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बधाईयां!– चमोली (बिरही) की नर्वदा रावत को मिलेगा तीलू रौतेली पुरुस्कार, पारम्परिक हथकरघा और हस्तशिल्प कला को नयी पहचान दिलाई

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ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
राज्य सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में में उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं का चयन प्रतिष्ठित तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए किया गया। 2024 में दिए जाने वाले इन पुरस्कारों के नामों की घोषणा की गई है। इस साल 13 महिलाओं को तीलू रौतेली पुरस्कार और 32 आंगनबाड़ी कार्यकत्रीयों को आंगनबाड़ी कार्यकत्री पुरुस्कार से पुरस्कृत किया जाएगा।

सीमांत जनपद चमोली के बिरही की नर्वदा रावत को पारम्परिक हथकरघा और हस्तशिल्प कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए तीलू रौतेली पुरुस्कार मिलेगा।

ये है नर्वदा देवी!

सीमांत जनपद चमोली के बिरही/झेलम गांव निवासी नर्वदा देवी नें पारम्परिक हथकरघा और हस्तशिल्प कला को नयी पहचान दिलाई है। एमए तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद नर्वदा नें हस्तशिल्प को पहचान देते हुये वाॅल हेंगिग, शाॅल, पंखी, बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर के डिजाइनों को परम्परागत हथकरघा से निर्मित कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनाया है। नर्मदा को हथकरघा और हस्तशिल्प के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई पुरस्कार मिल चुके हैं। 2016 में जिला प्रशासन व उद्योग विभाग द्वारा सम्मान, 2017 में राज्य उद्योग निदेशालय द्वारा हस्तशिल्प पुरुस्कार और एक लाख की धनराशि, 16 जनवरी 2018 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा हथकरघा पुरूस्कार के लिए सम्मानित और पुरस्कृत किया जा चुका है। जबकि 2019 में दिल्ली में अखिल भारतीय गो रक्षा समिति की ओर से नर्वदा रावत को हथकरघा हेतु पुरस्कार मिल चुका है। 2024 में नर्वदा रावत को उत्तराखंड राज्य शिल्प रत्न पुरुस्कार और गौरा देवी सम्मान मिल चुका है। हस्तशिल्पी नर्वदा रावत का कहना है कि वे विगत तीन दशकों से हथकरघा उद्योग से जुड़ी हुई हैं। वह अब तक सैंकड़ों महिलाओं को हस्तशिल्प का प्रशिक्षण दे चुकी है। इसके अलावा उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करती है ताकि वे महिलाएं आत्मनिर्भर बनें और उनकी आर्थिकी बढे। ये सम्मान उनका नहीं है बल्कि सीमांत जनपद चमोली की हथकरघा और हस्तशिल्प से जुड़ी हर महिला का सम्मान है।

चमोली में यहाँ बनते हैं हथकरघा से निर्मित उत्पाद..

उत्तराखंड में लगभग 60 हजार हस्तशिल्प कारीगर हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट का कारोबार करते हैं। ये उद्योग सीधे तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और स्थानीय लोगों के रोजगार से जुड़े हैं। एक अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड में हस्तशिल्प और हथकरघा का सालाना लगभग 50 करोड़ का कारोबार होता है। प्रदेश में रिंगाल से बने उत्पाद, तांबे, काष्ठ कला, शॉल, दुपट्टा, कारपेट, दन, भीमल के नेचुरल फाइबर से विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाए जाते हैं। सीमांत जनपद चमोली में जोशीमठ की नीती माणा घाटी, डुमक कलगोठ, ऊर्गम घाटी, निजमुला घाटी में झींझी, ईराणी, देवाल ब्लाॅक के वाण, बलाण गांव, घाट ब्लाॅक के कनोल, रामणी, बिरही, छिनका, घिंघराण, कौडिया, भीमतल्ला, नंद्रप्रयाग, मंगरोली, गडोरा, अगथल्ला सहित विभिन्न गांवों के लोग आज भी हथकरघा से जुड़े हुए हैं। इनके द्वारा कालीन, शाॅल, पंखी, आसन, मफलर, टोपी, कुशन, दोखा जैसे आकर्षक हस्तशिल्प ऊनी साजोसामान बनाये जाते है।