Home Uncategorized धौलीगंगा पर विद्युत परियाजनाओं को बिना सोचे समझे स्वीकृति देना खतरनाक-चंडीप्रसाद भटट

धौलीगंगा पर विद्युत परियाजनाओं को बिना सोचे समझे स्वीकृति देना खतरनाक-चंडीप्रसाद भटट

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प्रसिद्ध पर्यावरणविद्द गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित चंडीप्रसाद भटट से तपोवन क्षेत्र में हुई घटना पर खास बात

रिपो- 7फरवरी 2021 रविवार को चमोली के तपोवन क्षेत्र में ग्लेशियर के टूटन से विद्युत परियाजनाओं के साथ जन मानस को जानमाल का भारी नुकसान के लिए रेमन मैग्सेसे अर्वाड विजेता चंडी प्रसाद भट्ट ने विद्युत परियोजनाओं को बिना धरातलीय परिस्थितियों को सोचे समझे स्वीकृति दिया जाना बताया। चंडी प्रसाद भटट से गढवाल हेरीटेज ने बात की –तपोवन क्षेत्र में जो घटना हुई उसको किस प्रकार से देखते हैं 


चंडी प्रसाद भटट- तपोवन क्षेत्र में जो घटना घटित हुई वह हृदय विदारक है और जन मानस की जो क्षति हुई है वह अपूर्णीय क्षति है।
रिपो- तपोवन क्षेत्र में पर्यावरण बचाये जाने को लेकर गौरादेवी और आप सभी लोगों द्वारा चिपकों मूवमेंट चलाया गया था तो वर्तमान में किस तरह से पर्यावरण से छेडछाड से प्रकृति उग्र होने के कारण-
चंदी प्रसाद भटट- मनुष्य द्वारा अनियोजित तरीके से विकास किया जा रहा है हिमालयी क्षेत्र बहुत ही संवेदनशील है चिपकों आंदोलन के क्षेत्र में विद्युत परियोजनाओं की बिना सोचे समझे और धरातल की बनावट और यहां की संवेदशीलता को देखे बिना ही विद्युत परियोजनाओं के लिए स्वीकृत दिये जाना दुर्भाग्यपूण है। चिपकों आंदोलन के लिए जिस क्षेत्र में एक एक पेड को बचाने के लिए रेणी की महिलाएं चिपको नेत्री गौरा देवी के नेतृत्व में खडी हो गयी थी आज वहों विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में न जाने कितना बेतरतीब ढंग से निर्माणकार्य किये जा रहे हैं। जिसका खामियाजा आज इस तरह की घटनाऐं सामने आ रही है।
रिपो- आपने लगातार आपदा प्रभावित क्षेत्रों और आपदा प्रभावितों से अनुभव साझा किये हैं इससे पूर्व भी आपदाऐं आती रहें लेकिन जिस तरह से अब ये घटनाएं लगातार बढ रही हैं इसके कारण क्या हो सकते हैं।


चंडी प्रसाद भटट – लगातार बढ रही आपदाओं के कारणो के बारे में यही सच है कि विकास सभी चाहते हैं और विकास की जिदद भी रहती है ऐसे में तकनीकी और वैज्ञानिक दृष्टि कोण से जिस स्थान पर विकास किया जाना उसकी भौगोलिक परिस्थितियों और संवेदशीलता को न समझ पाना उस पर ठीक से कार्य नही किया जाना कारण बन रहा है। वहीं उन्होंने कहा कि जब भी इस तरह की आपदायें आती है सरकारों द्वारा विद्युत परियोजनाओं का बीमा दिया जाता है और कंपनियों अपनी क्ष्तिपूर्ति कर लेते हैं लेकिन कंपनियों के निर्माण के कारण उस क्षेत्र के स्थानीय लोगों और इसके प्रभाव के कारण प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष जो क्षति होती है उस पर कोई नीति स्पष्ट नीति नहीं होती है ऐसे में भी नुकसान आम जनमानस को ही उठाना पडता है।
रिपो आखिरी सवाल- भविष्य में भी लगातार हिमालय क्षेत्र में विकास योजनाऐं चलती रहंेगी विकास भी जरूरी है और सीमान्त क्षेत्र में भी विकास पहंचे इसकी सभी की मांग होती है।
चंडी प्रसाद भटट – हिमालय प्यांकू है( प्यांकू एक गढवाली शब्द है जिसका मतलब होता हे सेंसटिंव अर्थात कुछ ऐसे बच्चे या लोग जिन्हें छोटी छोटी बातों पर रोना आता हो जिनको बहुत ही सहजता से समझाना और मनाना पडता है तीखा व्यवहार जिन्हें बिलकुल भी नहीं भाता है उन्हें गढवाली में प्यांकू कहते हैं) जिस पर जोर जबरदस्ती नहीं कर सकते हैं हिमालय अगरनिर्माण कार्य करने हैं तो इसकी संवेदनशीलता और यहां कि विषमभौगोलिक परिस्थितियों समझना होगा हिमालय क्षेत्र की परिस्थितियोंके अनुसार ही काम करना होगा अगर कुछ भी यहां की परिस्थितियों के अनुसार नहीं होगा तो यह क्षेत्र इतना संवेदनशील है कि कोई इसकी रोद्र रूप को रोक नही पायेगा