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कश्मीर के सोनमार्ग में आयोजित 8 वें राष्ट्रीय स्नो शू प्रतियोगिता में उत्तराखंड स्नो शू की टीम ने जीत हासिल की। इस प्रतिस्पर्धा में पहला स्वर्ण पदक सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाक के चौड गांव की सरोजनी के नाम रहा। सरोजनी उक्त प्रतिस्पर्धा में उत्तराखंड स्नो शू की टीम में प्रतिभाग कर रही है।
पहाड की पगडंडियो में उम्मीदों की मशाल जला रही है सरोजनी कोटेडी!
मुझे बनानी अपनी पहचान आसमां तक है।
मैं कैसे हार मान लूं और थक कर बैठ जाऊं,
मेरे हौसलों की बुलंदी आसमां तक है।
उपरोक्त पंक्तियों को सार्थक करनें में बडे शिद्दत से जुटी हुई है सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाक की सरोजनी कोटेडी। सरोजनी के सपने पहाड और आसमान के विस्तार से भी बड़े हैं। संघर्ष से तपकर वैश्विक पटल पर अपनी चमक बिखेरने को तैयार 20 साल की सरोजनी। सरोजनी उत्तराखंड के देवाल के चौड़ गांव की निवासी है। इनके पिताजी गंगा सिंह कोटेडी किसान है जबकि मां रुकमा देवी गृहणी। मध्यमवर्ग परिवार से तालुक रखने वाली सरोजनी का सपना है रनिंग में एक दिन देश के लिए ऑलंपिक में प्रतिभाग करना जिसके लिए वो जी जान से जुटी हुई है। सरोजनी नें बूरागाड से 12 वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की लेकिन पारिवारिक कारणो से वो आगे की पढाई नही कर सकी। सरोजनी का जीवन संघर्ष और अभावों में बीता है या यों कहिए की सरोजनी को संघर्ष विरासत में मिला। यही वजह रही कि उसने मेहनत से कभी मुंह नहीं मोड़ा। सरोजनी नें बिना संसाधनो के अपनी प्रतिभा को साबित किया है। सरोजनी रनिंग में अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपनी छाप छोड़ना चाहती है।
इन प्रतियोगिताओं में कर चुकी है प्रतिभाग!
1- अगस्त 2021 में 5 किमी दौड, देवाल, प्रथम स्थान
2- अक्टूवर 2021 में 5 किमी दौड, देवाल, प्रथम स्थान
3– फरवरी 2022 को नारायण बगड़ 1600 मीटर, प्रथम स्थान
4- 14 फरवरी 2022 को पुलवामा अटैक के शहीदों को श्रद्धांजलि- 50 किलोमीटर दौड़, चौड़ से नारायणबगड़
5- अप्रैल 2022 कोटेश्वर मंदिर, रूद्रप्रयाग से चिरबिटिया, 52 किलोमीटर प्रथम स्थान
6- मई जून 2022 श्रीनगर और कर्णप्रयाग में 5 किलोमीटर दौड में प्रथम स्थान
7- 26 जुलाई 2022 को कारगिल दिवस पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए 25 किलोमीटर दौड़ बूरागाड से थराली
8- 7 दिसंबर 2022 को शहीद दिवस के अवसर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए अपने चौड़ से सवाड गांव तक 35 किलोमीटर की दौड़
पहाड में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, यदि सही मार्गदर्शन और अवसर मिले तो पहाड की बेटियां भी ऑलंपिक में मेडल ला सकती हैं। ऐसी होनहार बेटियों को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।