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डिजिटल इंडिया!– आनंद महिंद्रा नें देश की आखिरी चाय की दुकान पर यूपीआई से पेमेंट की सुविधा मिलने पर ट्वीट कर खुशी जताई..

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गोपेश्वर!

चार दिन पहले एक यूजर ने देश की आखिरी चाय की दुकान उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली के माणा गांव में यूपीआई से भुगतान की सुविधा शुरू होने पर ट्वीटर पर ट्वीट व वीडियो शेयर किया था। शेयर की गई तस्वीर में ‘भारत की आखिरी चाय की दुकान’ और यूपीआई बारकोड व दुकान के मालिक नजर आ रहे हैं।’ देश के अंतिम गांव और दस हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर डिजिटल पेमेंट की सुविधा मिलना अपने आप में डिजिटल इंडिया की मिसाल है। जैसे ही उक्त ट्वीट पर महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा की नजर पड़ी तो वे खुद को खुशी प्रकट करने से रोक नहीं सके। उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से उक्त ट्वीट को साझा किया। जिसमें उन्होंने लिखा- जैसा कि कहते हैं, एक तस्वीर 1000 शब्दों के बराबर होती है, यह तस्वीर भारत के डिजिटल भुगतान इकोसिस्टम के दायरे और पैमाने को दर्शाती है, जय हो!’ आनंद महिंद्रा का यह ट्वीट तेजी से वायरल हो रहा है। ट्विटर यूजर्स उनके ट्वीट पर ढेरों प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। उनके 98 लाख फॉलोअर्स हैं। महिंद्रा सोशल मीडिया में एक्टिव रहते हैं और वे किसी न किसी विषय पर लगातार ट्वीट कर नए भारत में रचनात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहित करते रहते हैं। इसके पहले भी उनके कई ट्वीट लोकप्रिय हुए हैं।

ये है माणा गांव!

सीमांत जनपद चमोली का माणा गाँव देश की सरहद का अंतिम गाँव है। पर्यटन के लिहाज से हर साल इस गाँव में लाखों लोग आतें हैं। बद्रीनाथ धाम से महज 3 किमी की दूरी पर अलकनंदा नदी और सरस्वती नदी के संगम केशव प्रयाग के बायीं और बसा है ये खुबसूरत गाँव। ये गाँव भोटिया जनजाति बाहुल्य गाँव है। यहाँ के निवासी 6 महीने अपने ग्रीष्मकालीन प्रवास गोपेश्वर और घिंघराण में निवास करतें हैं और 6 महीने देश के अंतिम गाँव माणा में। माणा गाँव में 150 परिवार निवास करते हैं। यहां के ज्यादातर घर दो मंजिलों पर बने हुए हैं और इन्हें बनाने में लकड़ी का ज्यादा प्रयोग हुआ है। छत पत्थर के पटालों की बनी है। इन घरों की खूबी ये है कि इस तरह के मकान भूकम्प के झटकों को आसानी से झेल लेते हैं। इन मकानों में ऊपर की मंज़िल में घर के लोग रहते हैं जबकि नीचे पशुओं को रखा जाता है। यह पूरा क्षेत्र सालभर ठंडा रहता है। यहाँ की मिट्टी आलू की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। जौ और ओगल, फाफर (इसका आटा बनता है) भी अन्य प्रमुख फसलों में हैं। इनके अलावा यहां भोजपत्र भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जिन पर हमारे महापुरुषों ने अपने ग्रंथों की रचना की थी।

ये है गाँव की धार्मिक व ऐतिहासिक महत्ता!

माणा गाँव से लगे कई धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के दर्शनीय स्थल हैं। गाँव से कुछ ऊपर चढ़ाई पर चढ़ें तो पहले नज़र आती है गणेश गुफा और उसके बाद व्यास गुफा। व्यास गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर वेदव्यास ने पुराणों की रचना की थी और वेदों को चार भागों में बाँटा था। व्यास गुफा और गणेश गुफा यहाँ होने से इस पौराणिक कथा को सिद्ध करते हैं कि महाभारत और पुराणों का लेखन करते समय व्यासजी ने बोला और गणेशजी ने लिखा था। व्यास गुफा, गणेश गुफा से बड़ी है। गुफा में प्रवेश करते ही किसी की भी नज़र एक छोटी सी शिला पर पड़ती है। इस शिला पर प्राकृत भाषा में वेदों का अर्थ लिखा गया है। इसके पास ही है भीमपुल। पांडव इसी मार्ग से होते हुए अलकापुरी गए थे। प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ भीम पुल से एक रोचक लोक मान्यता भी जुड़ी हुई है। जब पांडव इस मार्ग से गुजरे थे। तब वहाँ दो पहाड़ियों के बीच गहरी खाई थी, जिसे पार करना आसान नहीं था। तब कुंतीपुत्र भीम ने एक भारी-भरकम चट्टान उठाकर फेंकी और खाई को पाटकर पुल के रूप में परिवर्तित कर दिया। बगल में स्थानीय लोगों ने भीम का मंदिर भी बना रखा है। इसी रास्ते से आगे बढ़ें तो पाँच किमी. का पैदल सफर तय कर पर्यटक पहुँचते हैं वसुधारा। लगभग 400 फीट ऊँचाई से गिरता इस जल-प्रपात का पानी मोतियों की बौछार करता हुआ-सा प्रतीत होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पानी की बूँदें पापियों के तन पर नहीं पड़तीं। यह झरना इतना ऊँचा है कि पर्वत के मूल से पर्वत शिखर तक पूरा प्रपात एक नज़र में नहीं देखा जा सकता। इस गाँव को मणिभद्रपुरी नाम से भी जाना जाता है। जबकि बद्रीनाथ के रक्षक के रूप में घंटाकर्ण का ऐतिहासिक मंदिर भी यहाँ पर स्थित है।

अनूठी परंपरा!— कपाट खुलने के अवसर पर बैकुंठ धाम का महाप्रसाद ‘घृत कंबल’….
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
आज सुबह ब्रह्म मुहूर्त पर 4.30 बजे आस्था के सर्वोच्च तीर्थ बैकुंठधाम बद्रीनाथ के कपाट भक्तों के बिना आगामी 6 महीने के लिए खोल दिये गये हैं। कपाट खुलने के अवसर पर उपस्थित लोगों को आज बैकुंठ धाम का महाप्रसाद घृत कंबल को पानें का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लीजिये आज जानिये घृत कंबल के महत्व को..

— क्या है घृत कंबल!

शीतकाल के लिए बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने पर भगवान बद्रीविशाल को घी लगाया जाता और बाहर से एक कंबल लपेटी जाती है। 6 माह बाद कपाट खुलने के अवसर पर प्रथम दिन भगवान के दर्शन के उपरांत घृत कंबल को प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित किया जाता है। घृत कंबल का प्रसाद भगवान बद्रीविशाल का महाप्रसाद है जो केवल कपाट खुलने के दिन ही श्रद्धालुओं को प्राप्त होता है।

माणा गांव की महिलायें तैयार करती हैं भगवान बद्रीविशाल को पहनाया जाने वाला घृत कंबल..

भगवान बद्रीविशाल के कपाट बंद होने के अवसर पर बदरीविशाल को विशेष घृत कंबल से लपेटा जाता है ये खास परंपरा सदियों से निभाई जाती रही है। इस घृत कंबल को बद्रीनाथ के समीप देश के अंतिम गांव माणा की कन्याएं और सुहागिन महिलायें तैयार करती हैं। इस कंबल को बनाने के लिए कार्तिक माह में शुभ दिन तय किया जाता है। इस दिन माणा गांव की महिलाएं व कन्याएं पूरे दिन उपवास रखकर कंबल को तैयार करती हैं। एक ही दिन के अंतर्गत महिलाएं ऊन को कातकर कंबल तैयार करती हैं। कंबल तैयार होने के बाद इसे मंदिर समिति को सौंप देते हैं। शीतकाल में जिस दिन मंदिर के कपाट बंद होते हैं, उस दिन मंदिर के मुख्य पुजारी रावल इस कंबल पर गाय के घी और केसर का लेप लगाकर इससे भगवान बदरीनाथ को ढक देते हैं ताकि शीतकाल में उन्हें ठंड ना लगे। ग्रीष्मकाल में जब भगवान बदरीनाथ के कपाट खुलते हैं तो इस कंबल को महाप्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है।