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गोपिनाथ की होली क्यों विशेष: संजय

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गोपेश्वर की होली!– भोले के आंगन में शिवभक्तों की फूल, रंग और गुलाल से अनूठी होली, सात समंदर पार तक प्रसिद्ध है गोपीनाथ की होली..
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
पूरे देश में फाल्गुन शुरू होते ही होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। होली की धूम सिर्फ कृष्ण नगरी, मथुरा और वृंदावन में ही नहीं बल्कि उत्तराखंड में भी फाल्गुनी होली की अलग ही पहचान है। पहाड के गांवो में होल्यारीयों की टोली घर घर पहुंचकर होली खेलते हैं। पहाड़ में इन दिनों खड़ी और बैठकी होली की धूम देखने को मिल रही है। आज भी पहाड़ के स्थानीय लोगों ने होली के रंगों को फीका नहीं होने दिया है।

उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली के खूबसूरत शहर गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में हर साल मनायी जाने वाली होली के सात समंदर पार रहने वाले भी दिवाने हैं। हर साल होलिका दहन के अगले दिन भगवान रुद्रनाथ के शीतकालीन गद्दीस्थल गोपेश्वर गोपीनाथ मंदिर प्रांगण में जनपद ही नहीं बल्कि उत्तराखंड सहित देश के कोने कोने से शिवभक्त होली मनाने यहां पहुंचते है। होली के दिन सुबह से ही मंदिर प्रांगण में शिवभक्त होल्यारों की टोली पहुंचते है और फिर फूल, रंग और गुलाल से शुरू होली का रंगोत्सव दोपहर होते होते अपने पूरे शबाब पर होता है। क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग, क्या महिलायें और क्या पुरूष, सब फाल्गुनी होली के रंगो से सरोबार होते हैं। पूरे दिन भोले के आंगन में होल्यार जमकर झूमते गाते हैं। गोपीनाथ मंदिर प्रांगण की ये अनूठी होली हर किसी को पसंद आती है।

ये है गोपेश्वर!

सीमांत जनपद चमोली के दशोली ब्लाॅक में अलकनंदा नदी के किनारे पहाडी पर बसा एक खूबसूरत शहर है गोपेश्वर। यहां पर नौवीं शताब्दी में निर्मित गोपीनाथ मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। गोपीनाथ मंदिर भगवान रूद्रनाथ की शीतकालीन गद्दीस्थल भी है।1960 में चमोली से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गाँव था गोपेश्वर। 1966 में गोपेश्वर ग्राम में राजकीय डिग्री कॉलेज खोला गया, और फिर 1967 में इसे नगर का दर्जा दे दिया गया। 20 जुलाई 1970 को अलकनंदा नदी में आयी बाढ़ में चमोली नगर और अल्कापुरी क्षेत्र पूरी तरह बह गया। जिसके बाद चमोली जनपद का मुख्यालय तथा अन्य सभी महत्वपूर्ण कार्यालय गोपेश्वर में स्थापित कर दिए गए।

मंदिर प्रांगण में मौजूद ऐतिहासिक लौह त्रिशूल!

गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर के प्रांगण में एक 16 फिट ऊँचे ऐतिहासिक लौह त्रिशूल भी स्थापित है जो अपनी धार्मिक आस्था के साथ ही इस पर उत्कीर्ण राजाओं की प्रशस्तियों के कारण उत्तराखंड के इतिहास के संदर्भ में कई काल खंडों की पौराणिक इतिहास की जानकारी का एक प्रमुख स्रोत भी है। ये त्रिशूल बल पूर्वक दोनों हाथों से हिलाने पर भी नहीं हिलता है लेकिन भक्तिपूर्वक कनिष्का अंगुली से हिलाने पर ये कंपायमान हो जाता है। यह लौह त्रिशूल और भगवान गोपीनाथ का विशाल मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उत्तराखंड के 42 स्मारकों में केंद्रीय स्मारकों की सूची में तथा भारत के 100 महत्वपूर्ण स्मारकों के साथ आदर्श स्मारकों की सूची में शामिल है।
त्रिशूलं मामकं तत्र चिन्हमाश्चर्य रूपकम्।
ओजसा चेच्यालयते तन्नही कंपति कहिर्न्वित्।
कनिष्ठ्या तु सत्स्पृष्टम भक्त्या तत्कम्पे मुहु:।

इस त्रिशूल में राजा अशोकचल्ल द्वारा विजय का उल्लेख मिलता है। साथ ही अंकित अभिलेखों से जैसे गणपति नाग द्वारा यहाँ पर शक्ति स्तंभ स्थापित करने की बात चरितार्थ होती है। जिससे प्रतीत होता है कि ये त्रिशूल 6 वीं और 7 वीं शताब्दी स्थापित किया गया होगा।