रिपोर्ट संजय चौहान
वाण(देवाल)शुक्रवार को देवाल ब्लाॅक के वाण गांव में स्थित नंदा के धर्म भाई लाटू मंदिर के कपाट भी विधि विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिये गये। शुक्रवार को दोपहर 12.45 मिनट पर आगामी 6 माह के लिए कपाट बंद कर दिये गये। कपाट बंदी के अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे। इस साल बैसाख पूर्णिमा पर 26 अप्रैल को लाटू देवता के कपाट खुले थे। कपाट बंद होने के अवसर पर लाटू मंदिर के पुजारी खेम सिंह, प्रताप सिंह, हुकुम सिंह, ग्राम प्रधान वाण पुष्पा देवी, लाटू मंदिर समिति अध्यक्ष कृष्णा सिंह, पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य हीरा सिंह पहाडी, जिला पंचायत सदस्य हाट कल्याणी कृष्णा बिष्ट, महिला मंगल दल अध्यक्षा नंदी देवी, धामती देवी, धनुली देवी, ऊखा देवी, गब्बर सिंह, रंजीत सिंह सहित सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद रहे।
गौरतलब है कि लाटू देवता के प्रति अटूट आस्था की बानगी है कि दूर दूर से श्रद्धालुओं का हर साल इस मंदिर में तांता लगा रहता है। हिमालयी महाकुंभ नंदा देवी राजजात यात्रा का ये आखिरी पड़ाव है जहाँ आबादी है इसके बाद निर्जन पडाव शुरू हो जाते हैं। रूपकुंड, बेदनी बुग्याल और आली बुग्याल का बेस कैंप है वाण गाँव।
लाटू देवता के मंदिर के अंदर क्या है, किसी को नहीं मालूम। बारह बरस बाद जब नंदा मायके (कांसुवा) से ससुराल (कैलाश) जाते हुए वाण पहुंचती है, तब इस दौरान नंदा का लाटू से भावपूर्ण मिलन होता है। इस दृश्य को देख यात्रियों की आंखें छलछला जाती हैं। यहां से लाटू की अगुआई में चौसिंग्या खाडू के साथ राजजात होमकुंड के लिए आगे बढ़ती है। लेकिन, वाद्य यंत्र राजजात के साथ नहीं जाते। वहीं मान्यता है कि वाण में ही लाटू सात बहिनों (देवियों) को एक साथ मिलाते हैं। यहीं पर दशौली (दशमद्वार की नंदा), बंड भूमियाल की छंतोली, लाता पैनखंडा की नंदा, बद्रीश रिंगाल छंतोली और बधाण क्षेत्र की तमाम भोजपत्र छंतोलियों का मिलन होता है। अल्मोड़ा की नंदा डोली व कोट (बागेश्वर) की श्री नंदा देवी असुर संहारक कटार (खड्ग) वाण में राजजात से मिलन के पश्चात वापस लौटती है।
लाटू देवता पूरे पिंडर/दशोली(आंशिक) क्षेत्र के ईष्टदेव हैं। माना जाता हैं कि लाटू कन्नौज के गर्ग गोत्र के कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। जब शिव के साथ नंदा का विवाह हुआ तो बहिन को विदा करने सभी भाई कैलाश की ओर चल पड़े। इनमें लाटू भी शामिल थे। मार्ग में लाटू को इतनी तीस (प्यास) लगी कि वह पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगे। इस बीच उन्हें एक घर दिखा और वो पानी की तलाश में इस घर के अंदर पहुंच गए। घर का मालिक बुजुर्ग था, सो उसने लाटू से कहा कि कोने में रखे मटके से खुद पानी पी लो। संयोग से वहां दो मटके रखे थे, लाटू ने उनमें से एक को उठाया और पूरा पानी गटक गए। प्यास के कारण वह समझ नहीं पाए कि जिसे वह पानी समझकर पी गए, असल में वह मदिरा थी। कुछ देर में मदिरा ने असर दिखाना शुरू कर दिया और वह उत्पात मचाने लगे। इसे देख नंदा क्रोधित हो गई और लाटू को कैद में डाल दिया। साथ ही आदेश दिया कि इन्हें हमेशा कैद में रखा जाए। यहां लाटू युगों से कैदखाने में हैं और यह कैदखाना ही उनका मंदिर भी है। दूर दूर से लोग अपनी मनोकामना लेकर लाटू के मंदिर में आते हैं। कहते हैं यहां से मांगी मनोकामना जरुर पूरी होती है।