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प्राचीनकाल से चली आ रही परंपरा को आज भी जीवित रखे हैं ग्रामीण

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सीमान्त गांवो सूकी में प्राचीन काल से चल रही परम्पराओ को आज भी ग्रामीणों ने जीवित रखा हुवा है पहाड़ो में पलायन के कारण अब धीरे धीरे गांव खाली होने को परन्तु आज भी कुछ गांव ऐसे है जो देव भूमि को बचाए हुवे है पहाड़ो में दैवीय आस्थाओं का केंद्र रहा है परन्तु राज्य सरकार गांवो को जीवित नही कर पाई ग्रामीण चहाते की पर्यटन विभाग गांवो में मन्दिर निर्माण कार्य करे जिस से ग्रामीणों की आस्थाएं बची रहे पुरातत्व विभाग सहयोग करे गांवो की लक्ष्मण सिंह बूटोला , रघुवीर सिंह , देवेंद्र सिंह नन्दा देवी क्षेत्र पंचायत सदस्य ने कहा सरकार गांवो की सुद्ध ले पहाड़ को सँस्कृतिक कार्य कर्मो में अग्रेसित करे जिस से ग्रामीणों के मनोबल बढ़ सके ।

में बग्डवाल देवताओ को अवतरित कर
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गढ़वाल रियासत की गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव पर जीतू का आधिपत्य था। अपनी तांबे की खानों के साथ उसका कारोबार तिब्बत तक फैला हुआ था। एक बार जीतू अपनी बहिन सोबनी को लेने उसके ससुराल रैथल पहुंचता है।

 

हालांकि जीतू मन ही मन अपनी प्रेयसी भरणा से मिलना चाहता था। कहा जाता है कि भरणा अलौकिक सौंदर्य की मालकिन थी। भरणा सोबनी की ननद थी। जीतू और भरणा के बीच एक अटूट प्रेम संबंध था या यूं कहें कि दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने थे। जीतू बांसुरी भी बहुत सुंदर बजाता थे। एक दिन वो रैथल के जंगल में जाकर बांसुरी बजाने लगते हैं। रैथल का जंगल खैट पर्वत में है, जिसके लिए कहा जाता है कि वहां परियां निवास करती हैं। जीतू जब वहां बांसुरी बजाता है तो बांसुरी की मधुर लहरियों पर आछरियां यानी परियां खिंची चली आई।