Ropeway बनाम NTPC Project …
विश्व प्रसिद्ध हिम क्रीड़ा स्थल ‘औली’ बर्फ की आगोश में है। यहां के सभी ढलान, पेड़, पर्वत बर्फीली सफेद चादर ओढ़ चुके हैं। लेकिन अफसोस कि पर्यटक अबकी बार रोपवे में सफर करते हुए हिमालय का 360 डिग्री व्यू देखने से वंचित रहेंगे। जोशीमठ क्षेत्र भू धंसाव की चपेट में है लिहाजा जिला प्रशासन ने एहतियातन रोपवे के संचालन पर रोक लगा रखी है।
फिलहाल किसी को नहीं मालूम कि आपदा से जूझ रहे जोशीमठ का भविष्य क्या होगा। पुख्ता तौर पर कहा नहीं जा सकता कि इसका कोई स्थाई ट्रीटमेंट है भी या नहीं। ऐसे में जोशीमठ–औली रोपवे सिस्टम के वजूद पर भी संकट माना जा सकता है। ऐतिहासिक शहर जोशीमठ के साथ ही यह रोपवे परियोजना उत्तराखण्ड की एक धरोहर है। धरोहर इसलिए क्योंकि औली की वास्तविक खूबसूरती को इसकी हवाई यात्रा से ही निहारा जा सकता है। आंकड़े गवाह हैं कि जोशीमठ से औली तक रोपवे का हवाई सफर यहां आकर्षण का मुख्य केन्द्र रहा है। तभी तो मात्र इस परियोजना से सरकार (GMVN) की वार्षिक आय 4 करोड़ के आसपास पहुंच चुकी है। वो इसलिए क्योंकि सालभर में तकरीबन 50,000 पर्यटक रोपवे से औली की आवाजाही करते हैं। ये भी सच कि जोशीमठ और वहां के रहवासी सुरक्षित रहेंगे तभी तो औली और वहां आयोजित होने वाली पर्यटन व साहसिक गतिविधियों को कोई औचित्य रहेगा वरना ये सब किसके लिये है।
मैं भी चमोली जिले का वशिंदा हूं इसलिए भी जोशीमठ आपदा को लेकर ज्यादा चिंतित रहता हूं। ऐसा कोई दिन नहीं जब अपने मित्रों, सगे संबंधियों से इस विपदा को लेकर बातचीत न होती हो। इसी बातचीत में एक महत्वपूर्ण बात सामने आई तो सोचा आपके साथ साझा कर लूं। ये सब जानते हैं कि सन 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जोशीमठ–औली रोपवे परियोजना का शिलान्यास किया था। इसका निर्माण पूरा होने के बाद 1994 में सम्मिलित उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल बोरा ने इसका लोकार्पण किया। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि 1983 में लोकार्पण के बाद 1989 तक इस परियोजना का काम रुका रहा, शुरू नहीं हो सका। काम क्यों रुका रहा इसे लेकर तमाम तरह की चर्चाएं रहीं। उसमें एक वजह यह भी थी कि उस समय भी ये सवाल उठा था कि जोशीमठ की भूमि मजबूती के लिहाज से रोपवे परियोजना निर्माण के लिए मुफीद है भी या नहीं। हालांकि जांच रिपोर्ट में क्या तथ्य सामने आए ये सार्वजनिक नहीं हो पाया था। फिर भी भूमि की मजबूती को जांचा गया, परखा गया। इन सबके बीच परियाजना 1993 में बनकर तैयार हो गई और उसका सफल व सुरक्षित संचालन अब तक जारी रहा।
यहां ये संदर्भ इसलिए भी जरूरी है कि बहस NTPC की मंशा पर भी होनी चाहिए। आपदा प्रबंधन सचिव डा. रंजीत सिन्हा भी मान चुके हैं कि “NTPC ने प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरू करने से पहले पूरे जोशीमठ शहर का भूगर्भीय सर्वे किया ही नहीं”। साफ है कि NTPC के इस गैरजिम्मेदाराना रवैया का खामियाजा आज समूचा जोशीमठ भुगत रहा है। तो फिर ऐसे में इस आपदा के लिए NTPC की जिम्मेदारी फिक्स करने में देर किस बात की ?
–––