Home उत्तराखंड बंड पट्टी के लोगों नें लोकगीतों के जरिए नंदा को विदा किया..

बंड पट्टी के लोगों नें लोकगीतों के जरिए नंदा को विदा किया..

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बण्ड नन्दा की डोली अगले पडाव गौणा के लिए रवाना.
बंड नंदा की छंतोली की लोकजात नरेला बुग्याल में30 अगस्त को सम्पन्न होगी
बंड भूमियाल के पौराणिक मंदिर में बंड पट्टी के लोगों नें लोकगीतों और जागरों गाकर किया विदा..
फफक कर रो पडी ध्याणियां..

पीपलकोटी!

मेरी मेत की ध्याणी तेरू बाटू हेरदु रोलू..
जशीलि ध्याण तू जशीलि वे रेई..
अपणा मैत्यों पर छत्र-छाया बणाई रेई…
जैसे पारम्परिक लोकगीतों और जागरों के जरिए बंड पट्टी के ग्रामीणों ने बंड नंदा की छंतोली को अगले पडाव के लिए विदा किया। नंदा को विदा करते समय महिलाओं और ध्याणियों की आंखों से अवरिल अश्रुओं की धारा बहनें लगी। कई ध्याणी तो फफक कर रोने लगे। आज बंड की डोली का रात्रि विश्राम भनाली गांव कल गौणा,निजमुला होते हुए गौण डांडा रात्रि विश्राम के लिए पहुंचेगी उसके अगले दिन रात्रि भी शाम पंचगंगा में रहेगा 30 अगस्त को पंचगंगा से सप्तमी के दिन डोली नरेला बुग्याल पहुंचेगी तथा पूजा अर्चना कर लोकजात संपन्न होगी। इस अवसर पर कुरूड नंदा की छंतोली के साथ आये पुजारी प्रकाश गौड, बंड मंदिर समिति के अध्यक्ष जगत सिंह नेगी, महामंत्री रघुनाथ सिंह फर्शवाण,कोषाअध्यक्ष राणा,बंड विकास संगठन के,पूर्व अध्यक्ष अतुल शाह, शंभू प्रसाद सती,गेदाणू मंदिर के पश्वा जगत सिंह नेगी, नरेंद्र सिंह राणा, मदन सिंह नेगी, कुरुड से आए बण्ड नंदा डोली के पुजारी अशोक गौड़, मोतीराम गॉड, कमलेश गॉड, प्रकाश गॉड, नवीन सती, राजेंद्र सिंह फरस्वान सहित अन्य लोग उपस्थित रहे। सारी पारम्परिक प्रक्रियाओं को सम्पन्न किया गया।

बंड नंदा की डोली की लोकजात उच्च हिमालयी नरेला बुग्याल में होती है संपन्न।

लोकजात में कुरूड से चली कुरूड नंदा बंड भूमियाल की डोली बंड पट्टी के विरही, कौडिया,बाटुला ,श्रीकोट,दिगोली,लुंहा,महरगांव,गडोरा, अगथल्ला, रैतोली, नौरख, पीपलकोटी, सल्ला, कम्यार होते हुये बंड भूमियाल की थाती किरूली गांव पहुंचती है। सैकड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में नंदा के जयकारों और जागरों के साथ बंड भूमियाल का थान थिरक उठता है और चांचणी, झुमेलो की सुमधुर लहरियों से अलौकिक हो उठता है नंदा का लोक।रात भर बंड भूमियाल की थाती में लोकोत्सव का माहौल रहता है।अगले दिन बंड पट्टी के सैकड़ों ग्रामीणों माँ नंदा को रोते विलखते विदा करते हैं, साथ ही मां नंदा को समौण के रूप में खाजा, चूडा, बिंदी, चूडी, सहित ककड़ी, मुंगरी भेंट करते हैं। महिलाएँ नंदा के पौराणिक जागर गाकर नंदा को विदा करती हैं। जिसके बाद कुरूड नंदा की डोली सहित छंतोली किरूली गांव के बंड भूमियाल मंदिर से पंछूला नामक स्थान पर कुणजाख देवता से आज्ञा लेकर विनाकधार, बौंधार, भनाई होते हुये अगले पड़ाव गौणा गाँव के लिए प्रस्थान करती है। गौणा गाँव से अगले दिन डोली तडाग ताल, गौणा डांडा, रामणी बुग्याल, चेचनिया विनायक होते हुये रात्रि विश्राम को पंचगंगा पहुंचती है। जिसके बाद अगले दिन डोली पंचगंगा से नरेला बुग्याल पहुंचती है। बंड मंदिर समिति के अध्यक्ष जगत सिंह नेगी कहते हैं कि नरेला बुग्याल में नंदा सप्तमी के दिन नन्दा की डोली की पूजा अर्चना कर, श्रद्धालु अपने साथ लाये नंदा को समौण के रूप में खाजा, चूडा, बिंदी, चूडी, सहित ककड़ी, मुंगरी अर्पित करते हैं। इस दौरान सामने दिखाई दे रहे त्रिशुली और नंदा घुंघुटी पर्वत की पूजा भी करते हैं। और नंदा को कैलाश की ओर विदा कर लोकजात वापसी का रास्ता पकडती है।