Home उत्तराखंड देव संस्कृति मानने वालों की भूमि हैं हिमालय का हृदयस्थल हमारा उत्तराखण्ड

देव संस्कृति मानने वालों की भूमि हैं हिमालय का हृदयस्थल हमारा उत्तराखण्ड

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जोशीमठ: विविध जीवन्त संस्कृतियों की जननी हिमालय सदा से साधना और तपस्या की भूमि रही है , आदिशङ्कराचार्य जी महाराज ने अनादि काल से चली आ रही अविच्छिन्न परम्परा को अपने कार्यकाल में पूर्ण रूप देकर वेद संस्कृति और देव संस्कृति को पुनः जीवन्त कर दिया । उसी संस्कृति के परिपालन में ये छडी यात्रा भ्रमण पर निकली है । पूज्य शङ्कराचार्य जी महाराज के उक्त सन्देश को उनके शिष्य मुकुन्दानन्द ब्रह्मचारी ने अपने उद्बोधन में बताया । आगे उन्होने कहा कि इस यात्रा के कुशल संचालन के लिए प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन का विशेष योगदान रहता है और हम आशा करते हैं कि इसी तरह विधिवत इस परम्परा को सदा जीवन्त रखा जाए ।

जूना अखाडा द्वारा संचालित *पवित्र छडी यात्रा* ज्योतिर्मठ में रात्रि-विश्राम करके आज प्रातः शुभ मुहूर्त में बदरीनाथ धाम के लिए प्रस्थान कर चुकी है ।

एक मास तक चलने वाली *पवित्र छडी यात्रा* कल ज्योतिर्मठ में परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर अनन्तश्रीविभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती ‘१००८’ जी महाराज के पीठ में रुकी जहां पर ज्योतिर्मठ के व्यवस्थापक विष्णुप्रियानन्द ब्रह्मचारी द्वारा *छडी भगवान* को लेकर सभी देवस्थानों में दर्शन किया और सभी सन्तों की सेवा की गई ।

आज प्रातः अपने अगले पडाव बदरीनाथ धाम के लिए ये यात्रा निकल चुकी , प्रस्थान के पूर्व विधि-विधान के साथ *छडी भगवान* की पूजा आरती सम्पन्न कर सभी सन्तमूर्तियों की परम्परानुसार भेंटपूजा की गई ।

इस यात्रा में प्रमुख रूप से उपस्थित रहें सर्वश्री नेतृत्वकर्ता जूना अखाडे के सभापति श्रीमहंत प्रेमगिरि जी महाराज , छडी महंत श्री पुष्कर गिरि जी महाराज, छडी महन्त श्री शिवदत्त गिरि जी महाराज, गोपाल रावत, हरीश डिमरी, महिमानन्द उनियाल, जगदीश उनियाल, मनोज गौतम, अरुण ओझा , मनोज भट्ट, सन्तोष सती, अभिषेक बहुगुणा आदि उपस्थित रहें