गोपेश्वर :पहाड़ों के गांवों में मनाई जाने वाले इगास को लेकर खूब उत्साह है । यहां इसे अलग अलग नामों से भी मनाया जाता है । चमोली के गांवों में इसे काणसी बग्वाल तो कहीं बुढ्या बग्वाल और कहीं अन्य नाम से पुकारा और मनाया जाता है । दीवाली के 11 दिन बाद मनाये जाने वाले इस उत्सव को दीवाली या बग्वाल की तरह ही दियों की रोशनी के साथ मनाया जाता है ।एक ओर जहां इगास या काणसी बग्वाल को उत्सव के रूप में मनाया जाता है । वहीं धार्मिक दृष्टि से इस पर्व को हरि बोधनी एकादशी के तौर पर भी मनाया जाता है । तुलसी की पूजा होती है । पवित्र तुलसी को लाल ओढनी भी ढका जाता है । कहीं इसे तुलसी विवाह का रूप भी दिया जाता है ।
इस उत्सव पर ग्रामीण गाय . बैल को पिसे हुये जौ समेत सात अनाजों का पिंड बनाकर श्रद्धा पूर्वक उन्हे खिलाया जाता है । देव सिंह राणा बताते हैं कि इस पर्व पर गायों और बैलों के सीगों पर तेल लगाकर उनके पूजन गले में फूलों की माला और अनाजों का पी़डा भोजन में दिया जाता है ।
पहाड़ों की तीज त्यौहार और इसके धार्मिक विषय के जानकार संस्कृत महाविध्यालय मंडल के पूर्व प्रधानाचार्य डाक्टर ऐम प्रकाश डिमरी बताते हैं इस उत्सव को हरिबोधनी एकादशी के तौर भी मनाया जाता है । भगवान श्री हरि विष्णु शयन के बाद हरिबोधनी एकादशी को पुन: अपने धाम बैकुंठ में आते हैं। आस्था और धार्मिक मान्यता के अनुसार तुलसी पूजन होता है । इसे तुलसी विवाह के तौर भी लोग मनाते हैं
अपने गांवों में इगास मनाने आये
इगास या काणसी बग्वाल मनाने लोग अपने गांव पहुंचे हैं। बदरीनाथ के विधायक महेन्द्र भट्ट अपने गांव ब्राह्मण थाला में इगास मनायेंगे ।