2 सितंबर को गोपेश्वर में बुग्याल संरक्षण दिवस आयोजित किया जाएगा। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार और हिंदुस्तान दैनिक समाचार पत्र के जनपद चमोली प्रभारी क्रांति भट्ट को गिरी गंगा गौरव सम्मान 2025 से सम्मानित किया जाएगा। बुग्याल संरक्षण समिति की ओर से उक्त सम्मान के लिए वरिष्ठ पत्रकार क्रांति भट्ट का चयन किया गया है। अपने लेखों के जरिए इन्होंने विगत 36 सालों से हिमालय, पर्यावरण, बुग्याल, नदियों की चिंता, और बुग्यालों के संरक्षण और संवर्धन कि बात देश दुनिया के सामने रखी। गौरतलब है कि शब्द शिल्पी और प्रखर वक्ता क्रांति भट्ट विगत 36 सालों से पहाड़ में रहकर पत्रकारिता की अलख जलाए हुए हैं। एमए राजनीति शास्त्र और पत्रकारिता में स्नातक की डिग्री प्राप्त क्रांति भट्ट वर्ष 1989 से पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं। वे किशोर न्याय बोर्ड में सदस्य रहे। उन्होंने चमोली जिला रेडक्रास सोसाइटी में तीन वर्षों तक अध्यक्ष पद पर कार्य किया। वे 10 वर्षों तक लगातार चमोली जिला उपभोक्ता फोरम में सदस्य भी रहे और इस अवधि में कुछ समय के लिये उन्होंने रुद्रप्रयाग के जिला उपभोक्ता फोरम सदस्य का भी अतिरिक्त दायित्व का संभाला।
हिमालय, बुग्याल, नदियां, गाड़ गदेरे बचेंगे तो हिमालयी संस्कृति भी बचेगी और देवभूमि का भी अस्थित्व — क्रांति भट्ट।
बकौल क्रांति भट्ट वर्तमान में जनसरोकारो की पत्रकारिता करने वाले पत्रकार बेहद कम रह गये है। अब खबरें ढूंढने के लिए लोगों के पास समय नहीं है। जनसरोकारो की खबरें लिखने का किसी के पास समय नहीं है। अब तो बस काॅपी पेस्ट का जमाना है। जबकि सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के इस दौर में खबरे छूट नहीं सकती इसलिये खबरों के लिए पत्रकारों पर पहले से ज्यादा दबाव है। आज चुनौतियाँ पहले से ज्यादा बढी हैं। वहीं आमजन की समस्याओं को तंत्र तक पहुंचाने की जबाबदेही आज भी चौथे स्तम्भ की है। मैंने साढ़े तीन दशकों की पत्रकारिता के दौरान हमेशा पहाड़ की लोकसंस्कृति, जनसरोकारो से लेकर आम जन की आवाज को लोगों तक पहुंचाने का कार्य किया। मैंने सदूरवर्ती पहाड़ में रहकर अपनी माटी के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और फर्ज का निर्वहन किया है। मैने अपने पहाड़ की इन डांडी कांठी, शुद्ध हवा- पानी, गाड गदेरे, बुग्यालो, जंगलों को बेहद करीब से देखा महसूस किया है। मैने सदैव हिमालय के संरक्षण और संवर्धन की बात को देश दुनिया तक पहुंचाने की कोशिश की है। हमें हिमालय को बचाने की कोशिश करनी होगी। हिमालय, बुग्याल, नदियां, गाड़ गदेरे बचेंगे तो हिमालयी संस्कृति भी बचेगी और देवभूमि का भी अस्थित्व बचा रहेगा। इन दिनों हिमालयी इलाकों में हो रही आपदाओं ने भविष्य के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। हमें हिमालय को समझना होगा और उसकी संवेदनशीलता को। मुझे बेहद खुशी और आत्मसंतुष्टि होती है कि मैंने पत्रकारिता के साढ़े तीन दशक की यात्रा अपने पहाड़ में रहकर पूरे किये।
घर से शुरू हुई लेखनी की जात्रा, शिक्षक नें दिखलाई थी लीक से हटकर चलने की राह…
15 जून 1965 को सीमांत जनपद चमोली के गोपेश्वर गाँव में जेठुली देवी और चिरंजी लाल भट्ट के घर जन्मे क्रांति भट्ट को सामाजिक मूल्यों की दीक्षा अपने परिवार से विरासत में मिली थी। जबकि लोकसंस्कृति से लगाव चतुर्थ केदार भगवान रूद्रनाथ के शीतकालीन गद्दी स्थल गोपीनाथ की थाती गोपेश्वर से बचपन से ही हो गया था। क्रांति भट्ट नें प्राथमिक से लेकर स्नाक्तोतर की शिक्षा गोपेश्वर के प्राथमिक विद्यालय, इंटर काॅलेज और राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय से ग्रहण की। जबकि श्रीनगर से पत्रकारिता की पढ़ाई की। क्रांति भट्ट को पत्रकारिता की समझ भी विरासत में मिली। इनके घर से 60 के दशक में ‘उत्तराखंड ऑब्जवर’ साप्ताहिक समाचार पत्र निकलता था। जिसे इनके ताऊजी धनंजय भट्ट नें शुरू किया था। अपने ताऊजी के सान्निध्य में ही इनकी बेजोड लेखनी की जात्रा शुरू हुई, जबकि इनके शिक्षक डाॅ एस के सिंह नें इन्हें जीवन में बदलाव लाने के लिए सरकारी सेवक की जगह लीक से हटकर चलने की सलाह दी थी। जिसके बाद वे लखनऊ चले गये और तीन साल तक वहां पर नवभारत टाइम्स में पत्रकारिता की। लखनऊ के बाद क्रांति भट्ट नेपाल चले गये जहाँ तीन साल तक हिमाल में कार्य किया। 1989 में ये हिंदुस्तान से जुड़ गये और अपने पहाड़ वापस लौट आये। तब से लेकर वर्तमान तक विगत 35 बरसों से ये गोपेश्वर में हिंदुस्तान अखबार के जरिये पहाड़ के लोक,संस्कृति और जनसरोकारो की आवाज बने हुये हैं। इनके पास कई बाहर पत्रकारिता के लिए गोपेश्वर से इतर आकर्षक प्रस्ताव आये, परंतु इन्होंने पहाड़ में ही रहकर लेखनी के जरिए अपनी माटी और पहाड़ की सेवा करने का संकल्प लिया। जो आज भी बदस्तूर जारी है।
लेखनी के जरिए पहाड़ के लोक, संस्कृति को दिलाई नयी पहचान….
बीते तीन दशकों में अपनी बेजोड पत्रकारिता के जरिए क्रांति भट्ट नें पहाड़ के लोक के हर विषय पर अपनी लेखनी चलाई और देश दुनिया तक उसे पहुंचाया। चाहे बैकुंठधाम बद्रीनाथ के कपाट खुलने से लेकर कपाट बंद होने तक समस्त धार्मिक गतिविधियों को बेहद बारीकी से शब्दों के जरिए लोगों तक पहुंचाना हो या फिर ऐतिहासिक नंदा देवी राजजात यात्रा का सम्पूर्ण विवरण, गोपीनाथ मंदिर से भगवान रूद्रनाथ का हिमालय प्रस्थान से लेकर कपाट खुलने व बंद होने की प्रक्रिया या फिर जनपद में आयोजित होने वाले मेले, कौथिगो की सजीव कवरेज। हेमकुंड की यात्रा, फूलों की घाटी, नंदा की वार्षिक लोकजात सहित जनपद की हर गतिविधियों को जगह दी। वहीं पहाड़ की बोली भाषा, लोकसंस्कृति, लोकगीतों, वेशभूषा, आभूषणों को अपनी लेखनी से नयी पहचान दिलाई। फूलदेई त्यौहार से लेकर बिखौती कौथिग तक। जबकि पहाड़ की बेजोड़ हस्तशिल्प कला, लोककलाकारों को लेखनी से रूबरू करवाया। क्रांति भट्ट नें जनआदोलनो को लेखनी के जरिए हमेशा ताकत दी। पर्यावरण संरक्षण से लेकर पृथक राज्य के लिए उत्तराखंड आंदोलन को संजीवनी प्रदान की। वहीं सीमांत की सरहदों के ज्वलंत मुद्दे हो या फिर सीमांत जनपद में लोगों की समस्याओं को लेकर अपनी कलम की धार कभी भी कम नहीं होने दी। इन्हें पत्रकारिता के लिए विभिन्न मंचों से सम्मानित भी किया जा चुका है। नंदा देवी राजजात यात्रा समिति के दौरान ये समिति के सदस्य भी रहे हैं।
लेखनी के साथ प्रखर वक्ता भी हैं —
बेहद मिलनसार, मृद्धभाषी और साधारण व्यक्तित्व से ओतप्रोत क्रांति भट्ट न केवल बेजोड़ लेखनी के सिपाही हैं अपितु शानदार वक्ता भी हैं। हिंदी से लेकर उर्दू और अंग्रेजी में इन्हें महारथ हासिल है। हर भाषा में इनकी वाणी अत्यंत आकर्षक व प्रभावकारी है। विभिन्न आयोजनों, सेमिनारों से लेकर राष्ट्रीय लोकपर्व 15 अगस्त, 26 जनवरी, 2 अक्टूबर इत्यादि में बतौर वक्ता ये जब भी बोलते हैं तो अपनी प्रभावशाली वाणी के प्रभाव से सभी का ध्यानाकर्षण कर लेते हैं। इनकी भाषा पर इतनी शानदार पकड़, नपे तुले शब्द, धाराप्रवाह वाचन के हजारों लोग मुरीद हैं।
हमारी ओर से भी वरिष्ठ पत्रकार क्रांति भट्ट को गिरी गंगा गौरव सम्मान 2025 के लिए चयनित होने पर बहुत बहुत बधाई।








