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वसुधारा जहां से होकर पांडव गए थे स्वर्ग की ओर, क्या मान्यता देखिए: संजय चौहान की खास रिपोर्ट

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वसुधारा!– मौसम बदलते ही बदल जाती है झरने के पानी की आवाज, झरने को देख अभिभूत हो रहें हैं पर्यटक..
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
देश के अंतिम गांव माणा से संतोपथ मार्ग पर माणा से पांच किमी की दूरी पर स्थित वसुधारा इन दिनों लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींच रहा है। कोरोना काल के कारण विगत दो साल से सुनसान पडे इस रोमांचकारी ट्रैक पर इस साल हर रोज कई पर्यटक वसुधारा के दीदार के लिए पहुंच रहें हैं। इस झरने को देखकर हर कोई अभिभूत हो रहा है।

— यहाँ है वसुधारा!

उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली में बैकुंठ धाम से आठ और माणा गांव से 5 किमी की दूरी पर है वसुधारा। समुद्रतल से 13500 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है ये अदभुत जल प्रपात (झरना) है। 400 फीट की ऊंचाई से गिर रहे इस झरने की खूबसूरती सम्मोहित करने वाली है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे पहाड़ी से फेन उठ रहा हो। इतनी ऊंचाई पर वायु और जल के मिश्रण से उत्पन्न संगीत हृदय के तारों को झंकृत कर देता है। यही वजह है कि भगवान बदरी विशाल के दर्शनों को आने वाले अधिकांश यात्री व पर्यटक वसुधारा जाना नहीं भूलते। इन दिनों भी ऐसा ही नजारा है।

— ये है धार्मिक मान्यता!

मान्यता है कि राजपाट से विरक्त होकर पांडव द्रोपदी के साथ इसी रास्ते से होते हुए स्वर्ग गए थे। कहते हैं कि वसुधारा में ही सहदेव ने अपने प्राण और अर्जुन ने अपना धनुष गांडीव त्यागा था। वहीं इस जलधारे में स्नान करने के लिए कई देवडोलियां भी पहुंचती हैं। माना जाता है कि जिस ओर ये देव डोली पहुंचती है उसी ओर ये जलधारा पहुंच जाता है। वसुधारा के पानी से देवडोलियां का स्नान करना धार्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है।

— पहुंचते ही पर्यटक अपनी थकान भूल जाते हैं।

वसुधारा के बारे में कहावत है कि इसके शीर्ष को देखते हुए व्यक्ति की टोपी गिर जाती है। यह झरना इतना ऊंचा है कि पर्वत के मूल से शिखर तक पूरा झरना एक नजर में नहीं देखा जा सकता। यहां आकर ऐसी अनुभूति होने लगती है, मानो यह धरती का हिस्सा न हो। इसीलिए पांच किमी की पैदल दूरी तय करने के बाद यहां पहुंचते ही पर्यटक अपनी थकान भूल जाते हैं। माना जाता है कि इस जल प्रपात का छींटा भी पड़ने से मनुष्य के समस्त विकार मिट जाते हैं। इसलिए काफी संख्या में यात्री वसुधारा जाने का प्रयास करते हैं।

मौसम बदलते ही बदल जाती है झरने के पानी की आवाज!

वसुधारा झरने के पानी की अनूठी विशेषता है। जब धुप खिलती है तो झरने की आवाज नैसर्गिक पानी की सरसराहट और नियत कर्म में पानी के चट्टानों पर टकराने की तड़तड़ाहट का समवेत स्वर सुनाई देता है और जैसे ही सूरज बादलों की ओट में छुप जाता है झरने की आवाज चट्टानों के चटकने की कर्कश आवाज में बदल जाती है। झरने के पानी में इस बदलाव के पीछे बादलों के घिरते ही ऊपर का तापमान अचानक गिर जाने से पानी जम जाना है। जमा हुआ पानी बर्फ की शक्ल में जम जाता है और यही बर्फ गिरते वक़्त चट्टानों से टकरा कर आवाज करती है।

— यहाँ पहुंचने का ये है सबसे उपयुक्त समय!
मई से नवंबर तक है यात्रा का समय

वसुधारा जाने के लिए सबसे अच्छा समय मई से नवंबर तक है। इसके लिए बदरीनाथ से माणा गांव तक वाहन सुविधा उपलब्ध है। इसके बाद पांच किमी की दूरी पैदल तय कर वसुधारा पहुंचा जाता है। लेकिन, यहां जाने के लिए यात्री या पर्यटक का पूरी तरह स्वस्थ होना जरूरी है। पहुंचते ही पर्यटक अपनी थकान भूल जाते हैं।

अगर आप भी बद्रीनाथ धाम जा रहे हैं तो जरूर एक बार इस अदभुत झरने का दीदार करने पहुंचे।