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दावानल के धुवें के गुबार में डूबा वातावरण , स्वास्थ्य पर पड रहा प्रतिकूल प्रभाव

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चमोलीः जनपद इन दिनों जंगलों में लगी आग के धुवें के गुबार में डूबा हुआ है, वन विभाग के कर्मी दावानल पर काबू पाने के लिए अलग अलग जगहो ंपर भले तैनात हों लेकिन संसाधन विहीन कर्मी दावानल पर काबू पाने में असहाय नजर आ रहे हैं। इन दिनों पहाडों के जंगल धूं धूं कर चल रहे हैं जंगलों में लगी आग के कारण पूरा जनपद धुवें के आगोश में डूबा है इस धुंवे के गुबार से जहां पर्यावरण दूषित हुआ है वहीं इसका लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड रहा है। लोगों का कहना है कि चीड बाहूल्य होने के कारण यह आग विकराल रूप लेती है जब तक चीड उनमूलन पर कार्य नहीं किया गया तब जंगलों की आग पर काबू पाना संभव नहीं हैं। वहीं जंगलों के जानकार कहत हैं कि चीड जंगलों की आग के लिए जिम्मेदार नहीं है इसके लिए असामाजिक तत्व ही जिम्मेदार हैं वहीं वे बताते हैं कि चीड के जंगलों की आग मिटटी और उस क्षेत्र में उगने वाली प्रजातियों के लिए खतरा पैदा नहीं करती है चीड के जंगलों की आग की तुलना में बांज और अन्य जंगलों की आग अधिक नुकसान दायक होती है वहीं चीड से लीसा निकालकर सरकार के राजस्व में भी बडी मात्र में आमदनी होती है।
वन विभाग का कहना कि हर वर्ष फायर सीजन में जंगलों केा आग से बचाने के लिए योजना बनाई जाती है वर्तमान समय में विभाग द्वारा कू्र स्टेशन बनाये गये हैं अस्थाई कर्मियों के रूप में फायर वाचर रखे गये हैं और दिन रात आग प्रभावित क्षेत्रों में तैनात हैं

इतिहासकारों का कहना है कि आग की बढती घटानाओं के मुख्य कारण पलायन,घास के साथ असामाजिक तत्वों की हरकत। पूराने समय में लाग काश्ताकारी के लिए जंगलों में जाकर चीड की पतियों को मवेशियों के नीचे बिछाने के लिए इकटठा किये करते थे और चीड के पत्तियों को ढेर नहीं लगता था, कुछ स्थानों पर नई और अच्ची घास जमने के लिए लोग भी जंगलांे में आग लगा देते हैं। आज आम जनमानस जंगलोें में लग रही आग बुझाने में वन विभाग का कोर्इ्र भी सहयोग नहीं करता है इसके पीछे वन विभाग का ग्रामीणों के साथ पारदर्शीन न रहना है।