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6 माह के लिए खुले लाटू देवता के कपाट

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6 माह के लिए खुले लाटू देवता के कपाट
उमडे श्रद्धालू
थराली विधायक भूपालराम टम्टा भी रहे उपस्थित
श्रद्घालुओं नें स्थानीय ग्रामीणों के साथ पारम्परिक झोडा, झुमेला लोकनृत्य
दोपहर बाद 2 बजकर 10 मिनट पर विधि विधान से खुले कपाट

वाण (देवाल)।

मां नंदा के धर्म भाई वाण गांव स्थित लाटू देवता मंदिर के कपाट आगामी 6 महीने के लिए भक्तों के दर्शनार्थ खोले दिये गये। सैकड़ो भक्तो की उपस्थिति में विधि विधान और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ लाटू मंदिर के दोपहर बाद 2 बजकर 10 मिनट पर आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिये गये। अब अगले 6 महीनों तक श्रद्धालु मंदिर में पूजा अर्चना कर सकेंगे। इस अवसर पर उपस्थित श्रद्घालुओं नें स्थानीय ग्रामीणों के साथ पारम्परिक झोडा, झुमेला लोकनृत्य किया। स्थानीय ग्रामीणों नें मां नंदा और लाटू देवता के लोकगीत और जागर भी लगाये। कपाट खुलने के अवसर पर भारी संख्या में भक्तों का सैलाब उमड़ पडा। पूरा मंदिर परिसर लाटू देवता के जयकारों से गूँज उठा। मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर थराली विधायक भूपाल राम टम्टा, ब्लाक प्रमुख दर्शन दानू, जिला पंचायत सदस्य कृष्णा सिंह, लाटू देवता के पुजारी श्री खीम सिंह नेगी, मन्दिर समिति अध्यक्ष कृष्णा सिंह बिष्ट, चन्द्र सिंह, पंडित हरिश्चन्द्र कुनियाल, उमेश कुनियाल, रमेश कुनियाल, सामाजिक कार्यकर्ता हीरा सिंह गढ़वाली, देवेंद्र सिंह बिष्ट, खिलाफ सिंह, रंजीत सिंह, नरेंद्र सिंह सहित सैकड़ो लोग मौजूद थे।

देवताओं का देव नृत्य और महिलाओ का पारम्परिक लोकनृत्य रहा आकर्षण का केंद्र..

लाटू मंदिर के कपाट खुलने पर देवताओं के पश्वा का देवनृत्य मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा, ढोल दमाऊ की ताल और थाप पर देवनृत्य को देख लोग अभिभूत हुये। वहीं कपाट खुलने के अवसर पर श्रद्धालुओं और महिलाओं द्वारा पारम्परिक परिधानों/आभूषणों में मां नंदा और लाटू देवता के लोकगीत और जागरों के संग झोडा, चांचणी लोकनृत्य कर हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया। समाजिक कार्यकर्ता हीरा सिंह गढवाली कहते है कि वाण गाँव के लोग सालों से चली आ रही अपनी परम्पराओं का पीढी दर पीढी बखूबी निर्वहन करते हैं। लाटू मंदिर के लाटू देवता के प्रति अटूट आस्था की बानगी है कि दूर दूर से श्रद्धालुओं का इस मंदिर में तांता लगा रहता है। हिमालयी महाकुंभ नंदा देवी राजजात यात्रा का ये आखिरी पड़ाव है जहाँ आबादी है इसके बाद निर्जन पडाव शुरू हो जाते हैं। रूपकुंड, बेदनी बुग्याल और आली बुग्याल का बेस कैंप है वाण गाँव।

ये है मान्यता!

कहते हैं कि भक्त की एक ही पुकार पर भगवान दौड़े चले आते हैं, लेकिन भगोती नंदा के धर्मभाई एवं भगवान शिव के साले लाटू की माया ही निराली है। लाटू देवाल क्षेत्र (चमोली) के ऐसे देवता हैं, जिनके दर्शन भक्त तो दूर, खुद पुजारी भी नहीं कर सकता। मंदिर के कपाट बैसाख के महीने पूर्णिमा को खुलते हैं और 6 माह बाद मंगशीर्ष पूर्णिमा को बंद कर दिए जाते हैं। मंदिर के अंदर क्या है, किसी को नहीं मालूम। लाटू देवता पूरे पिंडर/दशोली(आंशिक) क्षेत्र के ईष्टदेव हैं। माना जाता हैं कि लाटू कन्नौज के गर्ग गोत्र के कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। जब शिव के साथ नंदा का विवाह हुआ तो बहिन को विदा करने सभी भाई कैलाश की ओर चल पड़े। इनमें लाटू भी शामिल थे। मार्ग में लाटू को इतनी तीस (प्यास) लगी कि वह पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगे। इस बीच उन्हें एक घर दिखा और वो पानी की तलाश में इस घर के अंदर पहुंच गए। घर का मालिक बुजुर्ग था, सो उसने लाटू से कहा कि कोने में रखे मटके से खुद पानी पी लो। संयोग से वहां दो मटके रखे थे, लाटू ने उनमें से एक को उठाया और पूरा पानी गटक गए। प्यास के कारण वह समझ नहीं पाए कि जिसे वह पानी समझकर पी गए, असल में वह मदिरा थी। कुछ देर में मदिरा ने असर दिखाना शुरू कर दिया और वह उत्पात मचाने लगे। इसे देख नंदा क्रोधित हो गई और लाटू को कैद में डाल दिया। जहां भगवान लाटू कैद में रहे कालांतर में वही स्थान उनके मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। पौराणिक लोकगीतों और जागरों में माना जाता है कि एक बार भगवती नंदा और उनके साथ कैलाश जानें वाले लोग वाण से आगे रणकधार से कैलाश जानें का रास्ता भटक जाते हैं जिसके बाद मां भगवती लाटू का स्मरण करती है और आगे जाने का रास्ता प्रशस्त हो पाता है। तत्पश्चात मां भगवती लाटू भगवान से आग्रह करती है कि जब भी 12 बरस में वो कैलाश को जायेगी तो वाण से आगे लाटू भगवान ही कैलाश तक उनकी यात्रा की अगुवाई करेगा। तब से लेकर आज तक वाण गांव से नंदा देवी राजजात यात्रा की अगुवाई भगवान लाटू ही करते हैं। दूर दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर लाटू के मंदिर में आते हैं। कहते हैं यहां से मांगी मनोकामना जरुर पूरी होती है।

भाई बहिन के मिलन से छलछला जाती है आंखे!

हिमालयी महाकुंभ नंदा देवी राजजात यात्रा में बारह बरस बाद जब नंदा मायके (कांसुवा) से ससुराल (कैलाश) जाते हुए वाण पहुंचती है, तब इस दौरान नंदा का अपने धर्म भाई लाटू से भावपूर्ण मिलन होता है। इस दृश्य को देख यात्रियों की आंखें छलछला जाती हैं। यहां से लाटू की अगुआई में चौसिंग्या खाडू के साथ राजजात होमकुंड के लिए आगे बढ़ती है। लेकिन, वाद्य यंत्र राजजात के साथ नहीं जाते। वहीं मान्यता है कि वाण में ही लाटू सात बहिनों (देवियों) को एक साथ मिलते हैं। यहीं पर दशौली (दशमद्वार की नंदा), बंड भूमियाल की छंतोली, लाता पैनखंडा की नंदा, बद्रीश रिंगाल छंतोली और बधाण क्षेत्र की तमाम भोजपत्र छंतोलियों का मिलन होता है। अल्मोड़ा की नंदा डोली व कोट (बागेश्वर) की श्री नंदा देवी असुर संहारक कटार (खड्ग) वाण में राजजात से मिलन के पश्चात वापस लौटती है।