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शहीदों के लिए परम्परा का निर्वहन महज घोषणाओं तक सिमट गया

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शहीदों के लिए परम्परा का निर्वहन महज घोषणाओं तक सिमट गया

देश की सरहदों पर शहीद होने वाले सैनिकों की मरणोपरांत सम्मान के नाम पर घोषणाएं कर शहीदों के प्रति आभार जताने की सरकारों की बड़ी परम्परा रही है। लेकिन चमोली जिले में शहीदों के लिए परम्परा का निर्वहन महज घोषणाओं तक सिमट गया है। यहां चमोली जिले के असेड़-सिमली गांव निवासी कारगिल शहीद सतीश के की शहादत पर तत्कालीन मुख्यमंत्री की ओर घोषणाएं तो की गई, लेकिन वर्तमान तक घोषणाओं को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है। जिसके चलते शहीद के बुजुर्ग पिता अब तक घोषणाओं को जमीन पर उतारने के लिये प्रशासनिक कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। ऐसे में देश पर न्यौछावर होने वाले शहीदों को लेकर शासन और प्रशासन की संवेदनश्शीलता का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

शहीदों के लिए परम्परा का निर्वहन महज घोषणाओं तक सिमट गया

 

गौरतलब है कि नारायणबगड़ ब्लाॅक के असेड़-सिमली गांव में 5 अप्रैल 1976 को महेशानंद सती के घर शहीद सतीश् चंद्र सती का जन्म हुआ। देश रक्षा के जज्बे के चलते भारतीय सेना में भर्ती हुआ। जिसके बाद कारगिल युद्ध के दौरान 30 जून 1999 को 23 वर्ष की आयु में देश की रक्षा करते हुए सतीश ने अपने प्राण देश रक्षा में न्यौछावर कर दिये। सतीश की शहादत के बाद सरकार ने जहां शहीद के गांव को जोड़ने वाली नारायणबगड़-परखाल सड़क और प्राथमिक विद्यालय का नाम शहीद के नाम से रखने, शहीद के नाम का स्मारक बनाने की घोषणा की। लेकिन शासन और प्रशासन की लापरवाही का आलम यह है कि सीएम की घोषण के बाद जहां सड़क पर शहीद के नाम का बोर्ड लगाया गया। वहीं वर्तमान तक सरकारी दस्तावेजों में सड़क का नाम नहीं बदला जा सका है। शहीद के स्मारक निर्माण के लिये चयनित जखोली सिमार में शिलान्यास कर वर्तमान तक जस का तस छोड़ दिया गया है। ऐसे में शहीद सतीश के 82 वर्षीय पिता सरकारी घोषणाओं को हकीकत में बदलने और बेटे को सम्मान दिलाने के लिये दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं।

सतीश के शहीद होने के बाद सरकार की ओर से सड़क और विद्यालय का नाम सतीश के नाम पर रखने और स्मारक निर्माण की बात कही थी। लेकिन शासन और प्रशासन से पत्राचार के बाद भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।

महेशानंद सती, शहीद के पिता।

शहीद सतीश के नाम पर सड़क, विद्यालय का नाम रखने और स्मारक निर्माण को लेकर यदि घोषणा की गई है, तो मामले को दिखवाया जाएगा और जो भी कार्रवाई नियमानुसार की जानी है, इसे शीघ्र पूर्ण करवाया जाएगा।

किशन सिंह नेगी, उपजिलाधिकारी, थराली।

लांखी गांव निवासी मनोज नेगी का कहना है कि वर्ष 2019 तक उन्होंने भी अन्य युवाओं की तरह रोजगार की चाह में मैदानी क्षेत्रों में निजी कम्पनियों में काम किया। लेकिन कंपनियों में मिलने वाली 8 से 10 हजार की तनख्वाह से आर्थिकी को सुदृढ करना कठिन लगा। ऐसे में उन्होंने वर्ष 2020 के जनवरी माह में अपने सगे-सम्बंधियों से आर्थिक सहयोग लेकर करीब 1 लाख 75 हजार की लागत से नूडल्स बनाने के उपकरण खरीद कर घर पर ही स्वरोजगार शुरु किया। मनोज ने बताया कि घर पर रहते हुए जहां वे नूडल्स का स्थानीय बाजार घाट में विपणन कर 15 हजार रुपये मासिक की शुद्ध आय कर रहे हैं। वहीं इसके साथ ही घर के अन्य कार्यों को भी समय दे पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि घर पर मिल रही 15 हजार की आय से उनकी आर्थिकी को बल मिला है। कहा कि वर्तमान में नूडल्स के साथ ही बेकरी उत्पादों की बाजार में अच्छी मांग है। यदि युवाओं की ओर से इसे अपने रोजगार के रुप में अपनाया जाता है, तो युवाओं को रोजगार के लिये घर छोड़ने के लिये मजबूर नहीं होना होगा।