Home उत्तराखंड गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी एक नजर: संजय चौहान

गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी एक नजर: संजय चौहान

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ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
जिनके गीतों में पहाड़ बसता है। गीतों के हर बोल में पहाड़ की लोकसांस्कृतिक विरासत झलकती है। आवाज में ऐसा जादू की बच्चों से लेकर बुजुर्ग और बेटियों से लेकर दादी तक हर किसी की आँखे छलछला जाती है। 49 बरसों की गीतों की गीतांजली में उन्होंने पहाड़ के हर विषय को अपनी आवाज दी। हमारी पीढ़ी तो उनके गीतों को सुनकर ही बड़ी हुई है। पूरे पहाड़ को एक जगह बैठकर देखना हो तो उनके गीतों को सुनकर देखा जा सकता है। वे उत्तराखंड के सांस्कृतिक विरासत के पुरोधा हैं। उनके गीत, खुद के गीत नहीं बल्कि जनगीत बने। जिन्होंने समाज को नई दिशा दी और समाज में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनके ब्यक्तिव को शब्दों में नहीं उकेरा जा सकता है।

पूरा देश अपनी आजादी की तीसरी वर्षगांठ मानाने की तैयारी बड़े जोर शोर से कर रहा था। ठीक उससे पहले 12 अगस्त 1949 को गढ़वाल की सांस्कृतिक नगरी पौड़ी जिले के पौड़ी गांव में सुमुद्रा देवी और उमराव सिंह जी के घर एक अनमोल बालक ने जन्म लिया। माता पिता ने बड़े प्यार से बालक का नाम नरेंद्र रखा। माता पिता को आस थी की बड़ा होकर उनका पुत्र जरुर लोक में उनका नाम रोशन करेगा। बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी नरेन्द्र सिंह नेगी जी को अपनी लोकसंस्कृति और अपने पहाड़ से असीम लगाव पर प्यार था। उन्हें अपने पहाड़ की हर वस्तु बेहद प्रिय लगती थी, जब भी घर गांव में कोई भी कार्यक्रम होता तो नरेंद्र सिंह नेगी जी उसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते। नेगी जी का बचपन बेहद कठनाइयों में बीता और संघर्षमय रहा। 12 वीं तक की पढाई के बाद भी उन्होंने गायन और लेखन के बारे में नहीं सोचा था। 1970 के दशक में उनका झुकाव गायन की और हो गया।

1974 के एक वाक्ये – जिसमे देहरादून के एक अस्पताल में चारपाई पर लिखे गीत – सैरा बस्ग्याल बणू मा, रूडी कुटण मा—– से शुरू हुआ सफ़र आज भी अविरल जारी है। नेगी जी ने शुरुआत गढ़वाली गीतमाला से की जो 10 अलग अलग भागों में थी। अपने पहले एल्बम का नाम भी उन्होंने पहाड़ के खुबसूरत फूल –बुरांश के नाम पर रखा। अब तक नेगी जी 1000 से भी अधिक गीतों को अपनी आवाज दे चुकें हैं। इनके गाये हर गीत ने धूम मचाई। जिसके बाद आकाशवाणी लखनऊ नें 10 अन्य लोककलाकारों के साथ नेगी जी को सम्मानित किया। नेगी जी के जितने प्रशंसक पहाड़ में है उससे भी ज्यादा विदेशों में भी, वे अब तक कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, युएई, मस्कट, सहित कई देशों में अपनी प्रस्तुती दे चुकें हैं।

नेगी जी के गीतों की बात करें तो अब कत्गा खैल्यु, उठा जागा उत्तराखंड, कारगिले लडैमा, कैथे कोज्याणी होली, खुद, घस्यारी, छिबडाट, छुंयाल, जय धारी देवी, टका छीन त टकाटका, टपकरा, ठंडो रे ठंडो, तू होली बीरा, तुम्हारी माया मा, दगडीया, नयु नयु ब्यो ची, नौछमी नारेंण, बरखा, बसंत ऐगी, रुमक, माया कु मुंडोरु, से लेकर अनगिनत एल्बम को अपनी आवाज दी, जिसमे हजारों गीत को अपनी आवाज दी,—- नेगी दा के गीतों की बड़ी लिस्ट है हर गीत अपने आप में बेजोड़ है। लेकिन आज कुछ ख़ास गीत जिन्होंने अपनी अलग ही छाप छोड़ी। — ठंडो रे ठंडो मेरो पहाड़ कु हवा ठंडी, पाणी ठंडो – गीत के जरिये पहाड़ के मौसम और पानी की मिठास को उकेरा है,– मेरा डांडी कांठी कु मुलुक एई बसंत ऋतु मा ऐई — के जरिये पहाड़ की सुंदरता को जीविन्त कर दिया,– टिहरी डूबेण लगी च बेटा, अबरी दों तू लम्बी छूटी लेकी एई — के जरिये विस्थापन की त्रासदी को उकेरा,—- जब तलक वे साकी निभेजा –, में जीवन के संघर्ष की दास्तान तो –बीरू भड कु देश बावन गढ़ कु देश — गीत के जरिये उत्तराखंड के 52 गढ़ों के बारे में बतलाया,– न दौड़ न दौड़ तें उन्द्यारू कु बाटू — गीत में बदस्तूर पलायन को चरितार्थ किया, तो भुला कख जाणा छा तुम लोग उत्तराखंड आन्दोलन गीत के जरिये राज्य आन्दोलन को घर गांव तक पहुँचाया —- तो — मेरो को पहाड़ी पहाड़ी मत बोलो में देहरादून वाला हूँ— के जरिये देहरादून के प्रति लोगो के मोह और देहरादून में रहने वाले लोगो की पहाड़ के प्रति धारणा को बड़े ही सुंदर ढंग से उकेरा है,प्रसिद गढ़वाली फिल्म चक्रचाल का गीत भला कौन भूल सकता है— न त रूप ची न रंग, न सो श्रृंगार कु ढंग, नाम धरयों ची रूपा— में प्रेम की अभिब्यक्ति अद्दभुत ढंग से प्रस्तुत किया गया है। नवविवाहित युगल के मध्य गाया गया गीत— हे जी के बे न करा माठू माठू जौला, नयुं नयुं ब्यो ची मीठी मीठी छ्विं लगौला— में प्रेम को बेहद ही सुन्दर ढंग से उकेरा है। सुण रे दीदा त्वेकू आयुं च बोजी कु सवाल— गीत के जरिये एक भाई द्वारा भाभी के अपने घर- खेत- खलियान- मवेशियों के प्रति प्रेम का सन्देश अपने बड़े भाई तक सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। पहाड़ के मेले कौथिगों में लम्बे समय के बाद अपने दगडीयोँ से मिलने के लिए परम्परागत परिधानों और आभूषणों से लकदक मेले में पहुंची पहाड़ की आर्थिकी और जीवन रेखाएं पर गाया गया गीत— मेला खोल्युं मा, थौला रौल्युं मा, सजी धजी जाणी होली, धक्ध्यांदी जिकुड़ी, रगरयंदी आँखी के थे खुज्याणी होली— आज भी हर कोई गुनगुनाता है। पति के प्रदेश में नौकरी करने को लेकर एक पत्नी द्वारा प्रेम को —नारंगी की दाणी हो हो, कैन सुकी होली बोजी मुखुडी कु पाणी हो हो, जुग बीत गैन दयूर स्वामी परदेश हो हो ।—– गीत आंसू निकालने के लिए काफी है।—— बीजी जादी लाटी,पेट दूर च सेसुर गाडी स्युन्दी पाटी गीत— के जरिये एक पिता अपनी बेटी के प्रति प्रेम को दर्शाता है,जिसमे बेटी मायके से जाना नहीं चाहती है और पिता बेटी के ससुराल दूर होने को लेकर बेहद चिंतित है की जल्दी तैयार हो जा ताकि समय से ससुराल पहुँच सके। मेलु घिन्घोरु की दाणी खेजा, छोया मंगरो कु पाणी पि जा—- गीत के जरिये अपने घरो से दूर छानियों में रह रहे लोगों का अपने घर के प्रति प्रेम को बड़े ही मार्मीक ढंग से उकेरा है।—- वहीँ -ना जा ना जा तों भेलू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्युं माण, आण नि देंदी तू सरकारी बौंण गोर भेन्स्युं मिन क्या खिलोंण— गीत के जरिये नेगी दा ने यहाँ की महिलाओं का अपने मवेशियों और बच्चों के प्रति प्रेम को जिस प्रकार से प्रस्तुत किया गया है वह बेहद ही सुन्दर प्रस्तुती है। — स्ये ग्येनी डांडी कांठी खाल धार स्ये ग्येनी गीत के जरिये –अकेले में प्रेम को बड़े बखूबी ढंग से प्रस्तुत किया गया है।— शुभ घडी शुभ दिन बार ची आज, रखडी कु त्यौहार ची आज– गीत के जरिये भाई-बहिन के प्यार को प्रस्तुत किया गया, —सोंण का मैना ब्वे कण के रेण— से लेकर घुघूती घुरेण लगी मेरा मेंत की—-, अपने मायके के प्रति प्रेम को प्रस्तुत किया गया तो । — टिहरी डूबेंण लगी च बेटा डाम का खातिर, अबारी दों तू लम्बी छूटी लेकी ऐई— गीत के जरिये अपनी जन्मभूमि के प्रति प्रेम को दर्शाया गया है। —- बाला स्ये जादी, दूध भात खिलोलू त्वे थें ही– गीत के जरिये पिता का बेटे के प्रति प्रेम— चुलू जगांदी बगत आई, कभी चुलू मझय्न्दी बगत आई, नि घुटेंदु सेरु गफा तुमारी याद खाणु बगत आई — गीत के जरिये पत्नी का अपने पति के लिए प्रेम को दर्शाया है।— अलग राज्य के प्रति प्रेम को — माथि पहाड़ बीठी निसि गंगाड बीठी, स्कुल दफ्फ्तर गों बाजार बीठी—– और —बोला भे बंधू तुम ते कन उत्तराखंड चयोणू च– गीत के जरिये प्रस्तुत किया है, वहीँ अपने मुल्क के प्रति प्रेम को — मेरा डांडी कांठीयोँ कु मुलुक ऐई बसंत ऋतू में ऐई— से लेकर — बीरू भड कु देश बावन गडू कु देश— जैसे गीतों के जरिये उकेरा है।— पेड़ो के प्रति प्रेम को — तों डाल्युं न काटा चूचो डाल्युं न काटा– गीत के जरिये प्रस्तुत किया है, वहीँ हाथ ने विस्की पिलाई, फुलू न पिलाई रम —- गीत से लेकर अब कत्गा खेलु — गीत के जरिये वर्तमान राजनीति पर तंज कसे ——-, तो नौछमी नारायण गीत ने तो पूरे देश में राजनीतिक भूंचाल तक ला दिया था। इस गीत ने सूबे के सरकार को ही बदल कर रख दिया था। इस गीत का इतना असर हुआ की तत्कालीन सरकार को इसे प्रतिबंधित करना पड़ा,—- नेगी जी के गीतों ने समाज में अपना ब्यापक असर डाला और इनके गीत जनगीत बन गये।