Home उत्तराखंड बीएससी बीएड़ कर माणखी गांव के अनुज ने पकड़ी स्वरोजगार की राह

बीएससी बीएड़ कर माणखी गांव के अनुज ने पकड़ी स्वरोजगार की राह

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प्रोडक्शन रुम में काम करता माणखी गांव को अनुज कुमार।
  • वर्ष 2018 में महज 6 हजार की पूंजी से अनुज ने शुरु किया मशरुम उत्पादन
  • वर्तमान में अनुज मशरुम के विपणन से 15 से 20 हजार की मासिक आय कर रहा अर्जित
प्रोडक्शन रुम में काम करता माणखी गांव को अनुज कुमार।

गोपेश्वर। कोरोना महामारी से जहां राज्य में बेरोजगारी की गति तेज हो गई है। वहीं जिले के माणखी गांव का अनुज रोजगार संकट के इस दौरान में युवाओं के लिये स्वरोजगार से अर्थिकी मजबूत करने की राह दिखा रहा है। अनुज ने बीएससी व बीएड कर सरकारी रोजगार न मिलने पर अपने गांव में ही मशरुम उत्पादन का कार्य शुरु कर दिया है। जिसे वह अब 15 से 20 हजार रुपये मासिक आय प्राप्त कर रहा है। वहीं अनुज अन्य युवाओं को भी स्वरोजगार के लिये प्रेरित कर रहा है।
वर्ष 2018 में चमोली के माणखी गांव निवासी अनुज कुमार ने सरकारी रोजगार की चाह में बीएड़ प्रशिक्षण पूर्ण किया। लेकिन उसे सराकरी रोजगार नहीं मिल सका। ऐसे में अनुज ने अपने गांव में ही स्वरोगार करने की योजना बनाई और वर्ष 2018 के नवम्बर माह में मशरुम गर्ल दिव्या रावत से मशरुम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया। जिसके बाद उन्होंने महज 6 हजार रुपये की लागत और 1 माइसिलियम रुम और 2 प्रोडक्शन रुम के साथ दिसम्बर माह से मशरुम का उत्पादन शुरु किया। दिसम्बर में शुरु किये मशरुम उत्पादन से अनुज के फरवरी माह में पहली बार 10 हजार की आय हुई। मशरुम उत्पादन से पहली बार में ही मिली बेहतर आय ने अनुज के हौंसलों को जैसे परवाज लगा दिये। वहीं उसके पिता सुशील कुमार और माँ गीता देवी ने भी उसके इस प्रयास को हौंसला दिया। ऐसे में अब वह स्थानीय बाजार और गांव में ही मशरुम का विपणन कर करीब 15 से 20 हजार रुपये मासिक आय प्राप्त कर रहा है।

अनुज द्वारा माणखी गांव में अपने घर पर तैयार किया गया मशरुम का प्रोडक्शन रुम।

अनुज का कहना है कि मशरुम उत्पादन घर पर रहते हुए बेतहतर आय का साधन बन सकता है। इससे कम समय में बेहतर आमदनी हो सकती है। जिसके लिये युवाओं को प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि अभी तक वे 10 युवाओं को मशरुम उत्पादन का प्रशिक्षण दे चुके हैं। जिनमें से 5 युवाओं की ओर मशरुम उत्पादन का कार्य शुरु कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि यदि उन्हें प्रशासन और शासन की ओर से सहयोग मिलता है तो वे अपने गांव में प्रशिक्षण को लेकर सेंटर तैयार करना चाहते हैं। जिससे युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ा जा सके।