गोपेश्वर:देश के पहले आईएफएस अधिकारी स्व निर्मल कुमार जोशी की स्मृति में आयोजित होने वाले निर्मल कुमार जोशी वन्य संरक्षण पुरस्कार के लिए उपवन छेत्रधिकारी त्रिलोक सिंह बिष्ट का चयन हुवा है। त्रिलोक सिंह बिष्ट 35वर्षो से वन्य सरक्षण ओर पर्यवारण के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहे हैं।
पहला निर्मल कुमार जोशी वन्यजीव संरक्षण पुरूस्कार उप वन क्षेत्राधिकारी त्रिलोक सिंह बिष्ट को प्रदान किया जायेगा। देश के पहले आईएफएस अधिकारी एवं चिपको आंदोलन के दौरान बदरीनाथ वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी रहे स्व. निर्मल कुमार जोशी की स्मृति में सीपी भट्ट पर्यावरण एवं विकास केन्द्र द्वारा यह वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले सेवारत वनाधिकारियों और संरक्षणवादियों को हर साल यह पुरूस्कार दिया जाता है। पुरूस्कार समिति की बैठक में चयन समिति द्वारा वन्य जीव संरक्षण के लिए लीक से हटकर कार्य करने वाले त्रिलोक सिंह बिष्ट को 2021 के पुरूस्कार के लिए चयनित किया है।
चयन समिति के सदस्य सचिव एवं केन्द्र के प्रबंध न्यासी ओम प्रकाश भट्ट ने बताया कि निर्मल कुमार जोशी देश के बेहतरीन वनअधिकारियों में से एक रहे हैं। वे भारत के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में महानिदेशक के पद से सेवारत होने के बाद उच्चतम न्यायालय द्वारा वन और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए गठित उच्च सत्ताक समिति के सदस्य के रूप में कई वर्षो तक कार्यरत रहे।
चिपकों आंदोलन के लिए तत्कलीन राज्य सरकार द्वारा गठित समिति के लिए रिपोर्ट बनाने से लेकर महत्वपूर्ण सुझाव देने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सातवें और आठवें दशक में वनाधिकारी के रूप में गढ़वाल में किए गए उनके कार्यो को आज भी याद किया जाता है।
इस साल का पुरूस्कार निर्मल कुमार जोशी के गृह नगर हलद्वानी में अगले महीने एक सादे समारोह में त्रिलोक सिंह बिष्ट को सम्मानित किया जायेगा। श्री भट्ट ने बताया चयन समिति वन विद्व बीडी सिंह की अध्यक्षता में गठित है जिसमें डा. अरविन्द भट्ट और प्रबंध न्यासी सदस्य है।
समिति की बैठक में त्रिलोक सिंह बिष्ट के 35 साल से अधिक के कार्यकाल में वन्य जीवों के अवैध शिकार में सम्मिलित कई प्रशासनिक और न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ एक्शन लेने में भी कोताही नहीं की है। केदारनाथ कस्तूरी मृग अभ्यारण्य, फूलों की घाटी नेशनल पार्क और नन्दोदवी नेशनल पार्क में सेवा के दौरान उन्होने प्रभावशाली अधिकारियों और शिकारियों के गठजोड़ का पर्दाफास किया था। जिसके लिए कई बार उन्हें शाररिक व मानसिक दबाव झेलने पड़े। शिकारियों की ओर से इनके खिलाफ मामले भी दर्ज किए गए। वन्यजीव संरक्षण में इनकी सर्कियता और प्रयसों के कारण कई प्रभावशाली अफसरों को नौकरी भी गंवानी पड़ी थी।
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