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प्रोजेक्ट चीता’ का उत्तराखण्ड ‘कनेक्शन

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उत्तराखंड: भारत में चीतों को वापस लाने वाला ‘Project Cheetah’ दुनिया के सबसे बड़े ‘वाइल्ड लाइफ ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट’ में से एक है। आज भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने बर्थडे पर नामीबिया से लाए गए 8 अफ्रीकी चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ेंगे। तकरीबन 22 साल पहले जुलाई 2010 में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भारत में अफ्रीकी चीते लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। उस वक्त इसके लिए 300 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट तैयार किया गया था लेकिन कानूनी पेंच फंसने के कारण अब तक यह प्रोजेक्ट लटका रहा, अटका रहा। इस कानूनी गुत्थी को सुलझाने में लगभग 10 वर्ष का समय लग गया। दिलचस्प बात यह है कि इसमें देहरादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्लूआईआई) के वैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही।
अफ्रीकी चीतों को हिन्दुस्तान लाने में कानूनी पेंच कैसे फंसा इसके पीछे एक दिलचस्प घटनाक्रम है। हुआ यूं कि वर्ष 2011 में गुजरात के गिर अभयारण्य में संरक्षित एशियाई शेरों में से कुछ को मध्य प्रदेश के पालपुर कुनो अभयारण्य में लाने की योजना बनाई गई। इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायिर की गई। याचिका पर सुनवाई के दौरान ही नामीबिया व दक्षिण अफ्रीका से चीते लाने का मुद्दा भी उठा। मई 2012 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने कहा कि नामीबिया से अफ्रीकी चीते भारत लाने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि विलुप्त होने की कगार पहुंची ‘जंगली भैंसा’ और ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ जैसी देशी प्रजातियों के संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोर्ट के इस आर्डर में एक शब्द यह लिख गया कि विदेश से हिन्दुस्तान में चीता लाना ‘इल्लीगल’ यानि अवैधानिक है। उसके बाद अफ्रीकी चीतों को हिन्दुस्तान नहीं लाया जा सका।
दरअसल, एशियाई चीते 1948 में देश में विलुप्त हो गए थे। इसके बाद भारत सरकार समय-समय पर इस दुर्लभ वन्य जीव को विदेश से हिन्दुस्तान लाने और उसकी वंश वृद्धि की योजना पर विचार करती रही। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जुलाई 2010 में भारत में अफ्रीकी चीते लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, लेकिन वर्ष 2012 में हुए सुप्रीम कोर्ट के आर्डर के बाद इस प्रोजेक्ट पर अमल न हो सका। इसके बाद भारत सरकार की ओर से अगस्त 2019 में एक पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने माना है कि पूर्व में हुए आर्डर में इल्लीगल शब्द पर बहस की जा सकती है। कोर्ट के रुख में आई तब्दीली को बड़ी उपलब्धि माना गया। फिर कोर्ट ने कहा कि चीतों को विदेश से लाने और बसाने से पहले एक बार फिर जरूरी अध्ययन कर लिया जाए, जिसके लिए वन्य जीव विशेषज्ञों की एक कमेटी गठित की गई। कमेटी में वन्यजीव विशेषज्ञ एमके रणजीत सिंह, भारतीय वन्य जीव संस्थान के तत्कालीन निदेशक धनंजय मोहन और वन मंत्रालय के डीआईजीएफ (वाइल्डलाइफ) को सौंपा गया। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बिन्दुवार बताया कि विदेशी चीतों को हिन्दुस्तान में लाया जाना क्यों जरूरी है। रिपोर्ट में कहा गया कि चीतों के भारत में वापस आने से घास के मैदानी इलाकों और खुले जंगल में पारिस्थितिकी संतुलन बनाने में मदद मिलेगी, वहीं ये जैव विविधता को भी बरकरार रखेगा। इस रिपोर्ट के आधार पर जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने अफ्रीकी चीतों को हिन्दुस्तान लाने के प्रोजेक्ट को हरी झण्डी दे दी। रिपोर्ट और दलीलें तैयार करने में भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों को लम्बे समय तक रात-दिन एक करने पड़े, जिसके सुखद परिणाम सामने हैं। अब अद्भुत फूर्ती और रफ्तार वाले वन्य जीव ‘चीता’ की हिन्दुस्तान में आमद हो चुकी है।

(आभार :दीपक फर्स्वाण)