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चार धामों के विकास के नाम पर भीमकाय निर्माण की हिमायत बड़ी आपदा को न्यौता

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…..केदारनाथ जल प्रलय के 8 वर्ष पूरे होने के बाद भी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। वहीं आज सरकार और जनता दोनों के स्तरों पर पैसे कमाने की होड़ शुरु हो चुकी है। जिसके चलते बद्रीनाथ, केदारनाथ सहित चार धामों में तेजी से निर्माण कार्य शुरु हो गये है। जो भविष्य में बड़ी आपदा न्यौता दे रहे हैं। ताज्जुब तब होता है जब सरकारें केदारनाथ और रैंणी जैसी आपदाओं के बाद भी हिमालय क्षेत्र में भीमकाय योजनाओं के निर्माण हिमायत कर रही हैं।
चार धाम सड़क परियोजना व रेल परियोजना के विनिर्माण के साथ ही जिस तरीके से मास्टर प्लान के आधार पर बद्रीनाथ और केदारनाथ को बनाने का कार्य किया जा रहा है। वह निश्चित रूप से भविष्य की एक बड़ा आपदा को भी सूचित कर रहा है। यह बात सही है कि विकास के साथ विस्थापन भी होता है। किंतु पहाड़ के अंदर अगर विकास विनाश का प्रतीक बन जाए तो निश्चित रूप से इस तरह के विकास की आवश्यकता हमें नहीं होगी।

‘‘सुंदरलाल बहुगुणा का भी यही कहना था कि हम लोग भोगवादी संस्कृति का विकास न करें और अपने पहाड़ों को इनकम कमाने का जरिया ना बनाएं इसी में देश की भी सुरक्षा है।’’

केदारनाथ आपदा के बाद जिस तरीके से डॉप्लर रडार लगाने की बात सरकार ने की थी ताकि वे पूर्व मौसम की चेतावनी ओं को जनता तक दे सके लेकिन यह सपना 7 वर्ष बीत जाने के बाद भी अधूरा बना हुआ है। हैरत की बात तो यह है कि सरकार हर दुर्घटना के बाद जांच और वैज्ञानिकों की राय लेने की बात करती है किंतु हकीकत यह है कि सरकार विज्ञान और वैज्ञानिकों की संस्तुतियों को कभी भी अमल में नहीं लाती प् और परिणाम स्वरुप रेणी जैसी आपदाएं प्रतिवर्ष हिमालय में घटती रहती है और जिस से बड़ी संख्या में जनधन की हानि भी उठानी पड़ती है।
हमारी सरकार इस बात पर आमादा है कि हम प्रतिवर्ष 30 लाख यात्रियों को इन चार धामों की यात्रा करवाएंगे किंतु क्या हमारा यह क्षेत्र 3 यात्रियों की संख्या के बोझ को सहने लायक है। साथी हमारे तीर्थ पुरोहित भी जिस तरीके से इस संकट के दौर में बार-बार याद यात्रियों को आवाहन कर रहे हैं। कि वह चले आए निश्चित रूप से यह भोगवादी दृष्टि उत्तराखंड के अस्तित्व के लिए एक भविष्य का खतरनाक संकट का भी द्योतक है। उत्तराखंड में जब तक चार धाम यात्रा को अमरनाथ और कैलाश मानसरोवर यात्रा की तरह नियंत्रित ढंग से नहीं संचालित किया जाएगा। तब हिमालय में आपदा हमें दर्द देती रहेंगी और सरकार हमेशा रोना रोती रहेगी।

डॉ योगेश धस्माना, (लेखक : सामजिक चिंतक और पत्रकार हैं।)