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युवाओं को मांगल गीतों से जोड़ने की मुहीम में जुटी 20 साल की नंदा

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…बदलते सामाजिक परिवेश में जहां युवा पीढी गढवाली बोली से दूर होते नजर आ रहे हैं। ऐेसे में युवाओं में बढते सोशल मीडिया के चलन को 20 साल की नंदा सती ने गढवाली मांगल गीतों को युवाओं तक पहुंचाने की मुहीम शुरु कर दी है। नंदा इन दिनों फेसबुक लाइव, फेसबुक पेज और वर्चुअल माध्यमों से युवाओं को मांगल गीतों से जोड़ने का काम कर रही है। इस कार्य में उसको मिल रही सफलता से नंदा खासी उत्साहित भी है। नंदा कहना है कि डिजिटल युग में अपनी बात को लोगों तक पहुंचाने के सुगम साधन उपलब्ध हैं। ऐसे में अपनी माटी और थाती को भूल रहे युवाओं को जोड़ने के लिये यह प्रयास शुरु किया है।

कौन है नंदा सती………
चमोली जिले की पिंडर घाटी के नारायणबगड गांव की 20 साल की नंदा सती वर्तमान में हेमवंती नंदन केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर में संगीत विषय में स्नातक की अंतिम वर्ष की छात्रा है। नंदा की आवाजा जितनी मधुर है, हारमोनियम की धुनों पर उसकी उतनी गहरी और मजबूत पकड़ भी है। उसकी 12वीं तक की पढाई नारायणबगड गांव में ही हुई है।

नंदा को बुजुर्गों से विरासत में मिली मांगल गीतों की शिक्षा
नंदा सती का कहना है कि गढवाल के लोक जीवन में संगीत का अपना अलग महत्व है। जहां हर्ष और उल्लास को प्रस्तुत करने के लिये गीतों की एक अलग विधा है। वहीं शुभ कार्य, उत्सव, तीज- त्यौहार के लिये लोक जीवन में मांगल गीतों की विधा मौजूद है। इस विधा में लोक जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी बातों से लेकर सम्बंधों का बेहद सरल तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। कहा कि उन्हें मांगल गीतों की समझ उनके घर गांव में होने वाले उत्सव और शुभ कार्यों में बुजुर्गों द्वारा विरासत में मिली है। ऐसे में वे भी अपनी इस वैभवशाली गीत परम्परा को नई पीढी को सौंपना चाहती हैं।

ये हैं पौराणिक मांगल गीत!
उत्तराखंड का लोकजीवन कौथीग और त्यौहारों की बड़ी विरासत को संजोये हुए है। यहां लोक जीवन में जन्म से मरण तक के लिये आयोजनों की वैभवशाली विरासत है। जिसका वर्तमान के बदलते दौर में भी लोगों द्वारा निर्वहन किया जा रहा है। वहीं उत्तराखंड के लोक जीवन में कौथीग और त्यौहारों के साथ उल्लास और आस को प्रदर्शित करने की वैभवशाली गीत-संगीत परम्परा भी है। इस परम्परा में मांगल गीतों की मांगल गीत अपनी एक अलग पहचान रखते हैं। इन गीतों में पहाड़ में जहां पहाड़ का लोकजीवन प्रतिबिम्बित होता है। वहीं मांगल गीतों में पर्यावरण के प्रति चेतना, व्यंगय की भी शैली मौजूद है। उत्तराखंड में सभी शुभ कार्यों शादी, चूडाकर्म जैसे आयोजनों में मांगल गीतों का गायन शुभ परंपरा मानी जाती है। वहीं मांगल गीतों की धार्मिक विधा में देव आहवान, देवी विदाई जैसे गीत भी लोक गीत-संगीत की परम्परा में मौजूद हैं।

  • ये लोग भी कर चुके मांगल गीतों के संरक्षण के भगीरथ प्रयास
              उत्तराखंड की लोक गीत और संगीत की मांगल विधा के लिये नंदा से पहले डॉ माधुरी बडथ्वाल, रेखा धस्माना उनियाल, लक्ष्मी शाह, पतंजलि मांगल टीम, लदोला महिला मंगल दल से लेकर केदारघाटी की महिला मंगल दलों की मांगल टीम, गायक सौरभ मैठाणी की मांगल टीमों नें जरूर पारम्परिक मांगल गीतों को सहेजने के भगीरथ प्रयास कर चुके हैं।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं नंदा सती
नंदा बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। वो न केवल एक बेहतरीन मांगल गायिका है अपितु प्रतिभाशाली छात्रा और खिलाडी भी है जबकि एनसीसी की होनहार छात्राओं में शुमार है। मांगल गीतों की शानदार प्रस्तुति पर उनकी लोक को चरितार्थ करती जादुई आवाज और हारमोनियम पर थिरकती अंगुलियां लोगों को झूमने पर मजबूर कर देती है।


हमारी सांकृतिक विरासत ही हमारी असली पहचान- नंदा सती
हमारी सांस्कृतिक विरासत ही हमारी असली पहचान हैं। गढ़वाल क्षेत्र में हर विवाह समारोह या फिर किसी भी शुभ कार्य के दौरान महिलाओं द्वारा मांगल गीतों को गाने की परम्परा थी। बदलते समय और आधुनिकिरण के साथ धीरे-धीरे ये परंपरा खत्म होने लगी है। समय बीतने के साथ आज इन मांगल गीतों की जगह हिंदी और पंजाबी गानों ने ले ली है। आवश्यकता है हमें अपनी पौराणिक मांगल गीतों के संरक्षण और संवर्धन की। कई लोग इस ओर प्रयासरत भी है। सभी अपने अपने स्तर से मांगल गीतों को प्रोत्साहित करने की कयावद करें तो हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध कर सकेंगे। उत्तराखंड के मांगल गीतों को संरक्षित कर इस विधा को दुनिया में पहचान दिलाने के प्रयास में मेरा पहला प्रयास है।