जोशीमठ: हिमालय सदैव ज्ञान साधना भक्ति का केंद्र रहा है इन स्थानों में अनेकों देवस्थान के साथ-साथ लोक नृत्य लोक संगीत का अपना महत्व है चाहे विश्व प्रसिद्ध नंदा राज जात यात्रा हो लोकपाल हेमकुंड की सांस्कृतिक यात्रा हो चारों धाम बद्री केदार गंगोत्री यमुनोत्री के प्रसिद्ध यात्राएं हो जहां विश्व के लोग दर्शन के लिए आते हैं इन्हीं क्षेत्रों में पंच केदार का क्षेत्र भी बहुत महत्वपूर्ण है पंच केदारमें केदारनाथ मैं भगवान शंकर की पृष्ठ भाग की पूजा का विधान माना गया है मध्यमहेश्वर में नाभि प्रदेश और तुंग नाथ में वक्षस्थल और हाथों की पूजा होती है रुद्रनाथ में भगवान की मुखारविंद की पूजा का विधान है श्री कल्पेश्वर में भगवान के जटा की पूजा का विधान है ऐसी मान्यता है कि जाख देवता के 60 भाई हैं जिनमें वजीर सबसे बड़ा भाई माना जाता है वजीर का मूल मंदिर डुमक गांव में है जिन्हें वीरभद्र भी कहते हैं वीरभद्र की उत्पत्ति शंकर भगवान ने सती के मृत्यु के उपरांत दक्ष के वध के लिए उनका जन्म अपनी जटाओं से पैदा किया था। रुद्रनाथ मंदिर की निचले हिस्से में वजीर का एक छोटा सा मंदिर प्रतीक स्वरूप है। वजीर की पूजा गोपेश्वर क्षेत्र के लोग अधिक करते हैं जिसे उन्हें धोयोखारी कहते हैं। देवर खडोरा गांव के लोग किसी समय में पूजा के लिए डुमक गांव जाया करते थे एक बार उनकी किसी बुजुर्ग ने एक छोटा सा पत्थर उस गांव से ला करके अपने गांव एक कोने पर रख दिया और वहीं पर वजीर की पूजा करने लगे उसके बाद वजीर देवता मुख्य स्थान बन गया । इस देवरा यात्रा में 6 माह तक 15 से 20 आदमी हर दिन यात्रा में नंगे पैर चलते हैं और देवता की डोली का नृत्य करते हैं दिनभर जाख देवता ग्रामीण क्षेत्रों के मंदिरों एवं घरों में जाकर अपना मिश्रो इकट्ठा करते हैं और रात्रि के समय में मुखौटा नृत्य का मंचन किया जाता है इस नृत्य में भी मुख्य पात्र देव ऋषि नारद होता है जो विभिन्न गांव के आंखों देखा हाल का वर्णन करता है किस गांव में किस तरह की व्यवस्था है जहां पर अव्यवस्था है उस पर प्रकाश डालता है जिससे समाज में एक चेतना का विकास हो सके इन दिनों कल्पेश्वर के दर्शन के बाद भरकी, भेंटा, पिलखी, गवाणा,आरोसी गांव से,थैग,चांई गांव होते हुए विष्णुप्रयाग से बद्रीनाथ की ओर जा रहे हैं बद्रीनाथ दर्शन करके फिर अपने क्षेत्र को लौट आएंगे। यह यात्रा निरंतर 6 माह तक चलती रहेगी।
रिपोर्ट लक्षमण सिंह नेगी
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