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आधुनिक गढ़वाल मंडल के जनक मुकुंदी लाल बैरिस्टर

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गढ़वाल के प्रथम बैरिस्टर मुकंदी लाल एक प्रखर विचारक लेखक कला मर्मज्ञ गढ़वाल चित्रकला के जनक और राष्ट्रवादी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्ही  की दृढ़ इच्छा शक्ति से 1 जनवरी 1969 को कुमाऊं से पृथक कर गढ़वाल मंडल कमिश्नरी की स्थापना संभव नहीं थी।
उत्तराखण्ड के प्रथम बैरिस्टर मुकुन्दीलाल का जन्म 14अक्टूबर1884 ई0 को गोपेश्वर के पाडुली गांव में हुआ था। इनका पिता का नाम बद्री प्रसाद और माता का नाम पदमा देवी था, इस संतान केे पूर्वज 16वी शदाब्दी में इनके पर्वूज किशन सिंह पूरमला पंगाव से गढवाल में फतेह शाह के शासन काल में श्रीनगर में बसे, उनके दादा केशर सिंह और दादी फैडी निसणी गांव की भण्डारी जाति की थी। गढवाल में राजवंश में इन्हें चैबेदार के पद पर फतेह शाह ने नियुक्त किया था। 18वीं शताब्दी में इनका परिवार पाडुली गोपेश्वर में आ बसा था।
पौड़ी से उनका ऐसा अनुराग था की पौड़ी कमिश्नरी का मुख्यालय और महाविद्यालय की स्थापना करने में उनका अतुलनीय योगदान था। 1900 से 1905 तक वे पौड़ी में रहे। इस अवधि में उन्होंने मैसमोर  स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की। 1905 में मुकुन्दी लाल ने उत्तराखंड से पहले कांग्रेस डैली गेट के रूप में बनारस अधिवेशन में भाग लिया था, तब वे अल्मोड़ा में कक्षा 9 के छात्र थे।1913 से 1918 तक इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से b.a. और बार एट लॉ कर मई 1919 में वापस भारत आए। वापसी पर स्वयं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनकी अगवानी की थी। और उन्हें आनंद भवन इलाहाबाद में रहने का सुझाव दिया था। किंतु उन्होंने वापस गढ़वाल लौटकर लैंसडाउन में वकालत शुरू करने का निर्णय लिया। इंग्लैंड प्रवास में एक अंग्रेज महिला से विवाह करने के उपरांत भी वे इंग्लैंड में भारतीयों के वैचारिक मंच से स्वाधीनता के लिए जनमत जुटाने का कार्य करते रहे उनकी बहुमुखी प्रतिभा से प्रभावित होकर लोकमान्य तिलक और महर्षि अरविंद ने उनसे भेंट कर देश के जन जागरण और मुक्ति संग्राम में सहयोग का आह्वान किया। मुकंदी लाल जो गोविंद बल्लभ पंत से 3 वर्ष बड़े थे, ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने कांग्रेस से जुड़कर जनता का नेतृत्व किया था। उत्तराखंड में जब गांधीजी असहयोग आंदोलन के लिए स्कूल , कॉलेज और अदालतों के बहिष्कार का आह्वान कर रहे थे तब इन नेताओं ने गांधी के समक्ष पहाड़ के ज्वलंत प्रश्नों बेगार और वन कष्टों को लेकर आंदोलन चलाने का निश्चय किया। 1923 और 1926 में यह दोनों नेता काउंसिल के लिए चुने गए 1926 -1930 तक मुकुंदी लाल प्रांतीय काउंसिल में डिप्टी स्पीकर पद पर रहे 1930 में उन्होंने राजनीति से हटने का निश्चय किया फिर कला गुरु कुमार स्वामी से मिलकर मौला राम और चेतू मणक के चित्रों को गढ़वाली चित्रकला शैली के रूप में मान्यता दिलाई।1975 में जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमंती नंदन बहुगुणा ने गढ़वाल मंडल में देहरादून को शामिल करने का निर्णय लिया था, तब उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया था।
उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि भविष्य में देहरादून गढ़वाल को निगल जाएगा और ऐसा ही हुआ दूरदर्शी मुकुंदी लाल राज्य निर्माण के विरोध में थे। उनका स्पष्ट कहना था कि छोटी प्रशासनिक इकाइयों के गठन से ही पहाड़ की समस्याओं का हल हो सकता था। उन्होंने आजादी के संघर्ष के दौर में भी पहाड़ में तकनीकी शिक्षा पर विशेष जोर दिया था 1926 में उन्होंने कोटद्वार ,दुगड्डा, पौड़ी, पैठाणी, नंदासैण होकर सुरंगों के माध्यम से कर्णप्रयाग तक वैकल्पिक रेल मार्ग का प्रस्ताव काउंसिल में रखा था।
    11 जनवरी 1982 को 96 वर्ष की अवस्था में बरेली के सैन्य अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली नई पीढ़ी को उनके योगदान से परिचित कराया जाना बेहद जरूरी है। 14 अक्टूबर को उनकी 136वीं जयंती है, सरकार से आग्रह है कि वे मुकुन्दी लाल जी की जयंती को राज्य के गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय करें