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शीतकाल के लिए बंद हुये चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ के कपाट

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जय भोले ! — शीतकाल के लिए बंद हुये चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ के कपाट..
हिमालय में स्थित धामों के कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। बर्फ की सफेद चादर, बर्फीली हवा और ठंड के बीच चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ के कपाट वैदिक मंत्रोच्चार के साथ आज 18 अक्टूबर को सुबह 8ः00 बजे विधि विधान के साथ आम श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल के लिए बंद कर दिये गए है। इस अवसर पर बाबा का धाम भोले के जयकारों से गुंजयमान हो गया। अब 6 महीने के बाद ग्रीष्मकाल में ही रूद्रनाथ के कपाट खुलेंगे। आज भगवान रूद्रनाथ के जयकारों के साथ भगवान रूद्रनाथ की उत्सव डोली रूद्रनाथ मंदिर से गोपीनाथ के लिए रवाना हुई। 19 अक्टूबर को भगवान रूद्रनाथ की उत्सव डोली सगर गांव होते हुए गंगोल गांव और 20 अक्टूबर को शीतकालीन गद्दी स्थल गोपीनाथ मंदिर, गोपेश्वर पहुॅचेगी।

— कुछ इस तरह से हुई भगवान रुद्रनाथ के कपाट बंद की प्रक्रिया!

सुबह भगवान का दिब्य स्नान और मंत्रोच्चार जिसके बाद महाभिषेक चंदन, भस्म, आभूषणों, हिमालयी फूलों से अर्चन वंदन तत्पश्चात रूद्राभिषेक। फिर सभी देवताओं का आवह्न और हिमालयी पुष्पों, जडी बूटियों, पवित्र हिमालयी वनस्पतियों और मंत्रो से भगवान रुद्रनाथ के विग्रह को ढका गया जिसके बाद विधि विधान व मत्रोच्चार के साथ कपाट बंद। इसके उपरांत भगवान की उत्सव डोली भगवान से आज्ञा लेकर गोपेश्वर गोपीनाथ मंदिर के लिये रवाना हो गयी।

— ये है रुद्रनाथ मंदिर!

रुद्रनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का एक मन्दिर है जो कि पञ्चकेदार में से एक है। समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। यहाँ पूजे जाने वाले शिव जी के मुख को ‘नीलकंठ महादेव’ कहते हैं। यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है, जहाँ शिवजी गर्दन टेढ़े किये हुए विराजमान हैं। माना जाता है कि, शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है, यानी अपने आप प्रकट हुई है और अब तक इसकी गहराई का पता नहीं लग पाया है। यहां भगवान शिव के रुद्र और शांत दोनों रूपों के दर्शन भक्तों को प्राप्त होते हैं। शीतकाल में बाबा गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में भक्तों को 6 महीने तक दर्शन देते हैं।

— ये है धार्मिक आस्था!

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पांडवों पर गोत्र हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति के लिए पांडवों ने भगवान शिव की आराधना की। मगर भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडवों ने भगवान शिव का पीछा किया तो उत्तराखंड के पंचकेदारों में भगवान शिव ने पांडवों को अपने शरीर के पांच अलग-अलग हिस्सों के दर्शन कराए। रुद्रनाथ में जब पांडवों को शिव के मुख दर्शन हुए तब जाकर उन्हें गोत्र हत्या से मुक्ति मिली।

— यह भी है मान्यता!

सती पार्वती ने जब अपने पिता के यहां आयोजित यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रण न देने का समाचार सुना तो उन्होंने आक्त्रोशित होकर उसी यज्ञ कुण्ड में अपने जीवन की आहुति दे दी। बताते हैं कि भगवान शिव ने रुद्रनाथ में तब तिरछी गर्दन कर नारद मुनि से सती का हाल जाना था।

— बाबा का धाम प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना!

रुद्रनाथ का समूचा परिवेश इतना अलौकिक है कि, यहां के सौन्दर्य को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नन्दा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढाती हैं। इसके चारों ओर शायद ही ऐसी कोई जगह हो जहां हरियाली न हो, फूल न खिले हों। रास्ते में हिमालयी मोर, मोनाल से लेकर थार, थुनार व मृग जैसे जंगली जानवरों के दर्शन तो होते ही हैं, बिना पूंछ वाले शाकाहारी चूहे भी आपको रास्ते में फुदकते मिल जाएंगे। भोज पत्र के वृक्षों के अलावा, ब्रह्मकमल भी यहां की घाटियों में बहुतायत में मिलते हैं।