौती मालूम हो रही है।

…..कौन हैं पुष्कर धामी?
पुष्कर धामी राज्य के सीमांत जिले पिथौरागढ़ की डीडीहाट तहसील के टुंडी गांव के मूल निवासी हैं। सैनिक परिवार में जन्मे धामी पेशे से अधिवक्ता हैं। उन्होंने सामन्य उत्तराखंडी की भांति सरकारी स्कूल में अपनी शिक्षा पूरी की। पढ़ाई के दौरान की अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सम्पर्क में आने के बाद उनकी राजनैतिक यात्रा शुरु हुई। वे वर्ष 1990 से लेकर 1999 तक परिषद के कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते रहे। जिसके बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़े और 2002 से 2008 तक प्रदेश में युवाओं को रोजगार के मुद्दे पर एकजुट किया। इस दौरान उनकी बड़ी सफलता तत्कालीन सरकार से राज्य के उद्योगों में युवाओं के लिए 70 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा करवाना रही।