Home उत्तराखंड बेनिताल में निजी सम्पति का लगा बोर्ड क्या है मामला पढ़ें

बेनिताल में निजी सम्पति का लगा बोर्ड क्या है मामला पढ़ें

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चमोली जिले के करणप्रयाग क्षेत्र में अपनी खूबसूरती से सबको आकर्षित करने वाला बेनीताल मैं लगे निजी संपत्ति के बोर्ड ने सभी को आश्चर्यचकित कर लिया है ऐसे में प्रकृति प्रेमी और सामाजिक राजनीतिक लोगों में इस बोर्ड को लेकर चर्चा होने लगी है कई प्रकृति प्रेमियों ने सरकार से इस मामले पर पर जांच करने की भी मांग उठाई है जनपद में एक खूबसूरत और स्वर्ग सा सुंदर स्थान है वेनीताल।

बताते हैं कि ब्रिटिश काल में वेनीताल के समीप कई सौ एकड़ भूमि अंग्रेज शासक किसी भारतीय को बेचकर चले गए थे। सरकार ने जब इस पर्यटन स्थल की सुध ली तो इस पर भारतीय सरीन परिवार ने अपनी निजी भूमि बताया। जिसे लेकर सरकार ने न्यायालय की शरण ली। वर्ष 2011 में न्यायालय ने भूमिधर को नियमानुसार धनराशि चुकाने और भूमि को अपने कब्जे में लेने के आदेश दिए, लेकिन सरीन परिवार फिर न्यायालय की शरण में चले गया। अब यहां बकायदा राजीव सरीन नाम की ओर से निजी संपत्ति का बोर्ड भी स्थापित कर लिया गया है।

आरटीआई लोक सेवा समिति द्वारा वृक्षाबंधन अभियान के तहत वेनीताल के पुनर्जीवित करने को लेकर सरकार का ध्यान आकर्षित करना चा‌हा तो उनकी नजर यहां लगे निजी संपत्ति के बोर्ड पर पड़ी।

अभियान के संयोजक मुकुंद कृष्ण दास ने बताया कि वेनीताल के समीप की भूमि निजी हाथों में कैसे पहुंची, सरकार को इसकी गहराई से जांच करनी चाहिए। देश में जितने भी तालाब और बुग्याल हैं, वे राष्ट्रीय व राजकीय संपति होती हैं। साथ ही प्राकृतिक जल स्रोत और जल संवर्द्घन के हर स्रोत भी राष्ट्र की संपत्ति होती है। यह आश्चर्य करने वाला है कि कई दशक पूर्व ब्रिटिश काल में ही इस भूमि को निजी हाथों में सौंप दिया गया। इसकी गहराई से जांच की जानी बेहद जरुरी है। दशकों पूर्व जहां दूर-दूर तक वाहन की सुविधा नहीं थी, वहां कोई भूमि का सौदा करने पहुंचा, तो यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इसी जांच होनी चाहिए।

—————————————–वेनीताल की भूमि के लिए हुए कई आंदोलन

जब बुग्याल प्रेमियों और पर्यावरण प्रेमियों को यह बात पता चली कि वेनीताल की कई एकड़ भूमि निजी हाथों में है, तो इसके लिए क्षेत्र में खूब आंदोलन हुए। स्वामी मन्मंथन और शहीद बाबा मोहन उत्तराखंडी के नेतृत्व में लोगों ने जोरशोर से आंदोलन किए, लेकिन भूमि के पक्के दस्तावेज होने के कारण इस पर्यटन स्थल को मुक्त नहीं किया जा सका। अब फिर वेनीताल के हरे-भरे बुग्याल को मुक्त करने की आवाज उठने लगी है, इस पर सरकार कितना अमल करती है, यह आने वाला वक्त ही बता पाएगा।