सरकारी उपेक्षा के चलते खानापूर्ति तक सिमटे आंदोलन
आंदोलनों की उपेक्षा भविष्य की शुभ संकेत नहीं मानते राज्य आंदोलनकारी।
भराडीसैंण (गैरसैंण)-
रिपोर्ट- प्रेम संगेला
कभी गैरसैंण के नेतृत्व में आंदोलनों से जन्मे राज्य को वर्तमान दौर में देखा जाए तो गैरसैंण में विधानसभा सत्रों के आयोजनों के दौरान आंदोलनों की खबरें तक सरकार व विपक्ष तक नहीं पहुंच पाती हैं।दरअसल विधानसभा सत्र के दौरान सरकार आंदोलनकारियों के धरना-प्रदर्शनों से बचने के लिए अपनी व्यवस्थाएं चाकचौबंध बनाए रखती है।जिसके तहत मेहलचौरी से भराडीसैंण की तरफ पंहुचने के दौरान छोटे-बड़े 9 बैरियरों की अचूक सुरक्षा के साथ पुलिस मुस्तैद रहती है।कर्णप्रयाग से भराड़ीसैंण पहुंचने के दौरान 3 किलोमीटर पहले दिवालीखाल तक पंहुचने के लिए भी 3 बैरियरों के सुरक्षा चक्र को भेद पाना टेढी-खीर साबित होता आया है।
दिवालीखाल के बाद 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भराडीसैंण स्थित विधानसभा पंहुचने के लिए 5 स्तरीय सुरक्षा बैरियरों पर रहने वाले भारी पुलिस बल की लाठीडंडों के साथ ही पानी की बौछारों के साथ ओर भी तमाम इंतजामों के आगे आंदोलनकारीयों का टिक पाना संभव नहीं होता।आंदोलनकारीयों के आगे बढ़ने के दौरान हर बैरियर पर एकाध घंटे की धक्का-मुक्की के चलते विधानसभा परिसर के निकट भी नहीं पहुंच पाते हैं।आंदोलन से बने प्रदेश में आंदोलनों को लेकर सरकारें इतनी घबराई हुई रहती हैं,कि बैरियरों की चाक-चौंबद व्यवस्थाओं की दिवारों के चलते सरकार के नजदीक तो पंहुचना तो दूर उनकी बात तक सत्ता पक्ष व विपक्ष तक नहीं पहुंच पाती है।प्रदेश के विभिन्न कोनों से धक्के खाकर यहां तक पंहुचने वाले अधिकांश आंदोलनकारियों के प्रदर्शनों ओर उनकी मांगों की खबर तक सरकार के कानों तक नहीं पहुंच पाती है। इस दौरान किसी जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों की जगह कोई सरकारी नुमाईंदा ही वार्ता करके मांग पत्र लेकर सरकार तक बात पंहुचाने की खानापूर्ति जरूर पुरी कर लेता है।जिससे सत्र के दौरान होने वाले जनहित के धरना प्रदर्शनों की खबर सरकार को सत्र समाप्ति के बाद ही लग पाती है।जिसके चलते आंदोलनों से जन्मे उत्तराखंड प्रदेश में आंदोलन सिर्फ खानापूर्ति बंद कर रह गये हैं।जिनमें जेब की धनराशि खर्च कर दूर-दराज से आने वाले आंदोलनकारीयों के हाथ मायूसी के सिवा कुछ नहीं लगता है।
वर्तमान मानसून सत्र में 19 व 20 अगस्त को पहले दिन जहां यूकेडी व कांग्रेस पार्टी ने धरना प्रदर्शन किया,तो बुधवार को गैरसैंण क्षेत्रवासियों का विशाल धरना प्रदर्शन के साथ ही हरिद्वार व कुमाऊं से आए सूराज सेवा दल के कार्यकर्ताओं का धरना प्रदर्शन व बेरोजगार संगठन के धरना प्रदर्शनों के दौरान 2हजार से ज्यादा लोगों यहां पंहुचे।लेकिन सरकार तक इसकी खबर तक नहीं पहुंच पाई।वर्तमान में आंदोलन की बदहाली को लेकर उत्तराखंड आंदोलनकारी रहे महेशानंद जुयाल व हरेंद्र कंडारी कहते हैं कि जिस प्रदेश का जन्म ही आंदोलन से हुआ हो,लेकिन वर्तमान में आंदोलनों को लेकर सरकार व विपक्ष स्तर पर कोई गंभीरता न दिखाई देना लोकतांत्रिक रूप से अच्छा संकेत नहीं है।जो भविष्य में राज्य के सही दिशा में आगे बढ़ने को लेकर तमाम शंकाएं पैदा करती है।