Home उत्तराखंड जोशिमठ भुधँसाव की समस्या प्रकृतिक नही मानव जनित है:विशेषज्ञ

जोशिमठ भुधँसाव की समस्या प्रकृतिक नही मानव जनित है:विशेषज्ञ

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— डायनामाइट विस्फोटों के कृतिम भूकंप से जोशीमठ में मची तबाही
— वाडिया इंस्टिट्यूटव यूसेक की रिपोर्ट में भी जोशीमठ शहर को प्राकृतिक दृष्टि से माना गया है संवेदनशील

जोशीमठ के नीचे सुरंग बनाने में प्रयोग किए गए डायनामाइट विस्फोटों की गूंज भूधंसाव के रूप में सामने आई है। वाडिया इंस्टिट्यूट और यूसेक की रिपोर्ट में भी जोशीमठ शहर प्राकृतिक दृष्टि से संवेदनशील माना गया है। जोन पांच में आने से यह क्षेत्र गढ़वाल हिमालय के कमजोर भू-भाग में से एक है। यहां भूधंसाव का सबसे बड़ा कारण धरती के अंदर डायनामाइट विस्फोटों से उत्पन्न किए गए कृतिम भूकंप को माना जा रहा है। जोशीमठ की घटना के बाद अब पहाड़ी क्षेत्रों में हो रहे प्रकृति के अनियोजित दोहन का सवाल उभरकर सामने आया है।
वर्तमान समय में पूरे उत्तराखंड में 558 जल विद्युत परियोजनाएं बन रही हैं। इनमें से 26 परियोजनाओं पर चमोली जिले में काम हो रहा है। इन परियोजनाओं के निर्माण में कार्यदाई कंपनियां डायनामाइट विस्फोटों का प्रयोग कर रही हैं। जोशीमठ में अंडर ग्राउंड बाइपास बनाने में भी रोजाना सैकड़ों विस्फोट किए गए। जिससे वहां जमीन के नीचे की चट्टानें हिल गई। बरसात में इन चट्टानों में बारीक छेदों से धरती के अंदर पानी जमा हुआ और उसके बाद यह भू-धंसाव के रूप में सामने आ रहा है।

जोशीमठ के सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह ने वहां काफी समय पहले प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और विस्फोटों का विरोध किया था। इस संबंध में उन्होंने फॉरेस्ट विभाग और डीएम को भी लिखा था और इनसे होने वाले नुकसान की एक रिपोर्ट बनाकर प्रशासन को उपलब्ध कराई थी। जिसमें उन्होंने जियोलॉजिकल द़ष्टि से यहां की चट्टान को कच्ची बताया था और कहा था कि जोशीमठ के ऊपरी भाग में काफी पहले से दरारें आ रही हैं। उस समय प्रशासन ने उनकी बात को अनसुना किया था।

—100 से अधिक कंपनियां कर रही है छोटी-बड़ी परियोजनाओं में काम
जोशीमठ में वर्तमान समय में बन रही परियोजनाओं और अंडरग्राउंड बाइपास को बनाने में सैकड़ों कंपनियां काम कर रही हैं। इन परियोजनाओं को बनाने में ये कंपनियां वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग न कर विस्फोटों से चट्टानों को तोड़ रही हैं। टनल के अंदर जब विस्फोट किया जाता है तो वहां पानी निकलता है। फिर वह पानी वहां जमा होता है और बाद में जहां से कच्ची जमीन मिलती है वहां से बाहर आ जाता है। एसे में पानी से खाली हुए भाग में भूधंसाव होना स्वाभाविक प्रक्रिया है और जोशीमठ में भी यही माना जा रहा है।

—वाडिया इंस्टिट्यूट और यूसेक ने भी जोशीमठ को माना है संवेदनशील —
यूसेक की रिपोर्ट में भी यह बताया गया कि भूगर्भ की दृष्टि से जोशीमठ कमजोर क्षेत्र में आता है। इस रिपोर्ट में साफ उल्लेख किया गया है ‌कि हिमालयी क्षेत्र में डायनामाइट का विस्फोट नहीं किया जाना चाहिए। इसके आसपास हेलंग से भ्रंस रेखा भी गुजरती है। एसे में जब भूकंप आते हैं तो जोशीमठ की भू-आकृति पर भी इसका सीधा प्रभाव पड़ता है।

–डॉ भालचंद्र सिंह नेगी भूगोल विभाग  पीजी कॉलेज गोपेश्वर  का कहना है कि–
जोशीमठ सहित पूरे हिमालयी क्षेत्र में निर्माण कार्य वैज्ञानिक पद्धति से किया जाना चाहिए। जल विद्युत परियोजनाएं अपने लाभ के लिए डायनामाइट विस्फोट का प्रयोग करती हैं। जिससे धरती के अंदर चट्टानें हिल जाती और वहां पानी के स्रोत फूटने लगते हैं। एसे में पानी कमजोर भूभाग से निकल जाता है और बाद में भूधंसाव की घटनाएं सामने आती हैं।