पौंछिगे नंदा शिव का कैलाश..
जा मेरी गौरा तू, शिव का कैलाश
जा मेरी गौरा तू, चौखम्भा उकाली..
बधाण की नंदा को वेदनी बुग्याल, दशोली की नंदा को बालापाटा और बंड की नंदा को नरेला बुग्याल में नंदा सप्तमी के अवसर पर जागरो और लोकगीतों के द्वारा कैलाश को विदा किया गया
वेदनी बुग्याल (देवाल)/नरेला बुग्याल/ बालपाटा बुग्याल (चमोली)।
आखिरकार बीते एक पखवाडे से चल रही हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा का नंदा सप्तमी के अवसर पर नंदा को कैलाश विदा करनें के साथ ही समापन हो गया। अब ठीक एक साल के उपरांत ही नंदा के लोक के इस लोकोत्सव का आयोजन होगा। नंदा सप्तमी के अवसर पर हिमालय में स्थित उच्च बुग्यालो में मां नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा पर विराम लगा और डोलीयां अपने अपने गंतव्य के साथ वापस लौट गयी।
शुक्रवार को हिमालय के उच्च हिमालयी बुग्यालों में श्रद्धालुओं नें पौराणिक लोकगीतों और जागर के साथ हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा को कैलाश के लिये विदा किया। अपनी ध्याण को विदा करते समय महिलाओं की आंखे अश्रुओं से छलछला गयी। खासतौर पर ध्याणियां मां नंदा की डोली को कैलाश विदा करते समय फफककर रो पड़ी। इस दौरान श्रद्धालुओं नें अपने साथ लाये खाजा- चूडा, बिंदी, चूडी, ककड़ी, मुंगरी भी समौण के रूप में माँ नंदा को अर्पित किये।
अपने अंतिम पडाव से शुक्रवार सुबह माँ नंदा राजराजेश्वरी की डोली गैरोली पातल से वेदनी बुग्याल पहुंची। जहां पहुचते ही मां नंदा की डोली ने पूरे वेदनी कुंड की परिक्रमा की, जिसके बाद माँ नंदा की पूजा अर्चना कर भेंट अर्पित की गयी तत्पश्चात माँ नंदा को जागरो और लोकगीतो के द्वारा कैलाश को विदा किया गया। इस अवसर पर वेदनी कुंड में तर्पण भी दिया गया। वेदनी बुग्याल में सामाजिक कार्यकर्ता हीरा सिंह गढवाली, मोहन सिंह, सुरेन्द्र सिंह, नरेंद्र सिंह, कृष्णा बिष्ट, रणजीत सिंह, देवेंद्र सिंह सहित सैकडो श्रद्धालु मौजूद थे।
वहीं दूसरी ओर दशोली कुरूड की नंदा डोली रामणी गांव से बालपाटा बुग्याल पहुंची। बालपाटा बुग्याल में माँ नंदा की पूजा अर्चना करके कैलाश के लिए विदा किया गया।
इनसेट !
उच्च हिमालय में स्थित नरेला बुग्याल में सम्पन्न हुई बंड नंदा की लोकजात!
सूर्य भगवान की किरणों और बादलों की लुकाछुपी के बीच सुनहरे मौसम में शुक्रवार को बंड की नंदा की डोली पंचगंगा से चलकर नरेला बुग्याल पहुंची। जहां पर पहुंचे श्रद्धालुओं नें मां नंदा की पूजा अर्चना कर उन्हें समौण भेंट की और माँ नंदा को जागरों के माध्यम से कैलाश की ओर विदा किया गया। इस दौरान पूरा हिमालय मां नंदा के जयकारे से गुंजयमान हो गया। बंड नंदा की डोली के साथ पुजारी कमलेश गौड, अशोक गौड, दीपक पंत, प्रदीप नेगी, रूद्र नेगी और देवेन्द्र नेगी सहित अन्य श्रद्धालु नरेला बुग्याल पहुंचे थे।
डोली के वापस लौटते ही ठंड की दस्तक!
नंदा को कैलाश विदा करनें के पश्चात डोली और छंतोली वापस लौट आई है। ये मान्यता है कि नंदा की लोकजात सम्पन्न होने के बाद जैसे ही डोली वापस लौटती है वैसे ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ठंड भी शुरू हो जाती है और भेड बकरी पालन करने वाले पालसी लोग भी धीरे-धीरे हिमालय से मैदानी इलाकों की ओर वापस लौटने लग जाते हैं। जबकि बुग्यालो में मौजूद हरी घास भी पीली होना शुरू हो जाती है। नंदा की लोकजात के बाद कोई भी हिमालय के उच्च बुग्यालो में नही जाता है।
वेदनी में रूपकुंड महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम की धूम
वेदनी बुग्याल में आयोजित दो दिवसीय रूपकुंड महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम की धूम रही। सांस्कृतिक कार्यक्रम में वाण, कुलिंग, कनोल, बलाण, बांक की महिला मंगल दल सहित स्कूल के छात्र छात्राओ ने प्रतिभाग किया। सांस्कृतिक कार्यक्रम में वांण इन्टर कालेज की बालिकाओं ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। वहीं कुन्दन मास्टर वांण की टीम सेकेण्ड रही और बलाण गांव की महिला मंगल दल की टीम ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। इस अवसर पर रूपकुंड महोत्सव संरक्षण समिति के अध्यक्ष जीत सिंह दानू तथा सचिव रूपा देबी नें बताया कि वेदनी बुग्याल में 36 वां रूपकुंड महोत्सव आयोजित किया गया। रूपकुंड महोत्सव का उद्देश्य अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने के साथ साथ वेदनी बुग्याल को स्वच्छ और सुंदर रखना है। उन्होने कहा की वेदनी बुग्याल को गन्दगी और कुडे से भी बचाना है। वेदनी बुग्याल हमारे सिर का मुकुट है और हमारी एक मात्र धरोहर रूपकुंड बेदनी बुग्याल रह गयी है।