जोशीमठ: जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने नगर के हालात को लेकर उप जिलाधिकारी के माध्यम से प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजा ज्ञापन में 5सूत्रीय मांग रखते हुए कहा कि उन्होंने कहा कि उत्तराखंड का जोशीमठ शहर एक अभूतपूर्व गंभीर संकट से गुजर रहा है. यह ऐसा संकट है जिसने इस ऐतिहासिक शहर के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है. लेकिन इस संकट से निपटने के लिए जिस तत्परता और तेजी की आवश्यकता है, राज्य सरकार की कार्यवाही में वह नदारद है. इस संकट का एक पहलू यह भी है कि राज्य सरकार ने लगभग 14 महीने से इस संकट को लेकर हमारे द्वारा दी जा रही चेतावनी को अनदेखा किया. पहले राज्य सरकार ने आसन्न संकट को अनदेखा किया और अब वह संकट से कच्छप गति से निपट रही है.
अतः हमारी यह मांग है कि :
1.केंद्र सरकार जोशीमठ के राहत- पुनर्वास-स्थिरीकरण (stabilisation) के काम को अपने हाथ में ले कर त्वरित गति से कार्यवाही करे ताकि लोगों का जीवन और हित सुरक्षित रहे.
2. , एन टी पी सी द्वारा बनाई जा रही तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना की सुरंग निर्माण की प्रक्रिया जोशीमठ की वर्तमान तबाही के लिए जिम्मेदार है. एल एंड टी कंपनी द्वारा इस परियोजना के सुरंग निर्माण का कार्य किया जा रहा था, लेकिन एन टी पी सी की कार्यप्रणाली से संतुष्ट न होने के चलते एल एंड टी कंपनी ने यह काम छोड़ दिया. एल एंड टी द्वारा सुरंग निर्माण छोड़ने के संदर्भ में लिखा गया एक शोध पत्र पुनः इस बात की पुष्टि करता है कि जोशीमठ के वर्तमान संकट के लिए
एन टी पी सी की तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना का निर्माण कार्य जिम्मेदार है.
2015 में एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र “Change in Hydraulic Properties of Rock Mass Due to Tunnelling by Bernard Millen, Giorgio Höfer-Öllinger, and Johann Brandl (2015). In G. Lollino et al. (eds.), Engineering Geology for Society and Territory – Volume 6, DOI: 10.1007/978-3-319-09060-3_170, © Springer International Publishing Switzerland 2015” बताता है कि जहां परियोजना के लिए सुरंग खोदने का काम तीनों बार जहां किया गया, वो क्षेत्र फॉल्ट ज़ोन हैं. 2009 में तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना में टी बी एम के फंसने के साथ ही पानी का रिसाव हुआ. उस पानी के दबाव के चलते नई दरारें चट्टानों में बनी और पुरानी दरारें और चौड़ी हो गयी. इसी के कारण टनल के अंदर से पानी का बाहर भी रिसाव हुआ.
उक्त शोध पत्र के अनुसार जहां टी बी एम आज भी फंसी हुई है, वहां दरारों को भरने के लिए व्यापक ग्राउटिंग का सुझाव एन टी पी सी को दिया गया, लेकिन कंपनी ने खर्च बचाने के लिए ऐसा नहीं किया और नतीजे के तौर पर जोशीमठ का अस्तित्व ही संकट में आ गया.
इसलिए एन टी पी सी की तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना को तत्काल बंद किया जाए. साथ ही जोशीमठ का अस्तित्व संकट में डालने के लिए एन टी पी सी पर इस परियोजना की लागत का दो गुना जुर्माना लगाया जाए. लगभग बीस हजार करोड़ की इस राशि को परियोजना के कारण उजड़ने वाले लोगों में वितरित किया जाए.
3.केंद्र सरकार जोशीमठ के लोगों को घर के बदले घर व जमीन के बदले जमीन देते हुए नए व अत्याधुनिक जोशीमठ के समयबद्ध नव निर्माण के लिये एक उच्च स्तरीय उच्च अधिकार प्राप्त समिति गठित करे, जिसमें जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति और स्थानीय जन प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए.
4. , 1962 में जोशीमठ में केंद्रीय रक्षा मंत्रालय द्वारा सेना के लिए जोशीमठ के लोगों की जमीनें अधिगृहित की गयी. लेकिन उन जमीनों का मुआवजा आज तक लोगों को नहीं मिला है. अब वे जमीनें भी संकट की जद में है. इससे पहले कि उन जमीनों का अस्तित्व समाप्त हो, जोशीमठ के लोगों को उन जमीनों का मुआवजा वर्तमान बाजार दर पर दिया जाए.
5. , बेनाप भूमि पर लोग वर्षों से काश्तकारी करते रहे हैं. लेकिन 1958-64 के बाद कोई भूमि बंदोबस्त न होने के कारण ये भूमि लोगों के खातों में दर्ज नहीं है. अतः इस भूमि को लोगों के खाते में दर्ज किया जाए ताकि इसका क्षरण होने की दशा में इसकी एवज में लोगों को भूमि अथवा मूल्य मिल सके.
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