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वैकल्पिक ऊर्जा और सौर ऊर्जा छेत्र में किया जाय बेहतर कार्य- बहुगुणा विचारमंच

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18 मई 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव जी स्व० हेमवतीनंदन बहुगुणा की मूर्ति का अनावरण करने के लिए पौड़ी आगमन हुआ था, इस अवसर पर उन्होंने राजकीय घोषणा की थी, कि यदि स्व० हेमवतीनंदन जी के राजनीतिक कद के अनुसार कोई कार्य योजना, संस्थान निर्माण का सुझाव केंद्र सरकार को आप लोग दे तो उसका तुरंत क्रियान्वयन किया जाएगा।
किसी भी राजनीतिक दल, नेता, संगठन ने प्रधानमंत्री के इस बहुमूल्य सुझाव पर कोई रुचि नहीं ली, हमने बहुगुणा विचार मंच के माध्यम से प्रधानमंत्री को अखिल भारतीय स्तर का वैकल्पिक ऊर्जा शोध संस्थान की विस्तृत कार्य योजना प्रधानमंत्री महोदय को प्रेषित की, कि पर्वतीय क्षेत्रों में कश्मीर से लेकर डिबूगढ़ तक सूर्य की तेज किरणें, तेज हवा का वेग, पानी की तीव्र जलधारा, गर्म पानी के स्रोत प्रकृति ने निशुल्क उपलब्ध करवाए हैं, इसके लिए हिमालई क्षेत्रों में स्व० बहुगुणा के नाम से उक्त संस्थान खोला जाए।


वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में आज सौर ऊर्जा पर काफी काम हो रहा है, उत्तराखंड सरकार भी सौर ऊर्जा पर बहुत सारी योजनाएं उत्तराखंड में लगवा रही हैं, परंतु घरेलू प्रयोग के लिए सौर ऊर्जा उपकरण यहां कारगर नहीं हो पाए हैं, एक तो इनके रखरखाव के लिए काफी स्थान की आवश्यकता होती है, और यदि किसी परिवार ने इसे बिजली उत्पादन या गर्म पानी के लिए अपने मकान की छत पर लगवा भी दिया तो नटखट बंदर इन उपकरणों का शव विच्छेदन एक-दो दिन में ही कर डालते हैं, इस प्रकार सौर ऊर्जा उपकरण उत्तराखंड में आम जन के लिए एक महंगा शौक हो गया है।
हमने वर्ष 1989-90 मैं इसी प्रकार का मांग पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को भी भेजी थी, कि पहाड़ मैं बहती तीव्र जलधारा, तेज हवा, तेज सूर्य की किरणों का सदुपयोग किया जाए यहां हवा से चलने वाले पवन चक्की (Wind Mill) लगाए जाये, जिससे बिजली पैदा हो सके। पानी की तीव्र धाराओं से भी विद्युत उत्पादन किया जा सके, गंधक मिश्रित गर्म पानी समीपवर्ती कस्बों, गांवों में रबर पाइप से पहुंचाया जाए, वर्तमान में अरब देशों से कच्चा तेल, रसोई गैस अफगानिस्तान, पाकिस्तान होते हुये उत्तर प्रदेश में मथुरा रिफाइनरी में पंहुचाया जाता है, तो ऐसे में बद्रीनाथ का गर्म पानी जाड़ों में श्रीनगर-ऋषिकेश तक पंहुचाया जाना भी सम्भव है। गंधक के गर्म पानी के स्रोतों में जापान व बुडापेस्ट आदि देशों की तरह Resort बनवाये जाये, जिससे विदेशी मुद्रा की आय भी यहां बढ़ेगी। उस वक्त कैबिनेट सचिव श्री मूरेलाल जी थे, जो से पहले चमोली के जिलाधिकारी थे उन्होंने हमारे पत्र को प्राथमिकता दी। औली, भराड़ीसैंण आदि अनेक स्थानों में हवा से बिजली बनाने के उपकरण स्थापित करवाने के लिए टेंडर आमंत्रित करवाये, परंतु वर्ष 1991 में जनता सरकार के पतन के साथ ही यह कार्य योजना काल के गाल में समा गयी। आज भी भराड़ीसैंण, औली के गौरसों बुग्याल में पवन चक्की के स्टील के बड़े-बड़े पंखे, बड़े-बड़े खम्बे लावारिस पड़े हुए जंग कहा रहे हैं। यहां तक कि इन स्थानों या कई जगह बिजली के तार व खम्बे भी उपेक्षित खड़े हैं।


हमने फिर टाटा वैकल्पिक ऊर्जा शक्ति संस्थान से भी संपर्क किया, कि पहाड़ों की तेज सूर्य किरणों से हर परिवार में पानी गरम करने के लिए ऐसा उपकरण बनवाया जाए, कि 20 से 30 लीटर पानी की टंकी सुबह धूप में रखें तो दो-तीन घंटे में पानी 40 से 50 डिग्री गरम हो जाए, इसी के चलते तत्कालीन विज्ञान अध्यापक श्री कल्याण रावत से भी निवेदन किया कि Conclave Lens के प्रयोग से क्या सूर्य की किरणों को परिवर्तित कर पानी गर्म किया जा सकता है(श्री कल्याण रावत को इस वर्ष मैती अंदोलन के लिए पद्मश्री से नवाजा गया है), क्योंकि हमने बचपन में साइंस लैब में सूर्य की किरण को Conclave Lens से परिवर्तित कर कई कागज जलाये थे।
आज नवंबर से लेकर अप्रैल तक पर्वतीय क्षेत्रों के हिमाच्छादित गांव, कस्बों में गर्म पानी की सबसे ज्यादा किल्लत होती है, गर्म पानी के स्रोतों से रबड़ के पाइपों से बद्रीनाथ-तपोवन से श्रीनगर तक 40 से 50 डिग्री गर्म पानी आसानी से पहुंचाया जा सकता है। यहां यह उल्लेख करना जरूरी होगा कि तत्समय जोशीमठ नगर पालिका के अध्यक्ष श्री लक्ष्मीलाल शाह जी ने मंच के सुझाव पर तपोवन से जोशीमठ तक शीतकाल में टैंकरों से गंधक युक्त गर्म पानी जनता को कुछ समय तक उपलब्ध करवाया था, उनका हृदय से आभार व उनके दीर्घजीवी होने की शुभकामनाएं।
इसी प्रकार यदि वैज्ञानिक इस समस्या को लेकर गंभीर हो तो हर परिवार 30 से 40 मीटर की टंकी मैं पानी सूर्य किरणों से गर्म कर सकता है।
जाड़ों में पानी गरम करने के लिए बहुत अधिक ईंधन खर्च होता है, बिजली या रसोई गैस की खपत दोगुनी हो जाती है, और यदि वैकल्पिक रूप से उपरोक्त तरीकों से गर्म पानी उपलब्ध हो तो यहां लोग राहत की सांस ले सकते हैं।
आज कोरोना की वैक्सीन बनाने में भारत समेत पूरा विश्व प्रयासरत है, ऐसे में हम आशा करते हैं, कि वैकल्पिक ऊर्जा के लिए पहाड़ में उपलब्ध पानी, हवा, सूर्य की रोशनी के सदुपयोग के लिए कुछ न कुछ आविष्कार जल्दी सामने आएंगे।
हरीश पुजारी
बहुगुणा विचारमंच
गढ़वाल-कुमाऊं
मो०न०-9412110015