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मां नन्दा की लोक जाता यात्रा

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मां नन्दा की लोक जाता यात्रा
क्या है मां नन्दा की लोक जात यात्रा – आज बात करते हैं मां नन्दा की लोक जात यात्रा की देवभूमि उत्तराखण्ड के सीमान्त जिला चमोली के विकासखण्ड घाट कुरूड सिद्ध पीठ मंदिर से हर वर्ष मां नन्दा की डोली 12दिवसीय यात्रा पर कैलाश के लिए जाती हैं इस दौरान मां नन्दा की डोली को स्थानीय हकहकूक धारी और मां नन्दा के पुजारी अपने संसाधनों से विभिन्न गांवों से होते हुए बेदनी कुण्ड और बालपाटा तक ले जाते हैं। बालापाटा और बेदनी बुग्याल मंें मां नन्दा की इस यात्रा का समापन होता है। मां नन्दा की कुरूड सिद्ध पीठ मंदिर से बेदनी और बालपाटा की 12दिवसीय यात्रा को लोक जाता यात्रा कहा जाता है।

कैसे होता है आयोजन – मां नन्दा की लोक जात यात्रा के दौरान कुरूड गांव में तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है और तीसरे दिन मां नन्दा की दशोली और बधाण की डोलियों अपने अपने यात्रा पडावों के साथ आगे बढती हैं। मां नन्दा की विदाई बहुत ही भाववेदना पूर्ण होती है, डोली विदाई से पहले स्थानीय महिला पुरूषों द्वारा मां को जागरों के माध्यम से तैयार किया जाता है। डोल दमाउं की थाप के साथ मां भगवती के और वीर लाटू देवता के अवतरित पश्वा मां के विदाई की अनुमति देते हैं और फिर मां नन्दा को एक बेटी की तरह मनाया जाता है और कैलाश के लिए तैयार किया जाता है और मां नन्दा को स्थानीय उत्पादों ककडी, मुंगरी,सीरफल, चुनरी देकर मां नन्दा की डोली को मंदिर से विदा करते हैं । महिलाएं मां नंदा को जागरों के साथ समझाते बुझाते हैं कि हे मां नन्दा तू कैलाश जा रही है वहां ठीक से रहना। वहीं भक्तगण मां नन्दा के जयकारों के साथ डोली को बडे उत्साह के साथ इस यात्रा को सफल बनाते हैं।
कैसे शामिल हो सकते मां नन्दा की लोक जात यात्रा में- मां नंदा की लोक जाता यात्रा का आयोजन करूड सिद्धपीठ मंदिर से किया जाता है और इस यात्रा में स्थानीय स्तर पर सभी गांवों के लोग शामिल होते हैं क्योेंकि मां नन्दा पूरे पहाड वासियों की अधिष्ठात्री देवी है। लेकिन दूर दूर से भी मां नन्दा की इस लोक जात यात्रा में शामिल होने के लिए कुरूड सिद्ध पीठ मंदिर पहुंचकर शामिल हो सकते हैं और 12दिनों तक चलने वाली यात्रा का समापन बेदनी कुण्ड और बालपाटा में होता है। बधाण की डोली जिसके लिए देवाल ब्लाॅक में स्थिति वाण मंदिर होते हुए नन्दा सप्तमी को बेदनी पहुंचा जा सकता है और इस यात्रा के समापन में शामिल हो सकते हैं । वहीं दशाोली की मां नन्दा की डोली विकास घाट के रामणी गांव से बालपाटा के लिए एक दिवसीय पूजा अर्चना के साथ वापस लौट आती है।रामणी गांव में भी इस मौके पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है मां नन्दा के जयकारों के साथ मां की इस लोकजात यात्रा में लोग शामिल होते हैं।


लोजजात यात्रा की कठिनाईयां – मां नन्दा की लोक जात यात्रा अगस्त में आयोजित होती है इस मौसम में पूरे पहाडों में हर तरफ रास्ते, सडकें जहंा क्षतिग्रस्त होते हैं वहीं गाड गदेरे उफान पर होते हैं। मां नन्दा के भक्त डोली को विषम भौगोलिक परिस्थितियों में भी आस्था के साथ हर चुनौतियों को पार करते हुए इस यात्रा को सफल बनाते हैं।
मंदिर समिति के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधयोें ने भी मां नन्दा की इस यात्रा को सफल बनाने के लिए शासन और प्रशासन से इसे भव्य रूप दिये जाने के लिए वार्ता की लेकिन वर्तमान समय तक भी लोक जात यात्रा की जिम्मेदारी स्थानीय लोग अपने कंधों पर उठाये हुए हैं। जिस कारण से यात्रा को भव्य रूप नहीं मिल पाता है।