देहरादूनः उत्तराखण्ड सरकार द्वारा उत्तराखण्ड के चारधामों सहित 51मंदिरों की व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने का हवाला देते हुए 2019 में देवस्थानाम बोर्ड अधिनियम गठित किया गया था, धार्मिक स्थलों पर देवस्थानाम बोर्ड के गठन से नारज तीर्थ पुरोहितों के लगातार आंदोलन और प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने बैकफुट पर आते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देवस्थानम बोर्ड भंग करने की घोषणा की।
उत्तराखण्ड के चारधाम बदरीनाथ केदारनाथ, गंगोत्री यमनोत्री के साथ अन्य सभी धार्मिक स्थलों पर सरकार द्वारा गठित देवस्थानाम बोर्ड के खिलाप तीर्थ पुरोहितों और हकहकूक धारियों का विरोध जारी था, जिसको लेकर त्रिवेंद्र सरकार तटस्थ थी और इस अधिनियम को जनहित का बताते हुए और धामों की व्यस्थाओं के बेहतर होने का हवाला दे रहे थे लेकिन वर्तमान मुखिया पुष्कर सिंह धामी ने जिस तरह से लगातार देवस्थानाम बोर्ड को लेकर लोगो और तीर्थ पुरोहितों से मुलाकात की और 2022 में इसको लेकर प्रभाव के आशंका समझते हुए देवस्थानम बोर्ड को लेकर एक हाई कमेटी गठित की कमेटी की रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए मंगलवार को मुख्यमंत्री द्वारा देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की घोषणा की गई। जिसके बाद चारों धामों के तीर्थ पुरोहितों और हकहकूधारियों ने सरकार का धन्यवाद किया अलग-अलग जगहों पर जश्न मनाया।
सरकार के इस फैसले को लेकर राकेश डिमरी, सुरेश डिमरी, पंकज डिमरी ने कहा कि सरकार ने देवस्थनाम बोर्ड को वापस लेने का निर्णय सराहनीय है इससे तीर्थ पुरोहितों की और हकहकूक धारियों की भावनाओं को आहत होने से बचाया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने जन भावनाओं को समझाा और उसी के अनुरूप मुख्यमंत्री ने निर्णय लिया है जो स्वागत योग्य है।
वहीं कांग्रेस जिलाध्यक्ष बीरेन्द्र ंिसह रावत ने कहा कि देवस्थानम बोर्ड सरकार ने तानाशाही रवैया अपनाया। कांग्रेस ने लगातरा इसका विरोध किया था लेकिन सरकार ने दो वर्ष तक लगातार जिस तरह से धामों के तीर्थ पुरोहितों के हक हकूकों के साथ छेडछाड किया वो सरासर गलत था और 2022 चुनाव को देखते देवस्थानम बोर्ड को लेकर फैसला वापस लिया गया है जो सरकार की मंशा को साफ दर्शता है सरकार का जनहित से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं बस केवल सत्ता हासिल करना मकसद है इसी लिए ठीक चुनाव से पहले सरकार ने यह फैसला लिया है।