जोशीमठ: चातुर्मास व्रत के अंतराल में चौथे दिन श्रीमद् भागवत कथा के महत्वपूर्ण वर्णन करते हुए ब्रह्मचारी मुकुंद आनंद ने बताया की किस तरह से श्रीमद् भागवतकथा के श्रवण से धुंधकारी जैसा महा पापी व्यक्ति भी पाप मुक्त हो जाता है और देव शरीर की प्राप्ति कर लेता है जोशीमठ में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा श्रवण के लिए सैकड़ों की संख्या में भक्तजन पहुंच रहे हैं धर्म आचार्य मुकुंद आनंद ने कथा श्रवण करते हुए बताया कि आत्मदेव ब्राह्मण को जब साधु ने बता दिया था कि आगामी सात जन्म तक पुत्र सुख की प्राप्ति नहीं है तुझे फिर भी हठ करके आत्मदेव ने सन्यासी से कहा पुत्र दो नहीं तो आपके सामने ही अपने प्राण त्याग दूंगा । ऐसा हठ करने के बाद महात्मा जी ने एक फल दिया और कहा कि सत्य, पवित्रता, तपस्या करते हुए एक वर्ष तक तुम्हारी पत्नी रहेगी तो एक सुंदर और योग्य पुत्र प्राप्त होगा । लेकिन पत्नी धुंधुली ने कुलटा स्वभाव दिखाते हुए अपने नकारात्मक विचारों के कारण सोचा कि फल खाऊंगी तो पेट बड़े हो जाएंगे, बहुत कष्ट होगा, डाकुओं ने यदि आक्रमण कर दिया गांव पर तो भाग नहीं पाऊंगी, प्रसव काल में यदि बच्चा उल्टा हो गया तो बच्चा मर, बच्चा पैदा भी हो गया तो फिर उसका लालन-पालन करना कठिन होगा और मेरी सुंदरता इसे समाप्त हो जाएगी, मैं दुबली पतली हो जाऊंगी मैं तो यह फल नहीं खाऊंगी और झूठ बोल कर अपने पति से धुंधली ने अपने बहन के बच्चे को अपना फल दे दिया। उसके पुत्र को अपने बच्चा बताते हुए समाज के सामने रखा ।
उन्होंने कहा कि इधर महात्मा जी ने जो फल दिया था उस फल के परीक्षा की भावना मन में आ गई। परीक्षा की दृष्टि से गाय को वह फल खिलाया और गाय ने एक उत्तम पुत्र को जन्म दिया । धुंधुकारी और गोकर्ण एक साथ बड़े हुए परंतु धुंधुकारी अत्यंत क्रूरकर्मा और गोकर्ण महान विद्वान हुआ । पिता और माता के चले जाने के बाद वेश्याओं के साथ रहते अत्यंत क्रूर कर्म किया तड़पते हुए मार दिया गया परिणामस्वरूप प्रेत योनि को प्राप्त हो गया । गया जी में श्राद्ध करने से भी मुक्ति नही मिल पाई। कहीं से जब कोई मुक्ति का उपाय नहीं मिला तब विद्वानों के सलाह पर भाई गोकर्ण जी ने सूर्य भगवान से उपाय पूछा। सूर्य भगवान ने बताया कि श्रीमद्भागवत सप्ताह का श्रवण कराओ उससे प्रेत बाधा से मुक्ति हो जाएगी । परिणामस्वरूप आयोजन किया गया श्रीमद्भागवत की कथा से धुंधकारी को प्रेत बाधा से मुक्ति मिली और दैव शरीर प्राप्त हो गया। व से आए पार्षदों ने धुन्धुकारी को उत्तम विमान पर बैठाकर अपने साथ देवलोक ले गए ।